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ओवा. ६
अवा. ७
हर्षभरी देवांगनाओ नमन करती लळी लळी, जयनाद करतां देवताओ हर्षना अतिरेकमां पधरामणी करता जनेताना महाप्रसादमां जे इन्द्रपूरित वरसुधाने चूसता अंगुष्ठमां,
* अतिशयवंत प्रभु * आहार ने निहार जेना छे अगोचर चक्षुथी प्रस्वेद व्याधि मेल जेना अंगने स्पर्शे नही स्वर्धेनु दुग्धसभा रुधिरने मांस जेनां तन मही, मंदार पारिजात सौरभ श्वास ने उच्छवासमां ने छत्र चामर जयपताका स्तंभ जव करपादमां पूरा सहस्त्र विशेष अष्टक लक्षणो ज्यां शोभतां देवांगनाओ पांच आज्ञा इन्द्रनी सन्मानती पांचे बनी धात्री दिले कृतकृत्यता अनुभावती वली बालक्रीडा देवगणना कुंवरो संगे थती
ओवा. ८
ओवा. ९
ओवा. १०
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