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मुनि चौद सहस छे ताहरे, वीर माहरे तुं एक छे, टलवलतो मने मूकी गया
प्रभु क्यां तमारी टेक छे,
हे प्रभु स्वप्नांतरमां अंतर न धर्यो सुजाण
रे
पण हुं आज्ञावाट चाल्यो,
न मले कोइ, इण अवसरे हुं रागवश रखडी रह्यो
निरागी वीर शिवपुर संचरे,
वीर वीर कहुं, वीर न घरे कांइ कान रे
कोण वीरने कोण गौतम,
क
नहीं कोइ कोइनुं कदा, ए रागग्रंथि तूटता
वरज्ञान गौतमने थता,
हे
सुरतरु
मणि सम गौतम नामे निधान रे
कामह
कार्तिक वदी अमास रात्रे, अस्त भाव दीपक तणो,
करे द्रव्य दीपक देवो तिहां,
लोक दिवाली भणे,
हे वीर विजयना नरनारी करे गुण गान रे
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शिक्ष
विर
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ल
वीर.. ५
वीर.. ६
विहार
वीर..७
वीर.. ८
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