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________________ सी.ओ. सुधी अभ्यास करतां पण नहि अंधारमां सूरि प्रेम केरा पुण्ययोगेक्षण क्षणे जे जागता या ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना ६ शैशव कुमारदशा वीती आवी उभा यौवनविषे तो ये जरी उन्माद ना व्यामोहना मनडा विशे त्यागी विरागी प्रतिपळे सावध उदासीनता धरा की ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना - ७ इतिहास सर्जक पळ प्रतिक्षा पतिपले जे करी रह्या गृहवासनां पिंजर थकी उड्डान निज तलपी रह्या त्यां तो अचानक प्रेमगुरुनो पत्र सुस्वागत करे - ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना ८ निज बंधु 'पोपट' साथ कांतिलाल भानूदय थयो पहोंची परमगुरु प्रेमनां करकमलथी संयम ग्रह्यो ब धम्मेशूरा लई धर्मध्वजनें यज्ञ उत्तम आदरे व निस ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना ी ९ Jain Education Intel For Pra Us elibrary.org
SR No.003164
Book TitleLabdhinidhan Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshbodhivijay
PublisherAndheri Jain Sangh
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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