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________________ गौतम तोरा सेवक हूं, पल पल तेरा ध्यान धरूं ये सेवककी अरजी है, भव भ्रमण मीटावो मेरा गौतम....५ > प्रातः उठीने जपु तारु नाम > म (राग : बहोत प्यार करते है ....) प्रातः उठीने जपु तारु नाम, गौतम नामे, सरे मुज काज, प्रात.... जनमो असंख्य मल्याने गुमाव्या, धर्म न कर्यो के तमने न संभार्या स्वीकारो तमे तो, तूटे मारा बंधन प्रातः.. तारा रटणनोरे महिमा छे भारे, पामे पार ओ तो थाये भवपार, लागे प्यारं प्यारं, तारु शरण प्रातः.....२ मने हरघडी आरझुछे तमारी, मलो जो तमे तो हुं जाउं वारी वारी, करू तारु दर्शन, करू तने वंदन, जनमोजनम प्रातः.....३ करूणाना सागर तमे छो अमारा, श्रद्धा छे स्वामी मलशे किनारा, तमारा ज नाममां हो मुज मन, प्रातः....४ national ABPersonallus Only relainelibrary.org.
SR No.003164
Book TitleLabdhinidhan Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshbodhivijay
PublisherAndheri Jain Sangh
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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