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________________ त्रिपदी पाकर विरचे द्वादश, अंग यदा क्षणमें, जिन शासनके सूरज(२), भाये जन मन में जी ॐ ......३ अष्टापद गये अपने बलसे, वन्दे जिनचंदा, पंदर शतत्रय तापस(२),टाले भवफंदा is निर्मल निरुपम दर्शन, दुःख हर, जगजीवन त्राता, ___ आरति करते जो जन(२) पावे सुखशाता ॐ.....५ गौतमस्वामी अंतर जामी पाए (राग-अंतरजामी सुम अलवेसर) गौतमस्वामी अंतरजामी, आतमरामी पामी रे, हुं थाउं तुम पथ अनुगामी, शिवरामी विसरामी गुरुपद जपीओ रे, भवो भवना संचित पाप, दुरे खपीये रे. मात पृथ्वीना कुंवर सुंदर, वाणी अमीय समाणी रे, वसुभूति नंदन, गौतम समरूं, चार अनुयोग सुखाणी गुरु....१ गौतम स्वामी गुरु गुणपति, वीरना पटघर जगमां रे, तुम भगतिथी सुमति रति, होजो रे शिवपलकमां गुरु....२ मुजने व्हाली गौतम सेवा, गजने मन जिम रेवारे, गुरु सेवाथी मुगति मेवा, आपो आपनी सेवा गुरु....३ Jain Education Anational For Private &Personal use or wwmainelibrary.org
SR No.003164
Book TitleLabdhinidhan Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshbodhivijay
PublisherAndheri Jain Sangh
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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