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________________ ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना श्रुतज्ञान - चिंताज्ञान ने वळी भावनाज्ञाने जीवे नीत नीत नवा संवेग ने वैराग्यना पियूष पीवे दोषो थकी राखे भीती पण कष्ट थी जे ना बीवे ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना शुद्धि वरे दर्शनतणी जिनभिक्तमां लंपट रही साथै रह्या प्रभु भजनमा माधुर्य ते पामे सही सुरि प्रेम प्रेमल वचनथी जस भक्ति ने अनुमोदता ओवा सूरीश्वर भुवनबानु चरणकज हो वंदना जे सर्वने संपद्कारी निर्दोष मिक्षा आचरे उत्कट विहारी पण छता शुद्धि चरणनी उच्चरे जयणा घरे जे चाल - बोल- विहार- शयने- आसने ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकाज हो वंदना शत उपर अड ओळी करी प्रभु वर्धमान तपोधनी आंतर बहि तप भेद बारस साधता गृद्धि हणी Jain, bocatiemational For Private & Personal Use Only १३ १४ १५ १६ www.jariellbrary.org
SR No.003164
Book TitleLabdhinidhan Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshbodhivijay
PublisherAndheri Jain Sangh
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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