Book Title: Chaityavandan Sangraha Tirth Jin vishesh
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाल ब्रह्मचारी श्री नेमिनाथाय नमः Gal चैत्य वंदन संग्रह तीर्थ-जिन विशेष XXXXXX b फ्र | सम्पादक मुनि श्री दीपरत्नसागर M. Com., M.Ed. [ अभिनव लघु-प्रक्रिया-संस्कृत व्याकरण के सर्जक ] Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना स्तवन- सज्झाय-थोयना जोडाओ ना संग्रहो बहार पडेला मळे छे तेरीते चैत्यवन्दन नो संग्रह जोवामां आवेल नथी । चैत्य वन्दन मां प्रसंगने अनुरूप तेमज विविध विषयनो अक संग्रह होय ते जरूरी लाग्यौं । "अभिनव हेम लघु प्रक्रिया" ना अभूतपूर्व, दळदार अने ओक मात्र सप्तांगी विवरण युक्त ग्रन्थनु सम्पूर्ण स्वतंत्र सर्जन कर्या बाद विचार्य के शास्त्र वांचन माटेनो पायो तो मजबूत थई गयो, ज्ञानयोग मां प्रदान कर्तुं तेम भक्ति योग माटे पण कंइक अभिनव प्रदान करवु । दर्शन शुद्धिना अक सचोट-सुन्दर अंग रूपे आ " चैत्यवन्दन संग्रह " श्रीसंघ समक्ष प्रस्तुत करवानो अल्प प्रयास करेल छे । 'अभिनव श्रुत प्रकाशन' नाम सार्थक करता आ संग्रह ना कुल ऋण भाग मली ७०० थी वधारे चैत्यवन्दनो थशे । त्रिकाल देववंदन करतां श्रमण भगवंतो ने अन्तःकरण पूर्वक नमी, पर्व दिवसोना विशिष्ट आराधकोनी अनुमोदना करता, तपस्वीओने तप अनुष्ठानमां उपयोगी बनवाना हेतु थी प्रेराइने चैत्यवन्दन संग्रह [ तीर्थ- जिन विशेष ] सर्व चैत्यवन्दन प्रेमीओ समक्ष मुकु छू । चैत्यवन्दन थकी चैत्योनी वन्दना करी हृदय मांथी भक्ति झरणा ने वहेवडावो तेम इच्छु । पू. साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका रुप चतुविध संघ मारा आ प्रयास ने ज्ञान क्रिया ना समन्वय द्वारा क्षायिक सम्यग् दर्शन पामवानो अभिलाषा पूर्वक आदरनारा बने ते हार्दिक प्रार्थना सह जैन आराधना भवन, नीमच भादवा वदी अष्टमी- २०४५ दिनांक २४-८-८६ मुनि दीपरत्नसागर Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रम अनुक्रमणिका चैत्यवंदन सिद्धाचलजीना १ २ पुंडरिकस्वामीना रायण तथा घेटी पगलाना ३ ४ अजित शांतिनुं पंचतीर्थंना ५ ६ शाश्वता अशाश्वता तीर्थना समेत शिखरनुं सीमंधरस्वामीना ८ ६ युगमंधरस्वामीनुं १० विहरमान जिननां शाश्वता जिनना ११ १२ ऋषभदेवना १३ शांतिनाथना १४ नेमिनाथना १५ पार्श्वनाथना १६ महावीरस्वामीना १७ अरनाथना १८ मल्लिनाथना १६ नमिनाथना २० अन्य जिनना २१ सामान्य जिनना २२ अतीत चोविशीना संख्या पृष्ठ २८ १ ३ لله २ १ १० & १ १५ १ ६ al 22 w x ५ २१ ८ ११ २४ १६ w w m v २३ ८ ४ १२ ३ १३ १४ 20 20 mx 2 १५ م الله الله १५ २० ३२ ३२ ४१ ४२ ४५ ४७ ५८ ६२ ६६ ८६ ६४ ६७ १०४ १०७ १०८ ११६ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ m M २४ ११६ r x w or or on १२९ n n m m m 9 0 0 0 MM mro 8295 m m m m m m m ا w क्रम चैत्यवंदन संख्या पृष्ठ २३ आवती चोविशीना चोविश जिनना नामना चोविश जिनना गणधरोना १२० २६ पंच कल्याणकना ५ १२३ २७ १८ दोष रहित तीर्थकरना २८ चोवीश जिनना वर्णना २६ चोवीश जिनना लंछनना १२७ ३० चोवीश तीर्थंकरना आयुनु १२८ जिन देह वर्णन नं १२६ ३२ चोवीश जिन देहमाननुं चोवीश तीर्थंकर राशिनं १ १२६ ३४ अरिहंत प्रभुना चोत्रीश अतिशय चोवीश जिनना पांच बोलन १ १३० ३६ चोवीश जिननी भवगणनानुं १७० जिन वर्णन १ १३२ जिन ना चारे निक्षेपार्नु १ १३२ जिन महिमा १ १३२ जिन दर्शन पूजन फलन ३ १३२ जिन गुण गीत फलनुं ४२ जिन फूल पूजा _श्री वीर प्रभु वंश वृक्षनुं ४४ श्री वीर शासन युग प्रधाननु १ १२७ ४५ दुष्कृत गर्हारूप १ १२८ पंच परमेष्ठिनु १ १४० ४७ उपदेशक १ १४० ar onorm on or mom or or or Mom our wor on x w x لم १३६ x w ४६ ___ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 बाल ब्रह्मचारी श्री नेमिनाथाय नमः 5 श्री सिद्धाचलजीना चैत्यवंदनो (१) विमल केवल ज्ञान कमला, कंलित त्रिभुवन हितकरं, सुरराज संस्तुत चरण पंकज, नमो आदि जिनेश्वरं. १ विमल गीरीवर शृंग मंडण, प्रवर गुण गण भूधरं, सुर असुर किन्नर कोडि सेवित, नमो आदि जिनेश्वरं . २ करती नाटक किन्नरी गण, गाय जिन गुण मनहर, निर्जरा वली नमे अहोनिश, नमो आदि जिनेश्वरं. ३ पुंडरिक गणपति सिद्धि साधित, कोडि पण मुनि मनहरं, श्री विमल गीरीवर शृंग सिद्धा, नमो आदि जिनेश्वरं. ४ निज साध्य साधकसुर मुनिवर, कोडि नंत अ गीरीवरं, मुगति रमणी वर्या रंगे, नमो आदि जिनेश्वरं. ५ पाताल नर सुर लोक मांही, विमल गीरीवर तो परं, नही अधिक तीरथ तीर्थपति कहे, नमो आदि जिनेश्वरं. ६ 'इम विमल गीरिवर शिखर मंडण, दुःख विहंडण ध्याइओ, निज शुद्ध सत्ता साधनार्थं, परम ज्योति निपाइये. ७ जित मोह कोह विछोह निद्रा, परम पद स्थित जयकरं, 'गोरिराज सेवा करण तत्पर, पद्मविजय सुहितकरं.८ (२) यह विमल गीरीवर सुर सेवित, तीर्थ जे शाश्वत सदा, महिमा मनोहर जेहनो, जिनराज गावे सर्वदा, मुनिराजना मंडल जिहां विचरी, परम सुख ने वर्या, गावो सदा गीरिराजना गुण, काज सघला तो सर्या. १ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२] चैत्यवंदन संग्रह तिहुं कालमां तिहुं लोकमां, जेहनो विच्छेद न थाय छे, सुर असुर इन्द्र नरेन्द्र सर्वे, भावथी गुण गाय छे, जिहां प्रथम श्री जिनराज पूर्व, नवाणुं वार समोसर्या, गावो सदा गीरीराजना गुण, काज सघला तो सर्या.२ पुंडरीक प्रथमाधीश गणपति, साधता गति पंचमी, जस नामथी संकट टले ने, आपदा नासे वलो, दर्शन अने फरशन थकी, भव्यो अनंता भव तर्या, गावो सदा गीरिराजना गुण, काज सघला तो सर्या.३ विमल गीरिवर सयल अघहर, भविकजन मनरंजनो, निज रूप धारो पाप टाळी, आदि जिन मदभंजनो, जग जीव तारे भरम फारे, सयल अरिदल मंजनो, पुंडरीक गीरीवर शृंग शोभे, आदिनाथ निरंजनो.१ अज अमराचल आनंदरूपी, जन्म मरण विहंडनो, सुर असुर गावे भक्ति भावे, विमलगीरि जगमंडनो, पुंडरीक गणधर राम पांडव, आदि ते बहु मुनिवरा, जिहां मुक्ति रामा वर्या रंगे, कर्म कंटक सहु झरा.२ कोई तीर्थ जगमां अन्य नाही, विमलगीरि सम तारकं, दूरभव्य ने अभव्य वली, सदा दृष्टि निवारकं, अक त्रीजे पंचमें भवे, वरे शिव दुःखवारकं, यह आश धारी शरण थारी, आव्यो आतम हितकरं.३ (४) ऋषभनी प्रतिमा मणीमयी, भरतेश्वरे कीधी, ते प्रतिमा छे इणगीरि, अह वात प्रसिद्धि...१... Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [३] देखे दरिसण कोइ जास, मानव इणलोके, बीजे भवे जे मुक्ति योग्य, नर तेह विलोके...२... स्वर्णगुफा पश्चिम दिशे ओ, छे जास अहिठाण, दान सुहंकर विमलगीरि, ते प्रणमुं हित आण...३... सगरादिक नरपति अनेक, इणे पर्वत आव्या, विविध विचित्र विराजमान, प्रासाद कराव्या...१... भक्ति धरी जिनवर तणी, बहु प्रतिमा थापी, तिणे महीयलमा तेहनी, कीरति अति व्यापी...२... सुरपति नरपतिना थया अ, इहां बहु उद्धार, ते शQजय सेवीयो, दान सकल सुखकार...३... अह गीरि उपर आदिदेव, प्रभु प्रतिमा वंदो, रायण हेठे पादुका, पूजी आणंदो... अह गीरिनो महिमा अनंत, कुण करे वखाण, चैत्री पुनमने दिने, तेह अधिको जाण...२... अह तोरथ सेवो सदा ओ, आणी भक्ति उदार, शत्रुजय सुखदायको, दानविजय जयकार...३... चैत्रो पुनमने दिने, शत्रुजय भेटे, भक्ति धरे जे भव्य लोक, ते भव दुःख मेटे. आदीश्वर जिननी अमूल, पूजा विरचावे, . इति भीति सघली टले, सुख संपद पावे...२.. Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४] चैत्यवंदन संग्रह - परमातम परकाशथी अ, प्रगटे परमानंद, श्री विजयराज सूरीश्वरु, दान अधिक आणंद...३... तरण तारण कुगति वारण, सुगति कारण जगगुरु, भवभ्रमण करता मनुष्यना, वांछित करवा सुरतरु, संसार तापथी तप्त जंतु, जातने छाया करू, छत्राकृति सिद्धाचले, ऋषभेश कलेश मनोहरु...१ श्री ऋषभदेव प्रपौत्र द्राविड, वारिखिल्ल सहीदरा, आदिनाथ भक्त सुवल्गु तापस, बोधथी तापस वरा, चारण मुनिवर साथ सर्वे, तीर्थ करवा संचर्या, प्रतिबोधथी मुनिराजना, सर्वे मुनीशपणुं वर्या...२ पुन्य पुज सम पुंडरीकगीरि, निरखता नयणे ठरी, उल्लास पामी दोष वामी, हर्षथी हृदये धरी, वंदन करीने आवीया, गीरिराज उपर पद चरी, रायण ने आदिदेव चरणे, प्रेमे प्रदक्षिणा करी...३ पुंडरीक गणधर साथ, आदिनाथने पाये पडी, चारण मुनिना कहेणथी, लगावी ध्यान तणी झडी, दशक्रोड मुनिवर साथ, कार्तिक पुनमे मुक्ति जडी, हंसावतार तीर्थ स्थाप्यु, हंस देवे तिण घडी...४ (६) श्री सिद्धाचल तीर्थनायक, विश्वतारक जाणीये अकलंक शक्ति सुरगीरि, विश्वानंद वखाणीये, मेरु महीधर हस्तगीरिवर, चर्चगीरिधर चिह्नो, श्वासमां सो वार वंदु, नमो गीरि गुणवंत...१... Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तोर्थ-जिन विशेष हसित वदन हेमगीरिने, पूजीओ पावन थइ, पुंडरीक पर्वतराज शतकुट, नमत अंग आवे नही, प्रीतिमंडण कर्मछंडण, शाश्वतो सुखकंद अ, श्वासमां सो वार वंदु, नमो गीरि गुणवंत अ...२ आनंदधर पुन्यकंद सुंदर, मुक्तिराजे मन वस्यो, विजयभद्र सुभद्र नामे, अचल देखत दिल वस्यो, पाताल मूल ने ढंक पर्वत, पुष्पदंत जयवंत हे, श्वासमां सो वार वंदु, नमो गीरि गुणवंत अ...३ बाहुबली मरुदेवी भगीरथ, सिद्धक्षेत्र कंचनगीरि, लोहिताक्ष कुलिनीवासमानस, रैवताचल महागीरि, शेजा मणी पुन्यराशी, कुंवरकेतु कहत है, श्वासमां सो वार वंदु, नमो गीरि गुणवंत अ...४ गुणकंद कामुक दृढशक्ति, सहजानंद सेवा करे, जय जगत तारण ज्योतिरूप, माल्यवंत ने मनोहरे, इत्यादिक बहु कीति माणेक, करत सुख अनंत हे, श्वासमां सो वार वंदु, नमो गीरि गुणवंत अ...५ (१०) नमो आदिदेवं, नमो आदिदेवं, कर सुर असुर, भक्तिथी जास सेवं, चिदानंद संदोह नीला निधाम, नमो विमलगीरि, तीर्थनाथं प्रधानं...१... नमो सिद्धक्षेत्रं, नमो पुंडरीकं, नमो हिमाचल सिद्धगीरि भक्ति छेकं, Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्यवंदन संग्रह नमो पुण्यराशि, नमो पर्वतेद्रं, नमो शत्रुजय देव सयल नतेन्द्रं...२... नमो मुक्ति गेहं, सुभद्र नगेन्द्र, द्रढ शक्ति महातीर्थ, हरे कर्म वृन्द, नमो पुष्पदंतं, महापद्मनाथं, धरा पीठ श्री कैलाश नमो मुक्तिधाम...३... पातालमूलं वली नमो शाश्वतं, नमो सर्व कामित प्रदं श्री मुक्तिदं च, नमो सर्व तीर्थावतारं सुतारं, नमो मुक्ति श्रीमंत निर्वाण हारं...४... प्रभाते उठीने जिन नाम जंपे, गीरिराज नामे सवि पाप कंपे, जिनेश उत्तम पद पद्म ध्यावे, चिदानंद निजरूप शुद्ध भव्य पावे...५... सिद्धाचल शिखरे चढी, ध्यान धरो जगदीश, मन वच काय अकाग्रशं, नाम जपो अकवीश...१... शत्रुजयगीरि वंदिओ, बाहुबली गुणधाम, मरुदेव पुंडरीकगीरि, रैवतगीरि विसराम...२... विमलाचल सिद्धराजजी, नाम भगीरथ सार, सिद्धक्षेत्र ने सहस्रकमल, मुक्तिनिलय जयकार...३... सिद्धाचल शतकूटगीरि, ढंकने कोडि निवास, कदंबगीरि लोहित्य नमो, तालध्वज पुण्यराश...४... Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७] तीर्थ- जिन विशेष महाबल दृढ़शक्ति सही, ओम ओकवीशे नाम, साते शुद्धि समाचारी, करीओ नित्य प्रणाम... ५... दग्ध शुन्य ने अविधि दोष, अति प्रवृत्ति जेह, चार दोष छंडी भजो, भक्ति भाव गुण गेह... ६... मनुष्य जन्म पामी करीओ, सद्गुरु तीरथ योग, श्री शुभवीरने शासने, शिवरमणी संयोग... ७... (१२) श्री सिद्धाचल सिद्धक्षेत्र, पुंडरीकगीरि कहीओ, विमलाचल ने सुरगीरि, महागीरि लहीओ...१... पुन्यराशी ने पर्वतनाथ, परवत इन्द्र होय, महातीरथ ने शाश्वतगीरि, दृढ़शक्ति जोय...२... मुक्तिनिलय ने महापद्म, पुष्पदंत वली जाणो, सुभद्र ने पृथिवीपीठ, कैलासगीरि मन आणो...३... पातालमूल पण जाणीओ, अकर्मक जेह, सर्वकाम मन पूरणो, टाळे भवदुःख रेह... ४... जात्रा नवाणुं कीजीओ, जिन उत्तम पद तेह, रूप मनोहर पामीओ, शिवलक्ष्मी गुण गेह... ५... (१३) शत्रुंजय गीरि वंदिओ, सकल तीरथ जग सार, आतम पावन कारणे, ओहिज तीर्थ निरधार... १... सिद्धगीरि सेवी शिव वस्या, महात्मा सनंतानंत, अह तीरथनी फरसना, अम होजो सुखवंत...२... तीर्थनाम यथार्थं ते, जेहथी भव तराय, विषय कषाय मूल भव तणा, तीर्थ भक्ते छेदाय...३... Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [८] चैत्यवंदन संग्रह थावर जंगम भेदथो, दुविध तीर्थ जणाय, जीन गणहरादि मुनिवरा, जंगम तीर्थ कहाय...४.. सिद्धाचल अष्टापदगीरि, आबु समेत सार, रैवतगीरि आदे सवि, स्थावर तीर्थ अवधार...५... चित्त चोखे शुद्ध साधशुं, तन्मय स्वरूपाधार, अकज वार ओम सेवतां, आपे भवनो पार. सेवना जोग असंख्य छे, पण भक्ति अंग बलवान, ते माटे रूप ओळखी, शामळ करे गुणगान...७... (१४) सोना रुपाने फुलडे, सिद्धाचल वधावो, ध्यान धरी दादा तणुं, आनंद मनमां लावो...१... पूजा करी पावन थयो, अम निर्मल देह, रचना रचुं शुभ भावथी, करूं कर्मनो छेह...२... अभविने दादा वेगळा, भविने हैडा हजूर, तन मन ध्यान अेक लग्नथी, कीधा कर्म चकचूर...३... दादा दादा हुं करू, दादा वसीया दूर, द्रव्यथी दादा वेगला, भावथी हैडा हजूर...४... कांकरे कांकरे सिद्ध थया, सिद्ध अनंतनुं ठाम, शाश्वत गीरिवर पूजतां, जीव पामे विश्राम...५... दुषमकाले पूजतां, इन्द्र धरी बहु प्यार, ते प्रतिमाने वंदना, श्वासमांहे सो वार...६... सुवर्ण गुफा मां पूजतां, रत्न प्रतिमा इन्द्र, ज्योतिमां ज्योति मीले, पूजे भवि सुखकंद...७... Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तोर्थ-जिन विशेष [६] रिद्धि सिद्ध घरे संपजे, पहोंचे मननी आश, त्रिकरण शुद्ध पूजतां, ज्ञानविमल प्रकाश...८... (१५) कल्लाण केलि निलयं, निन्नासं कम्म संघायं, सव्व तित्थाण नाहं च, पुंडरीयं गीरि वन्दे...१... देविंद वंदियं सिट्ट, दायगं शिव संपयं, मिच्छत्तणासगं धारं, पुंडरीयं गीरिं वन्दे...२... हणणं मय अट्ठण्हं, सज्झाणमालंबणं, निम्मल देसण गेहं, पुंडरीयं गीरिं वन्दे...३... दक्खसंतत्तज्जंतूणं, माधारं नगाहि वरं, सिद्धिदं गम्बुहं तं च, युगाइमं सया वन्दे...४... परमाणंद संदोह, मुसभं नाभिनन्दणं, जइंद पुञ्जकित्तियं, वंदामि सासयं तित्थं...५... कञ्चनशैल शिखा मुकुटं तं, नाभि तनुज मनुत्तम रूपं, आदि जिनेशमहं सुरपूज्यं, स्तौमि मुदा गुणरत्नवचोभिः.१ यत्र पदार्पणतः शुभभावो, ऽनन्तगुणः समुदेतिज नस्य, मुक्तिमनन्त जनाश्च यतोऽगुः, तं गीरिराजमहं प्रणमामि.२ तोर्थंकर प्रतिमा गुण कान्ता, यत्र निरीक्ष्य महागुणभाजः, हर्षभराः प्रणता भवि लोका:, तं गीरिराजमहं प्रणमामि.३ सायककोटिमितैमुनिवर्यै, रादिगणीप्रविधाय च यत्र, मुक्तिमगादुमवास तपस्यां, तं गीरिराजमहं प्रणमामि.४ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१०] चैत्यवंदन संग्रह श्री शत्रुजय सिद्धक्षेत्र, दीठे दुर्गति वारे, भाव धरीने जे चढे, तेने भवपार उतारे...१... अनंत सिद्धनो अह ठाम, सकल तीर्थनो राय, पूर्व नवाणुं ऋषभदेव, ज्यां ठविया प्रभु पाय...२. सूरजकुंड सोहामणो, कवड जक्ष अभिराम, नाभिराया कुलमंडणो, जिनवर करू प्रणाम...३... सकल सुहंकर सिद्धक्षेत्र, सिद्धाचल सुणीओ, सुर नरपति असुर खेचर, निकरे जे थुणीओ...१... सकल तीरथ अवतार सार, बहु गुण भंडार, पुंडरीक गणधर जब, पाम्या भवपार...२... चैत्री पुनमने दिने अ, कर्म मर्म करी दूर, ते तीरथ आराधिये, दान सुयश भरपूर...३... (१६) श्री शत्रुजय सिद्धक्षेत्र, सिद्धाचल साचो, आदीश्वर जिनरायनो, जिहां महिमा जाचो...१.. इहां अनंत गुणवंत साधु, पाम्या शिववास, ओ गीरि सेवाथी अधिक, होय लील विलास...२... दुष्कृत सवि दूरे हरे अ, बहु भव संचित जेह, सकल तीर्थ शिर सेहरो, दान नमे धरी नेह...३... (२०) श्री शत्रुजय सिद्धक्षेत्र, पुंडरिक गीरि साचो, । विमलाचल ने तीर्थराज, जस महिमा जाचो...१... Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [११] मुक्तिनिलय शतकूट नाम, पुष्पदंत भणीजे, महापद्मने सहस्रपत्र, गीरिराज कहीजे...२... इत्यादिक बहु भांतिसुं ओ, नाम जपो निरधार, धीरविमल कविराजनो, शिष्य कहे सुखकार...३... (२१) चैत्रीपुनमने दिने, जे इण गीरि आवे, . आठ सत्तर बहु भेदशं, जे भक्ति रचावे...१... आदीश्वर अरिहंतनी, तस सघलां कर्म, दूर टले संपद मले, भांजे भव भर्म...२... इह भव परभव भवे भवे, ऋद्धि वृद्धि कल्याण, ज्ञानविमल गुणमणि तणो, त्रिभुवन तिलक समान....३ (२२) शत्रुजय शिखरे चढी स्वामि, कंइये हुं अचिशं, रायण तरुवर तले पाय, आणंद चरचिशुं... नहवण विलेपन पूजना, करी आरती उतारीश, मंगल दीपक ज्योति थुति, करी दूरित निवारीश...२... धन धन ते दिन माहरो अ,गणीश सफल अवतार, नय कहे आदीश्वर नमो, जिम पामो जयकार...३ (२३) जोयण शत परिणाम अक, जे पहिले आरे, बोजे आरे जोयण जेह, अॅशी विस्तारे...१... तिम त्रीजे जोयण साठ, चोथे पचाश, पांचमें आरे बार सार, विस्तार छे जास...२... Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१२] चैत्यवंदन संग्रह छट्टाने अंते होशे ओ, अक हस्त जस मान, अह अवस्थित छे सदा, ते प्रणमे मुनि दान...३... (२४) भरत नरेसर भरत क्षेत्र, चक्रि इण ठामे, आव्यो संघ सजी सनूर, मन आणंद पामे...१ कंचनमय प्रासाद कीध, उत्तंग उदार, मंडप तोरण विविध जाल, मालित चउ बार... २ छणु पणसय मित्त मणी तणी, थापी ॠषभनी मूर्ति, दान दयाकर तीर्थथी, पसरी जग जस कीर्ति...३ (२५) अ तीरथनो उपरे, अनंत तीर्थंकर आव्या, वली अनंता आवशे, समतारस भाव्या... १... आ चोवीशी मांहि ओक, नेमीश्वर पाखे, जिन श्रेवीश समोसर्या, ओम आगम भांखे...२... गणधर मुनिवर केवली, समोसर्या गुणवंत, प्रेमे ते गीरि प्रणमतां, हरखे दान हसंत...३... (२६) ओ तीरथनी उपरे, थया उद्धार असंख्य, तिम प्रतिमा जिनरायनी, थइ तास नवि संख्य... १... अजित शांति जिनराज इत्थ, रह्या चौमासी, अ तीरथे मुनि अनंत, हुआ शिवपुर वासी...२... चैत्री पूनमने दिने से, महिमा जास महान, अ तीरथ सेवन थकी, दान वधे बहुवान...३... Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तोर्थ - जिन विशेष [१३] [२७] अष्टापद आदि अनेक, जग तीरथ मोटां, तेहथी अधिकुं सिद्धक्षेत्र, अह वचन नवि खोटां ...१... जे माटे ओ तीर्थ सार, सासय प्रतिरूप, जेह अनादि अनंत शुद्ध, इम कहे जिन भूप...२... कलिकाले पण जेहनो ओ, महिमा प्रबल पडूर, श्री विजयराजसूरिदथी, दान वधे बहु नूर...३... [ २८ ] धन धन विमल गीरिन्द, धन धन ऋषभ जिणन्द... १ महिमा को नहीं पार, सकल जीव हितकार... २ गीरि शिव सुखमाल, धन धन सोरठ देश को, सिद्धाचल गीरि मंडणो, सिद्धि दायक यह गीरि, अनन्त मुनि मुक्ते गया, दर्शन फरशन जे करे, यह कोड भवों में जे कीया, पाप छुटे ततकाल ... ३ कल्पवृक्ष चिंतामणी, इण भवमें गीरिवर सेवनसे लहे, भव भव तीर्थ निमित्त भासन सत्ता, प्रगट सच्चिदानंद आतमा, निर्मल हितकार, सुख अपार...४ सिद्ध स्वरूप, ज्ञान पुंडरिक स्वामिना चैत्यवंदनो [१] अनूप... ५ आदीश्वर जिनरायनो, गणधर गुणवंत, प्रगट नाम पुंडरीक जास, महीमांहे महंत...१... पंच कोड साथे मुणिंद, अणसण जिहां कीध, शुक्ल ध्यान ध्याता अमूल, केवल तिहां लीध ...२... Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१४] चैत्यवंदन संग्रह चैत्री पुनमने दिने अ, पाम्या पद महानंद, ते दिनथी पुंडरीकगीरि, नाम दान सुखकंद...३... [२] श्री शत्रुजय माहत्म्यनी, रचना कीधी सार, पुंडरीकगीरीना स्थापनार,प्रथम जिन गणधार...१... अक दिन वाणी जिन तणी, सुणी थयो आनंद, आव्या शत्रुजयगीरि, पंच क्रोड सहरंग...२... चैत्री पुनमने दिने अ, शिवशं कीधो योग, नमीओ गीरिने गणधरू, अधिक नहीं त्रिलोक...३... [३] आदीश्वर जिनरायनो, पहेलो जे गणधार, पुंडरीक नामे थयो, भविजनने सुखकार...१... चैत्री पुनमने दिने, केवलसीरि पामी, इण गीरि तेहथी पुंडरीक, गीरि अभिधा पामी...२... पंचकोडि मुनिशुं लह्याओ,करि अनशन शिवठाम, ज्ञानविमलसूरि तेहना, पय प्रणमे अभिराम...३. रायण पगला नु चैत्यवंदन आदि जिनेश्वर रायना, छे पगला मनोहार, भाव सहित भक्ति करे, पहोंचाडे भवपार...१. रायण रुख तळे बिराजी, दीओ जगने संदेश, भवियण भावे जुहारीओ, दूर करे संक्लेश...२... पगले पडोने विनवू, पूरजो मारी आश, ज्ञान तणी विनती सुणो, देजो शिवपद वास...३... Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [१५] घेटी पगला तु चैत्यचंदन सर्व तीर्थ शिरोमणी, शत्रुंजय सुखकार, घेटी पगलां पूजत्तां, सफळ थाय अवतार... १... पूर्व नवाणुं पधारीया, जिहां श्री अरिहंत, ते पगलाने वंदीओ, आणि मन अतिखंत...२... चोविहारो छठ करी, घंटी पगले जाय, धर्मरत्न पसायथी, मनवांछित फळ थाय...३... अजित-शांति न चैत्यवंदन सिद्धाचल गीरि समरीओ, भेटे भवदुःख जाय, म विना वीश प्रभु, पुनित करे गीरिराय...१... इण गीरि चोमासुं रह्या, बीजा अजित नाथ, तिम वळी चक्री पांचमां, सोळमा शांतिनाथ ...२... नंदिषेणजी महामुनि, आवे वंदन काज, देहरी देखी तेहनी, मनमांहे अति लाज...३... अजित-शांति स्तवना करे, ओक मने उदार, तीरथ जिनवर भक्तिथी, थाये देवनी वहार... ४... पूरव पश्चिम जे हता, आजु बाजु थाय, बीलीमोरामां ते थुणे, दीपविजय कविराय... ५... पंचतीर्थ ना चैत्यवंदनो [१] सुखदाइ श्री आदिनाथ, अष्टापद वंदो, चंपापुरी श्री वासुपूज्य, मुख पुनम चंदो...१... गिरनारे श्री नेमिनाथ, सुख सुरतरु कंदो, समेतशिखरे श्री पार्श्वनाथ, पूजी आणंदो...२... Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१६] चैत्यवंदन संग्रह अपापा नयरी वीरजी अ, कल्याणक शुभ ठाम, रूपविजय कहे साहिबा, अ पांचे आतमराम...३. [२] धुर समरु. श्री आदिदेव, विमलाचल मंडण, नाभिराया कुल केशरी, मरुदेवी नंदन...१... गिरनारे गिरुवो वांदशें, स्वामी नेमकुमार, बालपणे चारित्र लीयो, तारी राजुल नार... बंभणवाडै वीर जिणंद, मनवंछित पूरे, सायण डायण भूत प्रेत, तेहना मद चूरे... श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ, महीमाये महतो, गोडी दोडी जइ, पूरे मननी खंतो...४... चक्रवर्ती पदवी तजी, लीधो संजम भार, शांति जिनेसर सोलमा, नित नित करू' जुहार...५... पंचे तेरथ जे नमे, प्रह उठी नरनार, कमलविजय कवि इम कहे, तस घर जय जयकार...६... विमलाचल गीरि वंदिये, आदिनाथ अरिहंत, रैवत गीरि राजे सदा, ब्रह्मचारी भगवंत.. आबू तीरथ अति भलो, भेट्या लहे भवपार, जिन चोवीशे वंदिये, अष्टापद श्रीकार...२... समेतशीखर गीरि उपरे, सिध्या जिनवर वीश, वासुपूज्य चंपापुरी, आपे पदवी जगीश...३... पावापुरी श्री वीरजी, भवदुःख भंजनहार, चैत्य नम जिनराजनां, तीनहि लोक मोझार...४... Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तोर्थ-जिन विशेष [१७] चरिम जिणंदे भाखिया, शाश्वताशाश्वत जेह, कोर्तिचंद्र मोहे दीजिये, शिवसुंदरी वर गेह...५... [४] सिद्धाचल श्री नाभिराय-नंदन जिन नमीये, शांतीश्वर हत्थिणाउरे, भजी भवदुःख गमीये.. गढ गिरनारे नेमिनाथ, जादव कुलचंद, पार्श्वप्रभु खंभायते, दीपे दिणइंद. श्री साचोरे शोभता अ, वीर प्रभु सुविहाण, तीरथ पांचे नित नमो, करण क्षमा कल्याण...३... आदिदेव अरिहंत नमुं, समरु तारु नाम, ज्यां ज्यांप्रतिमा जिन तणी,त्यां त्यां करू प्रणाम...१... शत्रुजय श्री आदिदेव, नेम नमुं गिरनार, तारंगे श्री अजितनाथ, आबु रिखव जुहार...२... अष्टापद गीरि उपरे, जिन चोवीशे जोय, मणीमय मूरति मानशं, भरते भरावी सोय...३... समेतशीखर तीरथ वडं, जिहां वीसे जिन पाय, वैभारगीरि उपरे, श्री वीर जिनेसर राय...४... मांडवगढनो राजीयो, नामे देव सुपास, ऋषभ कहे जिन समरतां, पहोंचे मननी आस...५... पंचतीर्थ अंतर्गत शत्रुजय नु चैत्यवंदन [६] विमलाचल गीरि भेटता, मुज मन हर्ष न माय, आदिदेव अलवेसरु, सुंदर मूरति सोहाय...१... Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • [१८] चैत्यवंदन संग्रह प्रभु सामे पद्मासने, पुंडरिक गणधार, जोतां नयन उलसतां, वर्षे अमृतधार...२... रायण तरुवर सोहता, तिम घेटीओ जाण, प्रभु पगला वळी वंदतां, पामे हर्ष सुजाण...३... राम पांडव नारद वळो, सांब प्रध्युम्न जेह, नमि विनमि द्राविड ने, वारिखिल्लजी तेह...४... इण तीर्थे इम मुनिवरा, आणे कर्मनो अंत, धर्मरत्न पद आपजो, भागे सादि अनंत...५... पंचतीर्थ अंतर्गत गिरनारजी नु चैत्यवंदन [७] दीक्षा केवल ने वळी, बीजं निरवाण, त्रण कल्याणक उपना, गिरनारे ते जाण...१... अनंत चोवीशीजे अनंत, कल्याणक वखाण, वर्तमानमां नेमिनाथना, गिरनारे ते जाण...२... अनागत जिनवर सवि, पामशे शिवपुर ठाण, सादि अनंत भागे सुखी, गिरनारे ते जाण...३... संप्रति ने संग्रामनी, कुमारपालनी जाण, मंदिर श्रेण सोहामणो, गढ गिरनारे वखाण.. मोहराय मल्ल भागतो, मांगे कदि नवि दाण, धर्मरत्न पसायथी, गिरनारे चित्त आण...५... पंचतीर्थ अंतर्गत आबुजी नुचैत्यवंदन [८] आबु अचलमां शोभता, जिनवर बिंब विशाल, दर्शनथी दर्शन मिले, जाये कर्म जंजाल...१... आदिसर नेमिसरू, तेहना बिब मनोहार, बावन देवरी सोहतो, पाप मीटावणहार...२... Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [१६] धातुमय प्रतिमा वळी, कारीगर मंदिर, कोरणी घोरणी तिहां घणी, पहोंचाडे भवतीर...३... देराणी जेठाणी गोख जे, सर्जनहार अनूप, वस्तुपाल विमलतणां, गावे रूप सरूप...४... भाव धरीने भेटीयो, उपन्यो अति आणंद, धर्मरत्न कृपा करी, देजो परमाणंद...५... पंचतीर्थ अंतर्गत अष्टापदजी नु चैत्यवंदन [६] अष्टापद गीरि शोभता, जिन बिंब मनोहार, भरते भावे भरावीया, पामी प्रभु आधार... ऋषभ अजित पूरव दिशे, संभव अभिनंदन, सुमति पद्मप्रभु वळी, दक्षिण करू वंदन...२ सुपारस ने चंद्रप्रभु, सुविधि शीतलनाथ, श्रेयांस वासुपूज्यजी, विमल अनंत वर नाथ...३... पश्चिमे ते अड कह्या, उत्तरमा दश जाण, धर्म शांति कुंथु अरु, मल्लिनाथ वखाण...४... मुनिसुव्रत नमि नेमिने, पार्श्वनाथ महावीर, जगचिंतामणी वंदतां, गौतम गणधर धीर...५... निज लब्धि जे चढे, अष्टापद गिरीराज, ते भव मुक्ति पामता, धर्मरत्न महाराज...६... पंचतीर्थ अंतर्गत समेतशिखरजी नु चैत्यवंदन [१०] च्यवन जन्म दीक्षा वळी, नाण अने निर्वाण, सवि तीर्थंकर जाणीये, कल्याणक गुणखाण...१... वर्तमान चोवीशीना, अकसो वीश सोहाय, ते मांहेला वीशना, सम्मेत गीरिजे थाय...२... Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२०] चैत्यवंदन संग्रह आदि वीर तिम नेमजी, वासुपूज्य आचार, ते छांडी सवि जिनवरा, सम्मेत शिव विचार...३... समेतशिखर फरशी करी, सिध्या साधु अनेक, इम जाणी भवि फरसरो, जे होशे सुविवेक...४... समेतशिखर गीरि भेटवा, मुज मनमांहे कोड, मानवभव पुन्ये लही, वंदु बे कर जोड...५... कलश तपगच्छमां लीजे, विजय धर्मसूरि जे, तोरथ समरीजे, पंच अ भावथी जे, दर्शन शुद्ध दीजे, दासना दुःख हरीजे, रत्नविजय नमीजे, पार भवनो लहीजे, शाश्वता अशाश्वता तीर्थ ना चैत्यवंदनो प्रह उठीने प्रणमीये, मनमां धरी आणंद, त्रिभुनमांही शाश्वतां, जिनधर बिंब जिणंद...१ उर्ध्व लोके देहरां, कह्या चोराशी लाख, सहस सत्ताणुं जाणीये, उपर त्रेवीश लाख...२ उर्ध्व लोक जिनबिंब छे, अक सो बावन क्रोड, चोराणुं लख चुमालीस सहस, सातसें आठ वली जोड...३ अधो लोकमां देहरां, सात क्रोड बहोंतेर लाख, भवनपतिमां जाणीये, जीवाभिगम साख...४ अधो लोक जिनवर नम, तेरसें कोडि वली जोय, नेव्यासी कोडि साठ लाख, स्थापना जिन होय...५ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तोर्थ-जिन विशेष [२१] तिर्छा लोके देहरां, बत्रीशसें जोय, ओगणसाठ उपर कह्या, समकिती माने सोय...६ तीर्छा लोके हरखे नमुं, त्रण लख जिनबिंब सार, अकाणुं हजार वलो, त्रणसें वीश मन धार...७ त्रण भुवनमां देहरां, आठ क्रोड छप्पन लाख, सत्ताणुं हजारने, बत्तीशसय ब्यासी लाख...८ त्रिभुवनमांहे जिन नम, पंदरसे बैंतालीश क्रोड, अडवन लख छत्रीस सहस, अॅसी नमुं कर जोड...६ असंख्याता देहरां, व्यंतरमाही जाण, ज्योतिषीमांही तिम वली, असंख्यात प्रमाण...१० ऋषभानन पूरव दिशे, दक्षिण दिशे वर्धमान, चंद्रानन पश्चिम मही, वारिषेण उत्तर स्थान...११ चार नाम ते शाश्वता, धनुष पांचसे देह, सात हाथनी वली कही, जिन पडिमा गुणगेह...१२ हवे कहुं अशाश्वतो, पडिमा गुण भंडार, सिद्धाचल गिरनारे, अष्टापद गिरि सार...१३ आबु तीरथ अति भलं, समेतशिखर मन धारो, वीस जिनेसर शिव वर्या, पाम्या भवनो पारो...१४ पावापुरी चंपापुरी, राजगृही मनोहार, तीरथ नाम सोहामणा, आनंद मंगल कार...१५ महीयल मां तीरथ घणां, वंदो थई उजमाळ, खिमाविजय जस शुभ मने, नित नित मंगलमाळ...१६ [२] कोडि सात ने लाख बहोतेर वखाणं, Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्यवंदन संग्रह भवनपति चैत्य संख्या प्रमाणुं, अशी सो जिनबिंब ओक चैत्य ठामे, नमो सायस जिनवरा मोक्ष कामे... १ कोडि तेरशे ने नेव्यासी वखाणो, साठ लाख उपर सवि बिंब जाणो, असंख्यात व्यंतर तणां नग्र नामे ... नमो...२ असंख्यात तिहां चैत्य तिम ज्योतिषीये, बिंब ओक शत अंशी भाख्या ऋषिये, न ते महासिद्धि नवनिधि पामे... नमो... ३ वली बार देवलोकमां चैत्य सार, ग्रैवेयक नवमांही देहरां उदार, तिम अनुत्तरे देखीने म पडो भामे... नमो...४ चोराशी लख तिम सत्ताणुं सहस्सा, उपर त्रेवोश चैव्य शोभाये सरसा, हवे बिंब संख्या कहुं तेह धामे... नमो... ५ सो कोडि ने बावन कोडि जाणो, चोराणुं लख सहस चौल आणो, सय सात ने साठ उपर प्रकामे... नमो...६ मेरू राजधानी गजदंत सार, जमक चित्र विचित्र कांचन वखार, [२२] इखुकार ने वर्षधर नाम ठामे... नमो...७ वली दोर्घ वैताढयने जंबु आदि वृक्षे दिशा गज छे तेह, कुंड महानदी द्रह प्रमुख चैत्य ग्रामे ... नमो...८ वृत्त जेह, Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तोर्थ-जिन विशेष [२३] मानुषोत्तर नगवरे जेह चैत्य, नंदीसर रूचक कुंडले छे पवित्त, तिलिोकमां चैत्य नमीये सुठामे...नमो... प्रभु ऋषभ चंद्रानन वारिषण, वलो वर्द्धमानभिधे चार श्रेण, अह शाश्वता बिंब सवि चार नामे...नमो...१० सवि कोडि सय पनर बायाल धार, अठावन लख सहस छत्रीस सार, अॅशी जोइश वण विना सिद्धि धामे...नमो...११ अशाश्वत जिनवर नमो प्रेम आणी, केम भांखिये तेह जाणी अजाणी, बहु तीर्थने ठाम बहु गाम गामे...नमो...१२ ओम जिन प्रणमीजे मोह नपने दमीजे, भव भव न भमीजे पाप सर्वे गमीजे, परभाव वमीजे, जो प्रभु अट्ठमीजे, पद्मविजय नमीजे आत्मतत्त्वे रमीजे....नमो...१३ सकल मंगलकार अही, सिद्ध सकल पय ठाण, स्याद्वाद साधन पद अही, अध्यात्म गुण ठाण, सही अ नमो जिणाणं...१ बहोंतेर लक्ख कोडि भवणवइ, सासय जिणहर माणं, तेरशे नेव्यासी कोडि सग सट्टी, बिंबह परिमाणं...सही...२ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - [२४] चैत्यवंदन संग्रह मेरु वैताढ्य वखारा कंचन, यमक कुंड द्रह जाणुं, रूचक कुंडल नंदीसर प्रमुखे, ___ सुंदर अशी चेइआणं...सही...३ तिलख इक्यासी सहस चारसो, अॅशी अधिक बिंब जाणं, रूचक कुंडल नंदीसर प्रमुखे, सुंदर अंशी चेइआणं...सही...४ अडशत नव सहसा चालीशा, बिंब तणुं परिमाणं, सग्वाले बत्रीशसें गुणसट्टी, तिर्यग् लोके चेइआणं...सही...५ प्रतिमा त्रणलख सहस अकाj, चउसय तेवीश परिमाणं, साठ चोबारा अवर तिबारा, रूचक कुंड नंदि ठाणं...सही...६ बार देवलोके नव ग्रैवयके, अनुत्तर पंच विमाणं, लाख चोराशी सहस सत्ताj, वीश चेइ जाणुं...सही...७ ओक सो बावन कोडि लख चोराणु, सहस चुमालीस आणुं, सातसो साठ उपर उर्ध्व लोके, जिन पडिमा मन आणु...सही...८ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तोर्थ - जिन विशेष त्रिभुवनमांही सासय जिनहरु, आठ कोडि अथ प्रतिमा संख्या, सगवन्न लक्ख बसें ब्यासी, परसें कोडि बेतालीस कोड, सुणजो समकित वासी... सही...ε छत्रीस सहस अंशी वलि साधिक, सासय बिंबनी संख्या... सही...१० कसोवीस त्रिबारे प्रतामां, चोमुखे सत चोवीश, अकशत अंशी जगीश... सही... ११ वारिषेण चउ नामे, जिनधर पडिमा माने... सही...१२ समकित गुण दीपावे, कुमतिने मन नवि भावे... सही...१३ पांच सभा तिहां साठ वधारो, ऋषभ चंद्रानन ने वर्द्धमान, व्यंतर ज्योतिष मांहे असंखा, सकल सुरासुर भावना भावे, [२५], परित संसार करी शिव जावे, पाताले ने तिर्यग् लोके, तिम अट्ठावन लक्खा, कप्पे सगकर पणसय घणु माणु, पणसय घणु परिमाण, सासय असासय जाणु... सही... १४ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२६] चैत्यवंदन संग्रह तीर्थ विशेष वली सायस विणु, शेजादिक बहुला, ते सविहुने त्रिविधे नमतां, पातिक जाओ सघलां...सही...१५ ज्ञानविमल प्रभु नाम जपंता, . लहि कोडि कल्याण, मनह मनोरथ सघलां सीझे, ___ जनम सफल सुविहाण...सही...१६ भयहर भगवंताणं जयतूर, नमो जिणाणं सही, नमो अविचल आदिगराणं, - सही नमो अरिहंताणं...सही...१७ चतुर्विशतोहार्हता वंदिताश्च, ऽधुना संस्तविषये त्रिलोके विलोकाः, चतुर्धाभिधाः सद्गुणालंकृतेभ्यो, नमामि मुदा शाश्वताऽशाश्वतेभ्यः...१ सुधर्मादिके ताविषे चैत्यमाला, तथा चांतिमेनुत्तरेऽर्हद्विशाला वसुर्वेद नंदर्षि खद्वित्रिकेभ्यो...नमामि...२ गभस्त्थालये शीतरश्मोनिवासे, ग्रहे तारके चोडुनी चैत्यगेहाः, असंख्या जिनेंद्रावितेंद्रा कृतेभ्यो...नमामि...३ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तोर्थ-जिन विशेष [२७] वसुद्विकृते व्यंतरेऽसंख्यः चैत्येऽ, सुराद्या देशानां जिनौकाः स्मृताश्च ग्रहांकामिताः पारगाः संति तेभ्यो...नमामि...४' सुराद्रौ नगे नैषधे नीलवंते, गिरौ कुंडले रूचके नागदंते, हिमाद्रौ च वैताढय ग्राम्या चितेभ्यो...नमामि...५ तरौ शाल्मली जंबू नंदीश्वरेषु, वखारे विचित्रे त्रिकूटे च कूटे, मुकूटे क्षितौ चक्रवालां तरेभ्यो...नमामि...६ स्थिते चित्रकूटेऽबू दे सिद्धक्षेत्रे, समेतोज्जयंता- चलाऽष्टापदेषु, कुलाद्रौ च विंध्याचले रौहणेभ्यो...नमामि...७ विराटे अघाटे कुरौ मेदपाटे, श्रिमाले च भोटे स्थिता चक्रकोटे, द्रहे देवकटे द्रविडेऽचितेभ्यो...नमामि...८ तिलंगे कलिंगे प्रयागे च बोधे, सुराष्ट्रांगबंगाई गंगापगासु, जनैः कान्यकुब्जे तमाले चितेभ्यो...नमामि...६ जले कौशले नाहले जंगले वा, स्थले पल्लिदेशे वने सिंहले वा, नगर्युज्जयिन्यादिकास्वंतरेभ्यो...नमामि...१० अनेनैवसंध्यत्ववंध्यं त्रिसंध्यं, जिनाः संस्तुवंतिचतुर्मासि घस्त्रे, भवेत्तीर्थयात्रा गृहे तिष्ठतेभ्यो...नमामि...११ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२८] चैत्यवंदन संग्रह - - इति शाश्वत मुख्य विभोः स्तवन, रोचित लचिता सुगुणैः प्रवरं, परिरंजितदक्ष सभानिकरं, कुरुतां शुभ वीर सुखं सखरं..१२ सद्भक्त्या देवलोके रविशशि भवने व्यंतराणां निकाये, नक्षत्राणां निवासे ग्रह गण पटले तारकाणां विमाने, पाताले पन्नगेंद्रे स्फूट मणिकिरणेध्वस्त सांद्रांधकारे, श्रीमत्तीर्थंकराणां प्रतिदिवसमहं तत्र चैत्यानि वंदे...१ वैताढये मेरूशृंगे रूचक गीरिवरे कंडले हस्तिदंते, वख्खारे कूट नंदीश्वर कनकगिरौ नैषधे नीलवंते, चित्र शैले विचित्रे यमक गीरिवरे चक्रवाले हिमाद्रौ ...श्रीमत्...२ श्री शैले विध्य शृंगे विमल गोरिवरे ह्यबुदे पावकेवा, सम्मेते तारकेवा कुलगीरि शिखरेऽष्टापदे स्वर्णशैले, सह्याद्रौ वैजयंते विपुल गीरिवरे गुर्जरे रोहणाद्रौ ...श्रीमत्...३ आघाटे मेदपाटे क्षितितर मुकुटे चित्रकूटे त्रिकुटे, लाटे नाटे च घाटे विटपि घन तटे देव कुटे विराटे, कर्णाटे हेमकूटे विकट तरकटे चक्रकूटे च भेदे ...श्रीमत्...४ श्रीमाले मालवे वा मलयिनि निषधे मेखले पिच्छले वा, नेपाले नाहलेवा कुवलयतिलके सिंहले केरले वा, Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तोर्थ - जिन विशेष [२६] ले कोशले वा विगलित सलिले जंगले वा तमाले, ... श्रीमत्... ५ अंगे बंगे कलिंगे सुगत जनपदे सत्प्रयागे तिलंगे, गौड चौडं मुरंगे वर तर द्रविडे उद्रियाणं चपोंद्रे, आद्रे माद्रे पुलिद्रे द्रविडे कुवलये कान्यकुब्जे सुराष्ट्रे ... श्रीमत्... ६ चंपायां चंद्रमुख्यां गजपुर मथुरा पत्तने चोज्जयिन्यां, कौशांब्यां कोशलायां कनक पुरवरे देवगिर्यां च काश्यो, नाशिक्ये राजगेहे दशपुर नगरे भद्दिले ताम्रलिप्त्यां श्रीमत्... ७ स्वर्गे मर्त्येऽन्तरिक्षे गीरिशिखर हे स्वर्णदी नीरतेरे, शेलाग्रे नागलोके जलनिधि पुलिने भूरुहाणां निकुंजे, ग्राम्येऽरण्ये वने वा स्थल जल विषमे दुर्ग मध्ये त्रिसंध्यं ...श्रीमत्...८ श्रीमन्मेरो कुलाद्रो रुचक नगवरे शाल्मले जंबूवृक्षे, चौद्याने चैत्यनंदे रतिकर रुचके कौंडले मानुषांके, इक्षुकारे जिनाद्रौ दधिमुख च गिरौ व्यंतरे स्वर्गलोके, ज्योतिर्लोके भवन्ति त्रिभवन वलये यानिचैत्यालयानि ...श्रीमत्... इत्थं श्री जैनचैत्य स्तवनमनुदिनं ये पठति प्रविणाः, प्राद्येत्कल्याणहेतुं कलिमल हरणं भक्तिभाजस्त्रिसंध्यं, तेषां श्री तीर्थयात्रा फलमतुलमलं जायते मानवानां, कार्याणां सिद्धि रुच्चैः प्रमुदित मनसां चित्तमानदंकारि श्रीमत्... १० Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३०] चैत्यवंदन संग्रह अरिहंत देवा चरणनी सेवा, पंदर भेदे सिद्ध प्रणमेवा, आयरिम उवझाय ओ सर्व साधुना नाम, __ अ पंच जोगे करू प्रणाम...१... अतींत अनागत ने वर्तमान, संप्रति कालेवीश विहरमान, __ उत्त्कृष्टा अकसोसीत्तर जिन नाम... पंच...२ बार देवलोके नव अवेयके पांच अनुत्तर पाताल जोगे, तिर्छा लोके जे जिन नाम... पंच...३ शाश्वता जे जिनना कह्या, अशाश्वता पडिमा शुं लह्या, शाश्वता अशाश्वता अभिराम...ओ पंच...४ देख्या न देख्या श्रवणे न सुणोया, भेट्या न भेट्या भावे ज भणिया ज्ञानविमल कहे प्रभु समरथ देवा, भवोभव देजो तुम पद सेवा...५ सीमंधर प्रमुख नम, विहरमान जिन वीश, ऋषभादिक वली वंदिये, संप्रति जिन चोवीश...१ सिद्धाचल गिरनार आबु, अष्टापद वली सार, समेतशिखर ओ पंचतीर्थ, पंचमी गति दातार...२ उर्ध्व लोके जिनवर नमु, ते चोराशी लाख, सहस सताणुं उपरे, तेवीश जिनवर भाख...३ ओक सो बावन कोड वली, लाख चोराणुं सार, सहस चुम्मालीस सातसें साठ, जिन पडिमा उदार...४ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तोर्थ-जिन विशेष [३१] अधो लोके जिनभवन नमु, सात कोड बहोंतेर लाख, तेरसे कोड नेव्यासी कोड, साठ लाख चित्त राख...५ व्यंतर ज्योतिषीमां वली, जिन भवन अपार, ते भवि नित्य वंदन करो, जेम पामो भवपार...६ तिर्छा लोके शाश्वता, श्री जिनभवन विशाळ, बत्तीशसें ने ओगणसाठ, वंदु थइ उजमाळ...७ लाख त्रण अकाणुं सहस, त्रणसे वीश मनोहार, जिन पडिमा अ शाश्वती, नित नित करू जुहार...८ त्रण भुवनमाहे वली, नामादिक जिन चार, सिद्ध अनंता वंदीये, महोदय पद दातार...६ सिद्धाचल गिरनार गीरि, अर्बुद अति उत्तंग, समेतशिखर जिन वीशनां, मोक्ष कल्याणक चंग...१... कोटिशीला अष्टापदे, मेरू रूचक समीप, शाश्वत जिनवर गृह घणां, श्री नंदीसर द्वीप...२... देवलोक ग्रैवेयक छे, भवनपति वर भवन, जिनवर बिंब अनेक छ, पूजो ते सर्व सुमन...३... विहरमान जिनवर भला, अतीत अनागत अद्धा, नाम स्थापना द्रव्य भाव, चार निक्षेपा लद्धा...४... सहजानंदी सुखक रु अ, परम दयाळ प्रधान, पुन्य महोदये पूजतां, लहीले परम कल्याण...५. विहरमान जिणंद वंदु, उदीत केवल भास्कर, असंख्य लोक निवास प्रभुना, शाश्वता अघ नास्करं...१ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३२] चैत्यवंदन संग्रह अष्टापदे समेत चंपा, तेम गढ गीरि मंडणो, श्री वर पावा विमल गीरिवर, केसरा दुःख खंडणो... २ आबु तारणगढ सुचंगा, शिव अभंगा कारणा, श्री अंतरीख जिणंद पास, थंभणा दुःखवारणा...३ शंखेसरा अलवेसरा, जग पावना जीरावला, चिंतामणी फलोधि पार्श्व, मल्लि भवोदधि नावला...४ वरकाण राण नाडोल नगरे, वीर घाणे गोलीये, नाडुलाइ श्री वीर राता, वंदिये भव तोडोये... ५ श्री पाली पाटण राजनगरे, घनोद मंडण पासजी, इम जेह थानक चैत्य जिनवर, भविक पूरे आसजी... ६ सहु साधु गणधर केवली, मुनि संघ भवजल तारणा, शुद्ध ज्ञान दर्शन चरण साचा, महानंदना कारणा... ७ अ तीरथ वंदन भवनिकंदन, भविक शुद्ध मन कीजीये, निज रूप धारी भरम फारी, अध न आतम लीजिये... समेतशिखर ना चैत्यवंदनो पूरव देशे दीपतो, गीरूओ गिरिवर नित्य, तीर्थ शिखर सम्मेतको चाहुं दर्शन नित्य... १... प्रथम चरम बारम प्रभु, बावीशम विण वीश, अणसण करो इणगिरिवरे, शिव पहोता सुजगीश...२... सुणिये इणपरि सूत्र में, जिनवर गणधर वाण, भविजन भेटो भक्ति शुं, तीरथ करण कल्याण...३... 1 ८ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तोर्थ-जिन विशेष [३३] श्री सीमंधर स्वामि ना चैत्यवंदनो श्री सीमंधर जिनवरा, विचरे जंबूद्विपे, पुकखलवइ विजये नगर, पुंडरिकगिणी दीपे...१... सुत श्रेयांस राजा तणो, सोवन कंचन काय, पूरव चोराशी लाखनु, आयु जास सोहाय...२... पांचशे धनुष शरीर छे, वृषभ लंछन पाय, रुकमिणी राणी नाहलो, सत्त्यकी जेहनी माय...३... दश लख केवली जेहने, सो कोडि मुनि स्वामी, साधवी सो कोडि कही, श्रावक संख्या न पामी...४... प्रातिहारज आठ छे, वाणी गुण पांत्रोश, पूरव विदेहे जाणीये, नमतां लहीये जगीश...५... इह भरते प्रभु कुंथुजी, सिद्धिपुर पोहते, अरजिन जन्म हुवो नहीं, अ अंतर सोहते...६... सीमंधर जिन उपना, सुरपति महोत्सव कीधो, सुव्रत नमी जिन अंतरे, दीक्षा कल्याणक सीधो...७... उदय पेढाल भावि प्रभ, तस अंतर कहेवाय, सीमंधर जिन पामशे, अविनाशी पुर ठाय...८... आ भरते पण कोई जीव, सुलभबोधि जेह, जाप जपे तुज नामना, लाख संख्याओ तेह...६... भवस्थिति निर्णय तस हुआ, अथवा ध्यान पसाये, उपजी विदेह केवल लहे, नवमे वरसे उच्छाहे...१०... शासनसूरि पंचांगुली, सवि सानिध्य सारे, सीमंधर जिन सेवना, दुःख दोहग वारे...११... Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३४] चैत्यवंदन संग्रह प्रह उठीने नित्य नमुं, आणी मन आणंद, लक्ष्मीसूरि प्रभु नामथी, प्रगटे परमाणंद...१२.. सीमंधर परमातमा, शिवसुखना दाता, पुक्खलवइ विजये जयो, सर्व जीवना त्राता. पूर्व विदेहे पुंडरिगिणी, नयरी) सोहे, श्री श्रेयांस राजा तिहां, भवियणना मन मोहे... चौद सुपन निर्मल लही, सत्त्यकी राणी मात, कुंथु अरजिन अंतरे, श्री सीमंधर जात. अनुक्रमे प्रभुजी जनमिया, वळी यौवन पावे, माता पिता हरखे करी, रुक्मिणि परणावे. भोगवी सुख संसारना, संयम मन लावे, मुनिसुव्रत नमी अंतरे, दीक्षा प्रभु पावे...५... घाति कर्मनो क्षय करो, पाम्या केवलनाण, वृषभ लंछने शोभतां, सर्व भावना जाण...६... चोराशी जस गणधरा, मुनिवर अकसो कोडि, त्रण भुवनमां जोवतां, नहि कोइ अहनी जोडि...७... दश लाख कह्यां केवली, प्रभुजीनो परिवार, ओक समय त्रण कालनां, जाणे सर्व विचार...८... उदय पेढाल जिन अंतरे, थाशे जिनवर सिद्ध, जसविजय गुरु प्रणमतां, मन वंछित फल लीध...६... जंबुद्विप पूरव दिशे, पुक्खलवइ विजये, नयरी पुंडरिगिणि निरमली, धर्म सदा जिहां सजीये...१ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [३५] श्रेयांस नरेसर नंद चंद, सत्यकी मात मल्हार, रुकमिणी राणी वालहो, शिववधू उरहार...२... धनुष पांचसे देहमान, कंचन वरणी काय, वृषभ लंछन रळियामणो, पूर्व चोराशी लख आय...३... शांति कुंथु अंतर जन्म, सीमंधर जिनराज, वीश लाख पूर्व कुमर पद, त्रेसठ लाख पूर्व राज. मुनिसुव्रत जब विचरता, तव प्रभु लीये दीक्षा, कर्म खपावी केवल लही, दिये बहु जन शिक्षा...५... उदयनाथने शासने, वरशे शिव पटराणी, सो कोड मुनिराजजी, दश लाख केवल नाणी...६... सकल गुणे करी शोभता, शिवरमणी शिणगार, रूपविजय कविरायनो, माणेक कहे मुझ तार...७... पूर्व दिशि इशान खूण, पुक्खल में विजया, नयरी पुंडरिगिणी तिहां, सीमंधर थुणीया...१.. पूर्वायु चोराशी लाख, कांचनमय काया, उंचपणे सय धनुष पंच, प्रणमे सुरराया...२... जयवंता जिन विचरंता, केवल दीपक देव, श्री सीमंदर स्वामीजी, देजो तुम पद सेव...३... वीस लाख पूर्व कंवरवास, भोगवी जिनेश्वर, त्रेसठ लाख पूर्व राजऋद्धि, पाली अलवेसर...४... मुनिसुव्रत जिन विहरमान, तइं ये तुम दीक्षा, तीर्थंकर पद लइये स्वामी, महियल द्यो शिक्षा...५... Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३६] चैत्यवंदन संग्रह अम अमे ओलग करू, सुणजो बीजा चंद, वंदणा हमारी विनंती, जइ कहे ज्यो जिनचंद...६... समवसरण बेठा जिणंद, उपदेशे जिनधर्म, भविक जीव वाणी सुणी, बांधे जे शुभकर्म...७... आठ कर्म चारे कषाय, अढार दोष छंडाय, लही नाण चौतीस अतिशया, वाणी गुण कहेवाय...८... भरतक्षेत्रनां भविक जन, वांछे तुम आशीष, हर्षपणे धर्मलाभ द्यो, पूरो संघ जगीश...६... जयतु जिन जगदेक भानु, काम कश्मल तम हरं, दुरित ओध विभाव वजितं, नौमि श्री सीमंधरं...१ प्रभु पाद पद्म चित्त लयनो, विषय दोलित निर्भर, संसार राग असार घातकं, नौमि श्री सीमंधरं...२ अति रोष वह्नि मान महीधर, तृष्णा जलधि हतकरं, वंचनोजित जंतुबोधकं, नौमि श्री सीमंधरं...३ अज्ञान जित रहित चरणं परगुणोमें मत्सरं, अरति अदित चरण शरणं, नौमि श्री सीमंधरं...४ गंभीर वदन भवतु दिन दिन, देहि मे प्रभु दर्शनं, भावविजय श्री ददतु मंगल, नौमि श्री सीमंधरं...५ सीमंधर जिन विचरता, सोहे विजय मोझार, समवसरण रचे देवता, बेसे पर्षदा बार...१... नव तत्त्वनी दीये देशना, सांभळे सुर नर कोड, षट् द्रव्यादिक वर्णवे, ले समकित कर जोड...२... Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीथ - जिन विशेष इहां थकी जिन वेगळा, सहस्र त्रेवीश शत ओक, सत्तावन योजन वली, सत्तर कला सुविशेष...३... द्रव्य थकी जिन वेगळा, भावथी हृदय मोझार, तिहुं काले करू वंदनां, श्वास मांहे सो वार... ४... श्री सीमंधर जिनवरुओ, पूरे वंछित कोड, कांतिविजय गुरु प्रणमतां, भक्ति बे कर जोड... ५... (७) समवसरण बीराजतां, सीमंधर स्वामी, मधुर ध्वनि दीये देशना, वाणी सुधा समाणी...१... बार पर्षदा सांभळे, वाणीनो विस्तार, सहु सहना मनमां थयो, आनंद हर्ष अपार...२... जाति वैर समावता, प्रभु अतिशय अद्भुत, संशय सर्वना टाळतां, करतां भविजन पूत...३... हुं निर्भागी रळवळं इहां, शा कीधां में पाप, ज्ञानी विनानी गोठडी, किहां जइ करू' विलाप... ४... मात विनानो बाळ जेम, अथडातो कूटातो, आव्यो छं तुज आगले, राखो तो करू वातो... ५... क्रोड क्रोड वंदना माहरीओ, अवधारो जिनदेव, मांगु निरंतर ताहरा, चरणकमलनी सेव... ६... (5) श्री सीमंधर वीतराग, त्रिभुवन तुमे उपकारी, श्री श्रेयांस पिता कुले, बहु शोभा तुमारी...१... धन्य धन्य माता सत्त्यकी, जेणे जायो जयकारी, वृषभ लंछन बिराजमान, वंदे नरनारी...२... [३७] Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्यवंदन संग्रह [३८] धनुष पांचसे देहडी ओ, सोहीओ सोवनवान, कोत्तिविजय उवझायनो, विनय धरे तुम ध्यान...३... [&] बंदु जिनवर विहरमान, सीमंधर स्वामी, केवल कमला कांत दांत, करुणा रस धामी... १.. कंचनगीरि सम देह कांत, वृषभ लंछन पाय, चोराशी लख पूर्व आय, सेवित सुरराय...२... छट्ट भत्त संयम लीयो ओ, पुंडरिगिणी भाण वंदावो...१... द्यो दरिसण प्रभु संपदा, कारण परम कल्याण...३... (१०) श्री सीमंधर जगधणी, आ भरते आवो, करुणावंत करुणा करी, अमने सकल भक्त तुमे धणी, जो होवे अम नाथ, भवोभव हुं छं ताहरों, नहि मेलुं हवे साथ...२... सयल संग छंडी करी, चारित्र लइशुं, पाय तुमारा सेवीने, शिव रमणी वरीशुं...३... ओ अळजो मुजने घणोओ, पूरो सीमंधर देव, इहां थकी हुं विनवुं, अवधारो अवधारो मुज सेव... कर जोडीने विनवुं, सामुं रही इशान, भाव जिनेसर भाणने, देजो समकित दान...! (११) जय जय त्रिभुवन आदिनाथ, पंचमी गति गामी, जय जय करुणावंत प्रभु, भविजन हित कामी... १... सेव...४... .५... Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष जय जय इन्द्र नरेन्द्र वद, सेवित शिर नामी, जय जय अतिशय अनंत वंत, अंतर गति यामी...२ पूर्व विदेहे विराजता, श्री सीमंधर स्वाम, त्रिकरण शुद्धे त्रिकाल मैं, नित प्रति करू प्रणाम...३... पहेला प्रणम विहरमान, श्री सीमंधर देव, पूर्व दिशे इशान खूणे, वंदु हुं नित्त्यमेव.. पुक्खलवइ विजया तिहां, पुंडरिकिणी नयरी, श्री श्रेयांस राजा भलो, जित्या सवी वयरी...२... देहमान धनुष पांचसे, माता सत्त्यकी नंद, रुक्मणि राणी नाहलो, वृषभ लंछन जिनचंद...३... चोराशी लख पूरव आय, सोवन वरणी काय, वीश लाख पूरव कुमार वास, तेम त्रेसठ राय...४... गणधर चोराशी कह्या ओ, मुनिवर ओकसो कोडी, पंडित धीरविमल तणो,ज्ञानविमल कहे करजोडी...५... (१३) श्री सीमंधर साहिबा, महाविदेह क्षेत्र मोझार, भक्ति भावे वंदन करू, दिन में वार हजार...१ धन्यधन्य विजय पुष्कलावती,धन्य पुंडरिकिणी धाम, धन्य धन्य माता सत्त्यकी, धन्य पिता श्रेयांस नाम...२ चोराशी लख पूर्व स्थिति, धनुष पांचसो काय, धोरी लंछने शोभती, सोवन वरणी काय...३ कंथुनाथ आरे जनमिया, इन्द्र कियो अभिषेक,.. सुव्रत समय दीक्षा गृही, तार्या जीव अनेक...४ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४०] चैत्यवंदन संग्रह w उदय पेढाल जिनांतरे, वासो सिद्ध स्वरूप, अधम उद्धारण तारजो, देजो ज्ञान अनूप...५ (१४) शिवसुख दाता सुहंकरूं, सीमंधर जिनराज, विचरे पूर्व विदेहमां, पुखलावतीये आज...१ वीस लाख पूरव लगे, कुंवरपणे श्रीकार, त्रेसठ लाख पूरव वळी, पाली राज उदार...२ त्रयासी लाख पूरव पछे, लीधो संजम भार, तप तपी केवल पामीया, चरण करण चित्तधार...३ झलहल भानु उगीयो, महामाहण महागोप, निर्यामक सथवाह तुं, अशुभ कर्म कर लोप...४ उदय पेढाल जिन अंतरे, पामशे प्रभु निरवाण, कत्तिचंद्र कहे दीजिये, निर्मल दरिशण नाण...५ (१५) जयश्रिया मोहरिपोरवाप्त, त्रिलोक साम्राज्य रमाभिरामम्, विदेह भू-मंडल मंडनं श्री, सीमंधरस्वामिनमानमामि...१... स्तवीमि सीमंधरा पक्षिणोऽपि, पश्यन्तिये पक्षबलादिमं त्वाम्, अहं तु पापस्तव दर्शनार्थ मनोरथैरेव सदा कदh...२... मनोरथारप्यथवा भवन्तु, सदा भवद् दर्शन गोचरा मे, Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - तीथ-जिन विशेष __ [४१] ध्यातोऽपि यत् पूजितवद्ददासि, त्वमीप्सितं सर्वमिति प्रमोदे...३... अनाद्यविविद्यौदरपाशबद्धं, मां मोचय त्रातरिहापि सन्तम्, पयोजगभं प्रतिपन्नरोधं, भृग यथा दूरतरोऽपि भानुः...४... विधूय रागादि भवान् विकारान्, दधासि रूपं निरूपाधिकं यत्, त्रिलोक पूज्य! भवतः प्रसादात्, __ ममापि तत्रानुभवोऽस्तु सम्यक्...५... युगमंधर जिन नु चैत्यवंदन विप्र विजय विजयापूरी, सुदृढ नप तात, युगमंधर जिनवर नमुं, जस तारा मात...१.. प्रिया मंगलानो नाहलो, गज लंछन सोहे, सोवन वन धनु पांचसे, भविजन मन मोहे...२... लक्ष चोराशी पूरवनुं ओ, आयुमान लह्यो अह, सुद्धा संयम संग्रही, केवल पाम्या जेह...३... त्रिगडे बेठा भविकने, आपे उपदेश, प्रातिहार्य आठे भला, अतिशय चोत्रीश. पांत्रोश वाणी गुण कह्या, सो कोडि मुनि संघात, दश लख केवलधर मुनि, वंदु निश दिन प्रभात...५... महाविदेहे विचरताओ, वंदे सुर नर कोडि, पंडित धीरविमल तणो, नय वंदे कर जोडि...६... Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४२] चैत्यवंदन संग्रह विहरमान जिन ना चैत्यवंदनो [१] प्रातः समय नित्य प्रणमीये, श्री सीमंधर स्वाम, मन विकसे तनु उलसे, लीजेंते जसु नाम...१... युगमंधर नमुं भावशू, जगतारण जगनाथ, बाहु जिनेश्वर ध्यावतां, आपे शिवपुर साथ...२... चोथा सुबाहु जिनेश्वरु, जयवंता जिन चार, जंबुद्विप विदेहमां, वंदु वारंवार...३... दस लाख केवलधरा, साधु सो सो कोड, विहरमाननी संपदा, वंदु बे कर जोड...४... भरतक्षेत्रमा हुं वस्यो, दीजे दरिशण देव, कीत्तिचंद्र कहे साहिबा, भव भव तारी सेव...५... [२] पहेला जिनवर विहरमान, श्री सीमंधर स्वामी, युगमंधर बीजा नमु, मुज अंतरजामी...१.. त्रीजा बाहु जिनेसरु, प्रणमुं भगवंत, चोथा जिन श्री सुबाहु, वंदु वळी गुणवंत...२... श्री सुजात पंचम जिन अ, छट्ठा स्वयंप्रभस्वामी, ऋषभानन जिन सातमा, हुं प्रणम शिरनामी... अनंतवीर्य जिन आठमा, सुरप्रभ छे नवमा, श्री विशाल दशमा जिणंद, जस मोटो महिमा...४... श्री वज्रधर अगोयारमा, बारमा चंद्रानन, चंद्रबाहु जिन तेरमा, जस वर्णा कंचन...५... Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [४३] भुजंगस्वामी जिन चौदमा, वंदं उलट आण, श्री इश्वर जिन पंदरमा, नमीओ नित्य सुविहाण...६... नेमिप्रभ जिन सोळमा, सुखदायक जेह, सत्तरमा श्री वीरसेन, वंदु धरी नेह...७... महाभद्र अढारमा, देवजशा ओगणीश, अजितवीर्य जिन वीशमा, ज्ञानविमल नमे इश...८... सोमंधर युगमंधर प्रभु, बाहु सुबाहु चार, जंबुद्विपना विदेहमां, विचरे जगदाधार...१... सुजात साहेबने स्वयंप्रभु, ऋषभानन गुणमाल, अनंतवीर्य ने सुरप्रभु, दशमा देव विशाल...२... वज्रधर चंद्रानन नम, धातकी खंड मोझार, अष्ट कर्म निवारवा, वंदु वार हजार...३... चंद्रबाहु भुजंगप्रभु, नेमि इश्वर सेन, महाभद्र ने देवजशा, अजितवीर्य नामेण...४... आठे पुष्कर अर्धमां, अष्टमी गति दातार, विजय अड नव चोवीशमी, पणवीशमी किरतार...५... जगनायक जगदीश्वरु अ, जगबंधव हितकार, विहरमानने वंदतां, जीव लहे भवपार...६... [४] सीमंधर युगमंधरा, जयवंता जिनराज, बाहु सुबाहु वंदता, सारे वांछित काज...१... जंबूद्विपे विचरतां, उपकारी अरिहंत, धन ते नर वाणी सुणे, त्रिगडामां धरी खंत...२... Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - [४४] चैत्यवंदन संग्रह सुजात स्वयंप्रभ वंदिओ, ऋषभानन मनोहार, अनंतवीर्य ने सुरप्रभ, विशाल वज्रधर सार...३... चंद्रानन चित्त धारी, धातकी खंडे जेह, मुज मन आशा दर्शकी, जिम मोरा मन मेह...४.. चंद्रबाह भुजंगजी, इश्वर नेमीप्रभ स्वाम, वीरसेन ने महाजशा, चंद्रजसा गुणधाम...५... अजितवीर्य प्रणमं सदा, पुष्करद्विपे जिणंद, देव रचित वर आसने, बेसे त्रिभुवन चंद...६... वीशे जिनवर वंदता, वाधे बुद्धि अपार, अलिय विघन दूरे हरे, जेहथी जय जयकार...७... रागादिक जे दोषथी, विरम्या ते भगवान, कीत्तिचंद्र सम निरमलो, केशरविजे सुज्ञान...८... चउ जिन जंबुद्विपमां, अड धातकी खंडे, पुष्करार्धे आठ जाणी, अम वीश अखंडे...१. अड पणवीश चोवीशमी, नवमी विजये विचरंता, बाल तरुण नप पदपणे, वळी अपर अरिहंता...२... सित्तेर सो उत्कृष्टथी, भरहेरवय प्रमाण, ज्ञानविमल जिनराजनो, शिर धरीओ शुभ आण...३... सीमंधरं स्तौमि युगमंधरं च, बाहुं सुबाहुं च सुजात देवम्, स्वयंप्रभ श्री ऋषभाननाख्य मनन्तवीर्यं च विशाल नाथम्...१... Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष सुरप्रभं वज्रधरं च चंद्राननं, नमामि प्रभु भद्रबाहुम्, स्तवीमि च महाभद्रं, भुजंग नेमिप्रभतीर्थनाथाथेश्वर श्री जिनवीर सेनम्... २... श्री देवयशसं तथा, अर्हन्तमजितवीर्यं, [ ४५ ] वन्दे विंशतिमर्हताम् ...३... चार शाश्वता जिन ना चैत्यवंदनो ऋषभ जिनतु चैत्यवंदन ( १ ) ... त्रिभुवनमांही शाश्वता, जिनवर चैत्य उदार, मुज मनमांहे कोड घणा, चउमुख बिंब जुहार... १. पूरव दिशि प्रकाशता, ऋषभ प्रभु महाराज, त्रिकरण शुद्धे पूजता, सारे सघला काज...२... वैमानिक ग्रैवेयक ने, अनुत्तरमाही लीजे, असो अशी बिंब तो, सवि मंदिर गणीजे...३... सो जोजन लंबाई ने, पचासनो विस्तार, उंचा बहोंतेर प्रणमता, धर्मरत्न पद धार... ४... चंद्रानन जिन चैत्यवंदन (२) सोहे निश दिश, दक्षिण दिशि चंद्रानन, शाश्वत चैत्ये जे वली, लाख, सात कोड बोंतेर शाश्वत चैत्ये जे नमे, नमन करे सुर इश...१... भवनपतिमां जाणुं, तेनो जन्म प्रमाणुं ...२... Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४६] चैत्यवंदन संग्रह चंदा सम चंद्रानन, भक्ति मुजने इष्ट, तेह थकी पद पामशे, धर्मरत्न विशिष्ट...३... वारिषेण जिननु चैत्यवंदन (३) वारिषेण वली यतिपति, पश्चिम दिशि सोहे, शाश्वत चैत्ये बंदता, भवियण मन मोहे...१... व्यंतर ज्योतिषीमां वली, असंख जिनवर चैत्य, जे माने जाणे नहीं, ते तो सघला दैत्य...२.. वारिषेण विभु देखवा, जेहनी मननो खंत, धर्मरत्न पद पामशे, लहेशे लोल अनंत...३... वर्धमान जिननु चैत्यवंदन (४) उत्तर दिग् नायक भलो, देवोमाहे कुबेर, शाश्वत चैत्य जुहारतो, करे कर्मने जेर...१... शाश्वत जिन चोथा कह्या, नामे श्री वधमान, ती लोकमां ते सही, भव्य करे गुणगान...२... धर्मसूरि सुनजरथो, शाश्वत जिन भेट्यो, रत्नविजय हरखे मुदा, भवभयने मेट्यो...३... कलश जिन आगम जाणे, जे वली भव्य लोको, तीरथ प्रतिमा माने, काढता दुःख शोको, प्रभु शासन पामी, जे नवि अह माने, धर्मरत्न कहे निश्चे, तेहनो जन्म फोफो...१ ___ शाश्वत जिनो नु चैत्यवंदन ऋषभ चंद्रानन वारिषेण, वर्धमान जपीजे, त्रिभुवनमां शाश्वता, पूजी फल लीजे...१... Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [४७] अतीत अनागत वर्तमान, जे जिनवर ध्यावे, आंतर शत्रु दूरे टळे, आतम निरमल थावे...२ श्री विजयप्रभसूरि भला, विजयरत्न सूरींद, विनयविजय उवझायनो, रूप सदा आनंद...३... ऋषभदेव ना चैत्यवंदनो धुर समरू श्री आदिदेव, विमलाचल सोहीओ, सुरति मूरति अति सफळ,भवियणना मन मोहीओ... सुंदर रूप सोहामणो, जोतां तृप्ति न होय, गुण अनंत जिनवरतणां, कही शके नव कोय...२... वीतराग दर्शन विना, भवसागर में रूलोओ, कुगुरु कुदेवे भोळव्यो, गाढो जल भरीओ...३... पूर्व पुण्य पसाउले, वीतराग में आज, दर्शन दीठो ताहरो, तारण तरण जहाज...४... सुरघट ने सुरवेलडी, आंगणे मुज आइ, कल्पवृक्ष फळीओ वली, नवनिधि में पाइ...५... तुज नामे संकट टळे, नासे विषम विकार, तुज नामे सुख संपदा, तुज नामे जयकार...६... आज सफल दिन मांहरो, सफळ थइ मुज जात्र, प्रथम तीर्थंकर भेटीया, निर्मल कोधां गात्र...७... सुर नर किन्नर किन्नरी, विद्याधर नी कोड, मुक्ति पहोंच्या केवली, वंदु बे कर जोड...८... शत्रुजय गीरि मंडणोओ, मरूदेवा मात मल्हार, सिद्धिविजय सेवक कहे, तुम तरीआ मुज तार...६... Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - [४८] चैत्यवंदन संग्रह (२) कल्पवृक्षनी छांयडी, नानडीयो रमतो, सोवन हिंडोले हिंचतो, माताने मनगमतो...१... सो देवी बालक थया, ऋषभजी केडे, व्हाला लागो छो प्रभु, हैडा शं भीडे...२ जिनपति योवन पामीया, भावे शुं भगवान, इन्द्रे घाल्यो मांडवो, विवाहनो सामान...३... चोरी बांधी चिहुं दिशि, सुर गोरी आवे, सुनंदा सुमंगला, प्रभुजीने परणावे...४... भरते बिंब भरावीया, थाप्या शत्रुजय गीरिराय, विजयप्रभ सूरि महिमा घणो, उदवरत्न गुण गाय...५... नद, नाभि नरेसर कुल कमल, दिनकर सम कही, युगला धर्म निवारणो, जगस्थिति शिव लहीओ...१ वंश इक्ष्वाकु राजहंस, मरूदेवी नंद, आनंद कहे जिणंद चंद, टाळे भवफंद...२.. ऋषभ जिनेसर पाय नमी, आणी भव अपार, प्रीतिविजय कहे साहिबा, आवागमन निवार...३... जयत्यादिम तोर्थेश, त्रिलोकी मंगल द्रुमः, श्रेयः कुलं सदा लोका, यथा लोकादुपसते...१... श्रीमन्नाभिकुलादित्य, मरूदेव्य गजप्रभो, संसाराब्धि महापोत, जयत्वं वृषभध्वज...२... Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [४६] नमस्ते जगदानंद, मोक्षमार्ग विधायक, जैनेंद्र विदिताशेष, भावस्तद्भावनायकः...३... प्रक्षीणाशेष संस्कार, विस्तार परमेश्वर, नमस्ते वाक् यथातीत, त्रिलोक नरशेखर...४... भवाब्धि पतितानंत, सत्त्व संसार तारक, घोर संसार कतार, सार्थवाह नमोस्तुते...५... अरिहंत नमो भगवंत नमो, परमेसर जिनराज नमो, प्रथम जिनेसर प्रेमे पेखत, सिध्या सघला काज नमो...१... प्रभु पारंगत परम महोदय, अविनाशी अकलंक नमो, अजर-अमर अद्भुत अतिशय निधि, - प्रवचन जलधि मयंक नमो...२... तियण भवियण जनमनवंछिय, पूरण देव रसाल नमो, लळि लळि पाय नमुहं भावे, कर जोडीने त्रिकाल नमो...३... सिद्ध बुद्ध तुं जग जन सज्जन, नयणानंदन देव नमो, सकल सुरासुर नरवर नायक, सारे अहनिश सेव नमो...४... Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५०] चैत्यवंदन संग्रह तुं तीर्थंकर सुखकर साहिब, तुं निष्कारण बंधु नमो, शरणागत भविने हितवत्सल, तुंहि कृपारस सिंधु नमो...५... केवलज्ञानादर्श शित, लोकालोक स्वभाव नमो, नाशित सकल कलंक कलुषगण, दुरित उपद्रव भाव नमो...६... जगचिंतामणो जगगुरु जगहित-, कारक जग जननाथ नमो, घोर अपार भवोदधि तारक, तं शिवपुरनो साथ नमो...७... अशरण शरण निरागी निरंजन, निरुपाधिक जगदीश नमो, बोधि दीयो अनुपम दानेसर, ज्ञानविमल सूरीश नमो...... आदिनाथ जगनाथ, विमलाचल मंडन, जय नाभिकूलाकाश, प्रकाशन दिवाकर...१.. तव देव पदांभोज, सेवापि दुर्लभा भवेत्, पुन्य संभार हीनानां, कल्पवल्लीव देहिनां...२... ते धन्या मानवा देवा ये, अगमं तव शासनं, वंदनीया विभाताये, वंदंते भवतः पदौ...३... Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [५१] - प्रचंड मम रागादि, रिपु संतति घातकं, श्री युगादि जिनाधीशं, देवं वंदे मुदा सदा...४... श्री शत्रुजय कोटिर, कृतं राज्य श्रिया विभो, सर्वोऽघनाशनं मेस्तु, शासनं ते भवे भवे...५... [७] जय जय नाभि नरिंद नंद, सिद्धाचल मंडन, जय जय प्रथम जिणंद चंद, भवदुःख विहंडण...१... जय जय साधु सूरीद वृद, वंदि मे परमेसर, जय जय जगदानंद कंद, श्री ऋषभ जिणेसर...२... अमृतसम जिनधर्मनो अ, दायक जगतमां जाण, तस पद पंकज प्रीत धर, नमत निदिन कल्याण...३... [८] आदीश्वर अरिहंत देव, अविनाशी अमल, अक्षय सरूपी ने अनुप, अतिशय गुण विमल...१... मंगल कमला केली वास, वासव नित्य पूजीत, तुज सेवा सहकार सार, करतां कल कुंजित.. योजित युगादि जिणे अ, सकल कला विज्ञान, श्री ज्ञानविमलसूरि गुण तणो,अनुपम निधि भगवान.३... [६] वंश इक्ष्वाग सोहावतो, सोवन वन काय, नाभिराय कुल मंडणो, मरूदेवी माय...१... भरतादिक शत पुत्रनो, जे जनक सोहाय, नारी सुनंदा सुमंगला, तस कंत कहाय...२... Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [५२] चैत्यवंदन संग्रह बाह्मी सुंदरी जेहनी अ, तनया बहु गुण खाण, ज्ञानविमल गुण तेहना, संभारो सुविहाण...३... [१०] प्रथम नाथ प्रगट प्रताप, जेह नो जगे राजे, पाप ताप संताप व्याप, जस नामे भांजे...१... परम तत्त्व परमात्म रूप, परमानंद दाइ, परम ज्योति जस झलहले, परम प्रभुता पाइ...२... चिदानंद सुख संपदाओ, विलसे अक्षय सनूर, ऋषभदेव चरणे नमे, श्री ज्ञानविमल गुणसूर...३... [११] प्रेमे प्रणमो प्रथम देव, शत्रुजय गीरि मंडन, भवियण मन आणंद करण, दुःख दोहग खंडण...१... सुर नर किन्नर नमे, तुज भगतिशुं पाया, पाव पंक फेड समस्थ, प्रभु त्रिभुवन राया...२... ज्ञानविमल प्रभु तुम तणे, चरणे शरणे राखो, करजोडी ने विनवू, मुक्ति मार्ग मुज दाखो...३... [१२] नाभि नरेसर वंश चंद, मरूदेवा मात, सुर रमणी रमणीय जास, गाये अवदात.. कंचन वर्ण समान कांति, कमनीय शरीर, सुंदर गुण गण पूर्ण भव्य, जन मन तनु कीर...२... आदीश्वर प्रभु प्रणमीये अ, प्रणत सुरासर वृद, मन मोदे मुख देखतां, दान मीटे दुःख दंद...३... Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ - जिन विशेष (१३) पूर्णचंद्र उपनाम जास, वदनांमुज दीठे, भव भव संचित पाप ताप, ते सघलां नीठे... १... भविजन नयन चकोर चंद्र, तव हरखित थाय, अंधकार अज्ञान तिम, निर्विषयी जाय. २... ... [ ५३ ] समता शीतलता वधे अ, पूर्ण ज्योति प्रकाश, ऋषभदेव जिन सेवतां, दान अधिक उल्लास ... ..३... (१४) नाभि नरेसर वंश मलय, गीरिचंदन सोहे, जस परिमलशुं वासियो, त्रिभुवन मन मोहे... १... अपछर रंभा उवर्शी, जेहना अवदात, गाये अहोनिश हर्षशुं, मरूदेवी मात... निरुपाधिक जस तेजशुं ओ, सममय सुखनो गेह, ज्ञानविमल प्रभुता घणी, अखय अनंती जेह... ३. (१५) ... रीसह जिनवर रीसह जिनवर, अवर त्रेवीश...१... पुंडरगीरि शिर उपरे, नमो नेमि गिरनार, सासय बिंब असासयां, स्वर्ग मृत्यु पाताल...२... अकमना प्रणमो सही, मन समरी नवकार, कर जोडी लक्ष्मण भणे, सफल करो अवतार...३... (१६) विनीता नयरीनो घणी, नाभिराय कुलभाण, मरूदेवा माता जनमियो, त्रिभुवन तिलक समान...१... राणकपुरे वंदु सदा, ऋषभदेव महाराज, कर्म पडल दूरे हरे, सारे वांछित काज...२... २... Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५४ ] चैत्यवंदन संग्रह वृषभ लंछने शोभतां, सोवन वरण सुजाण, केशरविजे ध्यावे सदा, अविचल सुखनुं ठाण...३... ( १७ ) उठो प्रभाते आतमा, ध्यावो आदिनाथ, विघन विदारण सुखकरण, आपे शिवपुर साथ...१... नंदन नाभि नरिदनो, देवनो देव दयाल, उदयाचल पर उगीयो, कर्म पडल द्यो टाल...२... राणकपुरे अति रंगशुं, भेट्या प्रथम जिणंद, अविचल पद आणंद...३... कीत्तिचंद्र कहे दीजिये, (१८) ऋषभ जिनेश्वर साहिबो जग में कोई बीजो नहीं, नाभी नंदन जग जयो, अलख अनोपम ताहरी, मुद्रा सुंदर प्यार...२... लंछन घोरी विराजतो, पुर गोले सुखकार, केशरविजे कहे साहिबा, बांह्य गृही मुज तार...३... (१६) अलख अगोचर अकलरूप, अविनाशी अनादि, एक अनेक अनंत सांत, अविकल अविषादि... १... सिद्ध बुद्ध अविरुद्ध शुद्ध, अजर अमर अभय, अव्याबाध अमूरतिक, निरुपाधिक निरमाय...२... परम पुरुष परमेसरु, प्रथमनाथ परधान, भव भव भावठ भंजणो, भजीये श्री भगवान...३... उपकारी अवतार, तुज सम तारणहार...१... मरूदेवा उर हार, Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [५५] रसना तुज गुण संस्तवे, द्दष्टि तुज दर्शन, नव अंग पूजा समे, काया तुज फरशन...४ तुज गुण श्रवणे दो श्रवण, मस्तक प्रणिपाते, शुद्ध निमित्ती सविहुआ, शुभ परिणति थाते...५... विविध निमित्त विलासथीं, विलसे प्रभु एकांत, अवतरीयो अभ्यंतरे, निश्चल ध्येय महंत...६ भावदृष्टि मां भावता, व्यापक सवि ठामे, उदासीनता अवरशं, लीनो तुज नामे...७... दीठाविण जे देखवे, सुतां पण जगवे, अवर विषयथी छोडवे, इन्द्रिय बुद्धि त्यजवे...८... पराधीनता मिट गइ, भेद बुद्धि गइ दूर, अध्यातम प्रभु परिणम्यो, चिदानंद भरपूर...६.. पूजक पूज्य अभेदथी, कुण पूजे रूप, द्रव्य स्तव रह्यो द्रव्यरूप, एहीज शुद्ध स्वरूप...१०... आतम परमातम भयो, अनुभव रस संगते, दैत भाव मळ नीकल्यो, भगवंत नी भगते...११... आतम छंदे विलसता, प्रगट्यो वचनातीत, महानंद रस मोकळो, सकल उपाधि व्यतीत...१२... ज्योति से ज्योति मिल गइ, पर रहे निज अवधे, अंतरंग सुख अनुभव्यु, निज आतम लब्धे...१३... निरविकल्प उपयोग रूप, पूजा परमारथ, कारक ग्राहक एक छे, प्रभु चेतन समरथ...१४... वीतराग अम पूजतांओ, लही अविहड सुख, मानविजय उवज्झायना, नाठां सघळां दुःख...१५... Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [५६] चैत्यवंदन संग्रह (२०) सुणो आदि जिनराज अरदास मोरी, लही भाग्यथी आज में भेट तोरी, महापुण्य ना पुरथी नाथ पायो, हवे कष्ट भय दुष्ट दूरे नसायो...१... गयो काळ बाळपणामां अनंतो, वस्यो मोहनी आणमां हुं भमंतो, देखी मुख तारू थयो उजमाल, लह्यो धर्मनो आज तारूण्यकाल...२... मल्यो चरम आवर्त मोटो सखाइ, पडयो पातळो मोह महा दुःखदायो, ग्रन्थि भेद थी तत्त्वनी दृष्टि पाइ, प्रभु ओळख्यो तुं अमोही अमायी...३... मिट्यो आज मिथ्यात्वनो अंधकार, थयो शुद्ध सम्यक्त्वनो ज्योतकार, रह्या वेगळा काठिया कर्म काठां, अनंतानुबंधी सवे दूर नाठां...४... हवे उल्लसी आपथी योग शक्ति, जागी चित्तमां ताहरी जोर भक्ति, गयो आप-आपे सहु भ्रमजाळ, जाण्यो देव तुं एक जगमां दयाल...५... थयुं समर से चित्त शीतल सुचंग, भळी वासना सहज संवेग रंग, गयो ताप निष्पाप मार्ग निहाळी, मळी चेतना सहचरी रसाळी...६... Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ - जिन विशेष मल्या सत्य संतोष आदि सुमित्र, शुभ ध्यान कल्लोल वाध्या विचित्र, थयो गोपद प्रायः संसार सिंधु, वस्यो तुं मनमंदिरे विश्वबंधु... ७... जिहां गरुड त्यां नागनो नहीं प्रचार, समय दाव नावे जिहां मेघ धार, देखी केसरी गजघटा दूर नासे, प्रभो तुं मिल्याथी हुवो हुं सनाथ, तुज ध्यानथी तेम संसार त्रासे... ८... कृपानाथ ते जन्म कीधो कृतार्थ, टळी आपदा संपदा सर्व आवी, प्रभु ताहरी भक्ति जो चित्त धारी... ६... बिराजो महाराज जो मुज मन्न, न मांगु पछी तेहथी कांइ अन्य, ग्रो बांह्य तो छेह देशो न क्यारे, महापुरुष ते शरणे आव्या सुधारे... १०... (२१) विशद गुण संभृतं परम पद शोभितं, विमल गिरि राजितं विश्वनाथम्, सकल संयोग विच्छेदकं पारगं, [ ५७ ] अमित बल धारकं कर्म रिपु वारकं, सर्वदा नन्दितं विश्वबंधम्, लब्ध परमात्म शुद्ध स्वरूपम्... १... Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५८ ] सत्यपथ दर्शकं वचन रस वर्षकं, चैत्यवंदन संग्रह श्रोतृजन हर्षकं परम सेव्यम्...२... सिद्धि समृद्धि सुख दायकं नायकं, विश्व जनहित करं परम पूज्यम्, निर्मला नंद रत्नाकरं शङ्करं, नैमि तं ऋषभजिन वीतरागम् .. ३... श्री शांतिनाथ भगवंत ना चैत्यवंदनो [१] शांति जिनेसर समरतां, सुख थावे भरपूर, दिन-दिन आनंद अति घणो, वाधे वधतुं नूर... १... सात राज उंचा जइ, वसिया शिवपुर ठाण, शुभ नजरे करी साहिबा, दीजे दरिसण नाण...२... बारे भेदे तप वली, संजम सत्तर प्रकार, सोलमो जिन सेव्या थकी, कीत्तिचंद्र जयकार...३... [२] शांति जिनेसर साहिबा, सुखकारी सुखकंद, भेट्या भवभीति भगी, आज भयो आनंद... १... मूर्ति मोहन वेलडी, कामकुंभ सहकार, रत्नचितामणी सारीखो, दीठो तुम दीदार...२... अचिरा सुत त्रिभुवन तिलो, जगनायक जिनराज, धर्मविजय मोहे दीजिये, शिवरमणी महाराज...३... [३] दशमे भवे श्री शांति जिन, मेघरथ महाराज, पोसह लीधो प्रेम थी, आत्मस्वरूप अभिराम ... १... Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [५६] अक दिन इन्द्रे वखाणीयो, मेघरथ महाराय, धर्मथी चलाव्यो नही चले,जो प्राण परलोके जाय...२... देवे माया धारण करो, पारेवो सिंचाणो थाय, अणधायु आवी पड्यु, पारेवडं खोळा मांय...३... शरणे आव्यं पारेवडं, थर-थर कंपे काय, राख-राख तुं राजवी, मुजने सिंचाणो खाय...४... जीवदया मनमां वसी, कहे सिंचाणाने अह, नहि आपुं रे पारेवडु, कहे तो आपुं देह...५... अभयदान आपे करी, बांध्युं तीर्थंकर नाम, उदयरत्न नित प्रणमतां, पामे अविचल ठाम...६... विश्वातिशायी महिमा, ज्वलतेजो विराजितं, शांति शातिकर स्तौमि, दुरित व्रात शान्तये...१... षोडश विद्यादेव्योऽपि, चतुषष्ठि सुरेश्वराः, ब्रह्मादयश्च सर्वेऽपि, यं सेवंते कृतादरा:...२... ॐ ह्रीं श्रीं जये विजये, ॐ जये परै रपिः, तुष्टि कुरु कुरु पुष्टि, कुरु कुरु शांति महाजये...३... न क्वापि व्यादयो देहे, न ज्वरा न भगंदराः, क्वास श्वासादयो नैव, वाद्यते शांति सेवनात्...४... यक्षभूत पिशाचाद्या, व्यंतरा दुष्ट मुद्गराः, सर्वे शामयन्तु ते शांति-नाथ, सेवा करेमयी...५... [५] जय जय शांति जिणंद देव, हत्थिणा पुर स्वामी, विश्वसेन कुल चंद "सम, प्रभुजी अंतरजामी...१... Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [६०] चैत्यवंदन संग्रह अचिरा उर सर हंस जिम, जिनवर जयकारी, मारी रोग निवारी ने, कत्ति विस्तारी...२... सोलमा जिनवर शांतिनाथ,नित उठो नामी शिष, सुर नव भूप प्रसन्न मन, नमतां वाधे जगीश...३... सोलमा जिनवर शांतिनाथ, सेवो शिर नामी, कांचन वरण शरीर कांति, अतिशय अभिरामी... अचिरा अंगज विश्वसेन, नरपति कुलचंद, मृग लांछनधर पद कमल, सेवे सुर वृद...२... जगमां अमृत जेहवीओ, जास अखंडित वाण, अक मने आराधतां, लहीले कोडि कल्याण...३... शांतिकरण प्रभु शांति जिन, अचिरा राणी नंद, विश्वसेन राय कुल तिलक, अमिय तणो मे फंद...१... धनुष चालीशनी देहडी, लाख वरसनुं आय, मग लंछन बिराजता, सोवन सम काय...२... शरणे आव्यो पारेवडो, जीव दया प्रतिपाल, राख-राख तुं राजवी, मुजने सिंचाणो खाय...३... जीवथी अधिक पारेवडो, राख्यो ते प्रभु नाथ, देव माया धारण समे, न चल्यो मेघरथ राय...४... दयाथी दो पदवी लहो, सोळमा शांतिनाथ, पुन्ये सिद्धि वधु वर्या, मुक्ति हाथो-हाथ...५... Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [६१] - - - नाना विचित्रं भवदुःख राशि, नाना प्रकारे बहु मोह फांसी, पापाणि दोषाणि हरंति देवा, जे जन्म शरणं त्वं शांतिनाथं...१... संसार मध्ये मिथ्यात्व चिता, मिथ्यात्व मध्ये कर्माणि बंधं, ते बंध छेदन्ति देवाधिदेवा, जे जन्म शरणं त्वं शांतिनाथं..,२... कामाश्च क्रोधं माया विलोभ, चतु:कषायं इह जीवं बंध, ते बंध छेदन्ति देवाधिदेवा, जे जन्म शरणं त्वं शांतिनाथं...३... जातस्य मरणं भूतस्य वचनं, वै जन्म शांति बहु जीवदु:खं, ते दु:ख छेदन्ति देवाधिदेवा, जे जन्म शरणं त्वं शातिनाथं...४... चारित्र हीनो नर जन्म मध्ये, सम्यक्त्वरत्नं परिपालयंति, ते जीव सिध्यंति देवाधिदेवा, जे जन्म शरणं त्वं शांतिनाथं...५... मदु वाक्य हीनो कठिनस्य चित्ते, परजीव निंदे मनसाय बंधे, Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ६२ ] ते बंध छेदन्ति देवाधिदेवा, जे जन्म शरणं त्वं शांतिनाथं... ६... पर द्रव्य चोरी परदार सेवा, हिंसानी कांक्षानि अनिवृत्ति बंध, ते बंध छेदन्ति देवाधिदेवा, जे जन्म शरणं त्वं शांतिनाथं... ७... पुत्राणि मित्राणि कलत्राणि बंध, चैत्यवंदन संग्रह बहु बंध मध्ये इह जीवबंध, ते बंध छेदन्ति देवाधिदेवा, ते जन्म शरणं त्वं शांतिनाथं... ८... पठति जपति नित्यं, शांतिनाथादि शुद्धं, स्तवन मदनराया, पाप तापापहारं, शिवसुख निधि पोतं, सर्व सत्त्वानुकंपं, कृत मुनि गुणभद्रं, भद्र कार्येषु नित्यं ... ६... श्री नेमिनाथ भगवंतना चैत्यवंदनो (१) बाल ब्रह्मचारी नेमनाथ, समुद्रविजय विस्तार, शिवादेवीनो लाडलो, राजुल वर भरतार... १... तोरण आव्या नेमजी, पशुडे मांड्यो पोकार, मोटो कोलाहल थयो, नेमजी करे विचार...२... जो परशुं राजुलने, जाय पशुना प्राण, जीव दया मनमां वसी, त्यांथी कीधं प्रयाण...३... तोरणथी रथ फेरव्यो, राजुल मूर्च्छित थाय, आंखे आंसुडां वहे, लागे नेमजीने पाय... ४... Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ - जिन विशेष सोगंद आपुं माहरा, वळो पाछा एकवार, निर्दय थइ शं वालमा, कीधो मारो परिहार... ५... झीणी झबुके वीजळी, झरमर वरसे मेह, राजुल चाल्या साथमां, वैरागी भींजाणी देह... ६... संयम लइ केवल वर्याअ, मुक्तिपुरीमां जाय, नेम राजुलनी जोडने, ज्ञान नमे सुखदाय... ७... (२) समुद्रविजय कुलचंद नंद, शिवादेवी जाया, जादव वंश नभोमणि, शौरिपुरी ठाया... १... बाल थकी ब्रह्मचर्यधर, गत मार प्रचार, भोक्ता निज आत्मिक गुण, त्यागी संसार ...२... निष्कारण जगजीवनो ओ, आशानो विश्राम, दीनदयाल शिरोमणी, पूरण सुरतरु काम...३... पशुडा पोकार सुणी करी, छांडी गृहवास, तत्क्षण संजम आदरी, करी कर्मनो नाश... ४... केवलश्री पामी करीओ पहोच्या मुक्ति मोझार, जन्म-मरण भय टाळवा, ज्ञान नमे सुखकार... ५... ; (३) जयवंत महंत निरंजन छो, भावना दुःख दोहग भंजन छो, भवि नेत्र विकासन अंजन छो, [ ६३ ] जगनाथ अनाथ सनाथ करो, मम पाप अमाप समूल हरो, प्रभु काम विकार विगंजन छो... १... Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [६४] चैत्यवंदन संग्रह अरजी उर नेमि जिणंद धरो, तुम सेवक छु प्रभुना विसरो...२... सुर अचित वांछित दायक छो, सहु संघ तणां प्रभु नायक छो, गिरनार तणा गुण गायक छो, कलहंस तणी गति लायक छो...३... बालपणे श्री नेमनाथ, वंदु ब्रह्मचारी, आठ भवोनी प्रीतडी, तारी राजुल नारी...१... समुद्रविजय सुत जाणीओ, शिवादेवीनो जायो, जादव कुल सोहामणो, शंख लंछन गुण गायो.. बत्तीश सहस बंधव तणी, जाणो पटराणी, पिचकारी सोवन तणी, तिहां जलभरो आणी...३... दडो उछाळे फुलनो, दियरने बोलावे, सहुको भोजाइओ मलो, विवाह नेम मनावे...४... नारी विना- घर नहीं, वांढो नर कहेवाय, भोजाइओ मेणा मारशे, परणो नेम कुमार.. परणो राजुल नार तमे, उग्रसेन नी बेटी, सत्यभामानी बेनडी, समकित गुणनो पेटी...६. अक नारी विना इश्यो, घर शुन्यज कहेवाय, उनां अन्न कोण आपशे, सुणो बांधव वात...७... मंडप चोराशी स्तंभनो, रचायो मन रंगे, चौ दिशी गोरी गावती, सांजे ने सवारे...८... Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [६५] भात भातना धान तिहां, जुवारा ववरावे, भोजाइ पासे सिंचावतां, गंगा नीर मंगावे...६... पीठी चोळे पीतराणी मली, उने जल नवरावे, नवल घउंला भेळवी, मग पीठी बनावे...१०... आभूषण अंगे धरी, शोभा विरचावे, वरघोडे श्री नेमिनाथ, परणे राजुल नार...११... पंचजाति वाजिंत्र वागे, भेरी वजडावे, थैइ थैइ नाभ पताका, तोरण नेमकुमार...१२... पशु करे पोकार तिहां, शालापतिने बोलावे, सारथवाहने पुछतां, जीव बंधने केम बांध्या...१३... जादवकुल ने अणी परे, प्रभाते गौरव दइशं, विषयारसने कारणे, जीव संहार करीशुं...१४.. जमणं अंग फरके तिहां, नवला नेमकुमार, राजुल कहे सुणो साहेली, रथ वाळयो तत्काल...१५... वरसीदान देइ तिहां, अक क्रोड साठ लाख, सहसावन जइ संयम लीधो, सहस पुरुष संगाथ...१६... राजुल धरणी ढले तिहां, उज्जयंत गढ चाल्या, गुफामां श्री रहनेमि, राजुल प्रतिबोधे...१७... स्वामी हाथे संजम लीधो, संलेखणा अक मास, केवलज्ञाने झलहले, पाम्या शिवपुर वास...१८... पियु पहेलां मुगते गया, धन-धन नेमकुमार, परण्या शिवनारी तिहां, सहस पुरुष संगाथ...१६... Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्यवंदन संग्रह भणतां सवि सुख संपजे, सुणतां मंगलमाल, हीरविजय वाचक भणे, तस घर जय-जयकार...२०... N. B. आ चैत्यवंदन नवु लागे छे केमके हीरविजयनु नाम छे पण प्रास मलतां नथी, केइक रचना असंबद्ध लागे छ भगवंत साथे ५३६ मोक्षे गया छे । आमां सहस छे । बावीशमां श्री नेमिनाथ, नित्य उठी बंदो, समुद्रविजय सुत भानु सम, भविजन सुख कंदो...१... सघन श्याम द्युति देहनी, दश धनुष शरीर, अमित कांति यादव घणी, भांजे भव दव तीर...२... राजीमती रमणी तजोओ, ब्रह्मचर्य धर धोर, अविचल सुखमां विलसता, भूप नमे धरी शीर...३... ॐ नमो विश्वनाथाय, जन्मतो ब्रह्मचारिणे, कर्मवल्ली वनच्छेद, नेमयेऽरिष्ट नेमये...१. अनंत परमानंद, पूर्णधाम व्यवस्थितः, भवंतं भवता साक्षी, पश्यतीह जिनोऽखिल...२... स्तुवंतस्तावकं बिंब, मन्यथा कथमीद्दशं, प्रमोदातिशयश्चित्ते, जायते भुवनातिगं...३... समुद्रविजय शिवा तणो, अंगज धन सरीखो, जदुकुल अंबर दिनमणी, राजुल वर नोरखो...१... वरस अक सहस आय मान, दश धनुष अपरखो, शौरिपुरी शंख लंछने, नेमि नमी मन हरखो...२... Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [६७] सहेसावन केवल लही, गिरनारे निरवाण, कहे कवियण पद पद्मने, आपो पंचम नाण...३... (८) नायक त्रिभुवन नाथजी, श्री नेमि जिन सार, प्रभुपद प्रेमे पूजीओ, गीरुओ गढ गिरनार...१... ओ गीरि उपर अहना, तीन कल्याणक तास, अरिहंत भगती अनुसरो, आणी मन उल्लास...२... जादवकूल दिनकर जिस्यो, ब्रह्मचारी शिरदार, सतिया मांहे शिरोमणी, रूडी राजुल नार...३... सहसावन संजम लीयो, गीरि पर केवलज्ञान, कृपानाथ सरखी करी, भामीनीने भगवान...४... साते टुंक सोहामणी, अ तीरथ अहि ठाण, पंचम टुंके श्री प्रभु, पाम्या पद निरवाण...५... गुणी अढारे गणधरा, गिरुआ बहु गुणवंत, सहस अढारे श्रमणने, सेवो भविजन संत...६... आद भवानी अंबिका, ओ तीरथ रखवाल, सेवो भवि सुधे मने, जावे भवदुःख जाल...७... भविजन भावे भेटीओ, आणी मन आणंद, हंसविजय नमे हरखशु, पामे परमाणंद...८... प्रह समे प्रणमो नेमिनाथ, जिनवर जयवंत, जादव कुल अवतंस हंस, उत्तम गुणवंत...१... समुद्रविजय शिवादेवी जात, मति सहज उदार, सुंदर श्याम शरीर ज्योति, सोहे सुखकार...२... Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [६८] चैत्यवंदन संग्रह गढ गिरनारे जेणे लह्योओ, अमृत पद अभिराम, तास क्षमाकल्याण मुनि, अहनिशि करे प्रणाम...३... (१०) बावीशमा श्री नेमिनाथ, घोर ब्रह्मव्रतधारी, शक्ति अनंती जेहनी, त्रण भुवन हितकारी...१... इन्द्र चन्द्र नागेन्द्रने, वासुदेवो सर्वे, चक्रवर्तीओ नेमिने, वंदे रहो अग।...२... कृष्णादिक भक्तो घणाओ, जेहनी सेवा सारे, अवा परमेसर विभु, सेवता सुख भारे...३... (११) सच्छील संजित तारकारि, स्वरूप संनिर्जीत संवरारिं, कन्दर्प मातंग विभेद भारी, नमामि नित्यं जिन नेमिनाथं...१... शंखाकि तांधीं वरनील कांति, स्वकीय वाण्या कृत लोकशांति, देवादिदेवं विहिताक्ष दांति, नमामि नित्यं जिन नेमिनाथं...२... मुक्ति प्रिया कंठ वितानहारं, यशः सदाराम सुसार सारं, संलब्ध संसार जलेश पारं, नमामि नित्यं जिन नेमिनाथं...३... Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष श्री पार्श्वनाथ भगवंतना चैत्यवंदनो [१] जय जय शिखर गिरीश इश, वीश जिनेसर नामी अणसण करी इहां कणे, पंचमी गति पामी...१ बीजा पण बहु मुनिवरा, शिवगतीना गामी, परमातम पद पामीआ, वंदु शिरनामी...२ ओ अवदात सुणी करी, हुं ओ पद कामी, आव्यो छु तुज आगळे, किम कीजे खामी...३ श्री शामळीआ पार्श्वनाथ, तुं छे दीनदयाल, ओ अरजी सुणो माहरी, द्यो शिवपद रसाल...४ हुं अनाथ भमीयो घणुं, न मल्यो तुम सम नाथ, आपो पद पोता तणु, राखो निज साथ...५ राग रोष क्रोधे भर्यो, निंदक अने अविवेक, अ सघलु उवेखीने, राखो मुज टेक...६ मुज पापोनां पापने, दूरे करी हजूर, निज लक्ष्मीने आपशो, आशा छे भरपूर...७ [२] पुरिसादाणी पासनाह, नमीये मन रंग, नील वरण अश्वसेन नंद, निर्मल निःसंग...१... कामित दायक कल्प साख, वामा सुत सार, श्री गोडी पुर स्वाम नाम, जपिये निरधार...२... त्रिभवनपति त्रेवीशमो अ, जास अखंडित आण, अक मने आराधतां, लहिये कोड कल्याण...३... Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ७० ] चैत्यवंदन संग्रह श्री पार्श्वनाथना दश भवनुं चेत्यवंदन [३] अमर भूति ने कमठ विप्र, पहेले भवे कहोओ, बीजे गज कुरकट सही, त्रीजे भवे लहोओ...१... अठम कल्प पांचमी नरक, किरणवेग कख जाणं, मोरग सर्प चोथे भवे, अच्युत सुर मन आणुं ...२. पांचमी नरक पांचमे भवे, छठे राय वज्रनाभ, चंडाल कुले कमठ जनित, मध्यम ग्रैवेयके लाभ...३... ललितांग देव सातमे भवे, सातमी नरके लाग, कनकप्रभ चक्री थया, कमठ सिंह नो माग...४... प्राणत कल्प चोथी नरक, पार्श्वनाथ भव दशमे, कमठ थयो तापस वली, अन्यतोथि बहु प्रणमे ... ५... दीक्षा लेइ मुगते गया, पार्श्वनाथजी देव, पद्मविजय सुपसाउले, जित प्रणमे नित्यमेव... ६... [४] स्तुवे पार्श्व जिनाधोशं, पार्श्वयक्ष सुसेवितं, प्रणतानल्प संकल्प, दानकल्पद्रुमोपमं ...१... पूजीत्वजन: पूज्य स्थानं सर्व जगतामपि, हिलीतत्त्वांतु नैवेति, दुःखोच्छेद कदाचन...२... नाथीकृत्य त्वया देव, भवारि जीयते क्षण, हर्षाद्विक्षति तुम्यं च, स्पृहयेन मुक्ति कामिनी...३... न तत् पुरुषा दोषा, रोषादायंति दूरतः, सम्यक्ध्यात तव स्वामिन्, सिध्यति च मनोरथः... ४... स्तुतत्त्वं नरे नाथ, विलसंत्यखिला कलाः, उपमानोपमेयत्वं, चिरं जियाज् जिनेश्वर... ५... Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [७१] युष्मद् पदानि पद गौरव सुप्रयोगैः, स्तुत्वेति पार्श्वजिन सद्गुज भाजनत्वात्, अकं प्रभुं त्रिभुवनेऽपि भवे भवेऽहं, __ याचे शिवं प्रतिभवं ननु बोधिलाभं...६. [५] प्रभु पासजी ताहरु नाम मीठं, ती लोकमां अटलुं सार दीर्छ, सदा समरतां सेवतां पाप नीठं, मन माहरे ताहरू ध्यान बेलु...१... मन तुम पास वसे रात दीसे, मुख पंकज निरखवा हंस होसे, धन्य ते घडी जे घडी नयण दीसे, भली भक्ति भावे करी विनवीजे...२... अहो अह संसार छे दुःख दोरी, इंद्र जालमां चित्त लाग्यं ठगोरी, प्रभु मानिये विनती अक मोरी, मुज तार तुं तार बलिहारी तोरी...३... सही स्वप्न जंजालनो संग मोह्यो, घडियालमां काल रमतो न जोयो, मुधा अम संसारमा जन्म खोयो, अहो घत तणे कारणे जल विलोयो...४... अतो भमरलो केसुआ भ्रांति धायो, जइ शुकतणी चंचुमांहे भरायो, Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ '[७२] शुके जांबु जाणी गले दुःख पायो, प्रभु लालचे जीवडो ओम वाह्यो... ५... भम्यो भर्म भूल्यो रम्यो कर्म भारी, दया धर्मनी शर्म में न विचारी, तोरी नम्रवाणी परम सुखकारी, तिहुं लोकना नाथ में नवि संभारी... ६... विषय वेलडी शेलडी करीय जाणी, भजी मोह तृष्णा तजी तुज वाणो, अहवो भलो भुंडो निजदास जाणी, प्रभु राखिये बांहीनी छांय प्राणी... ७... मोरा विविध अपराधनी कोडि सहीओ, चैत्यवंदन संग्रह प्रभु शरण आव्या तणी लाज वहीओ, वली घणी घणी विनती ओम कहीओ, मुज मानससरे परमहंस रहीओ... ८... ओम कृपा मुरत पार्श्वस्वामी मुक्तिगामी ध्याइओ, अति भक्ति भावे विपत्ति जावे परम संपत्ति पाइये, प्रभु महिमासागर गुणवैरागर पास अंतरिक्ष जे स्तवे, तस सकल मंगल जयजयारव आनंदवर्धन विनवे ... ६... [६] सेवो पास शंखेसरो मन शुद्धे, नमो नाथ निश्चे करी ओक बुद्धे, देवी देवला अन्यने शं नमो छो, अहो भव्यलोको भूला कां भमो छो... १... Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष त्रिलोकना नाथने शं तजो छो, पड्या पासमां भूतने कां भजो छो, सुरधेनु छंडी अजा शुं अजो छो, महापंथ मकी कुपंथे व्रजो छो...२.. तजे कोण चिंतामणी काच माटे, गृहे कोण रासभने हस्ति साटे, सुरद्रुम उपाडी कोण आंक वावे, महामूढ ते आकूला अंत पावे...३... किहां कांकरो ने किहां मेरू शृंग, किहां केशरीने किहां ते कुरंग, किहां विश्वनाथं किहां अन्य देवा, करो अेक चित्ते प्रभु पार्श्व सेवा...४... पूजो देवी प्रभावती प्राणनाथ, सहु जीवने जे करे छे सनाथ, महातत्त्व जाणी सदा जेह ध्यावे, तेहना दु:ख दारिद्र दूरे पलावे...५... पामी मनुष्यो वृथा कां गमो छो, कुशीले करी देहने का दमो छो, नहि मुक्तिवासं विना वीतरागं, भजो भगवंतं तजो दृष्टिरागं...६... उदयरत्न भाखे सदा हेत आणी, दया देव कीजे प्रभु दास जाणी, आज माहरे मोतीडे मेह वुठया, प्रभु पास शंखेसरो आप तुठया...७... Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७४] चैत्यवंदन संग्रह [७] सकल भविजन चमत्कारी, भारी महिमा जेहनो, निखील आतम रमा राजीत, नाम जपीओ तेहनो, दुष्ट कर्माष्टक भंजरी जे, भविक जन मन सुख करो, नित्य जाप जपो पाप खपीओ स्वामि नाम शंखेश्वरो.१ बहु पुन्यराशी देश काशी तथ्थ नयरी वाणारसी, अश्वसेन राजा राणी वामा रूपे रति तनु सारिखी, तस कुखे सुपना चौद सुचीत स्वर्गथी प्रभु अवतर्यो, नित्य जाप जपी पाप खपीओ स्वामि नाम शंखेश्वरो.२ पोष मासे कृष्ण पक्षे, दशमी दिन प्रभु जनमिया, सुरकुमारी सुरपति भक्ति भावे, मेरू शृंगे स्थापिया, प्रभाते पृथिवीश प्रमोदे, जन्म महोच्छव अति कियो, नित्य जाप जपी पाप खपी स्वामि नाम शंखेश्वरो.३ त्रण लोक तरुणी मन प्रमोदी, तरुण वय जब आवीया, तव मात ताते प्रसन्न चित्ते, भामिनी परणावीया, कमठ शठ कृत अग्नि कुंडे, नाग बलतो उद्धर्यो, नित्य जाप जपीओ पाप खपीओ स्वामि नाम शंखेश्वरो.४ पोष वदि अकादशी दिने, प्रवज्या जिन आदरे, सुर असुर राज भक्ति साज, सेवना झाझी करे, काउसग करतां देखी कमठे, कीध परिसह आकरो, नित्य जाप जपीओ पाप खपीओ स्वामि नाम शंखेश्वरो.५ तपध्यान धारारूढ जिनपति, मेघधारे नवि चल्यो, तिहांचलित आसनधरण आयो,कमठ परिषह अटकल्यो, Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ - जिन विशेष [ ७५ ] देवाधिदेवनी करे सेवा, कमठ ने काढी परो, नित्य जाप जपीओ पाप खपीओ स्वामि नाम शंखेश्वरो.६ क्रमे पामी केवलज्ञान कमला, संघ चउविह स्थापीने, प्रभु गया मोक्षे समेतशिखरे, मास अणसण पालीने, शिवरमणी रंगे रमे रसीयो, भविक तस सेवा करो, नित्य जाप जपीओ पाप खपीओ स्वामि नाम शंखेश्वरो. ७ भूत प्रेत पिशाच व्यंतर, जलण जलोदर भय टले, राजराणी रमा पावे, भक्ति भावे जो मले, कल्पतरुथी अधिक दाता, जगत त्राता जय करो, नित्य जाप जपीओ पाप खपीओ स्वामिनाम शंखेश्वरो. म जरा जर्जरी भूत यादव, सैन्य रोग निवारता, वढीयार देशे नित बिराजे, भविक जीवने तारता, अ प्रभुतणां पद पद्म सेवा, रूप कहे प्रभुता वरो, नित्य जाप जपीओ पाप खपीओ स्वामि नाम शंखेश्वरो. 8 [=] ॐ नमः पार्श्वनाथाय, विश्यचिंतामणीय ते, ह्रीं धरणेन्द्र वैरोट्या, पद्मादेवी युताय ते...१... शांति तुष्टि महापुष्टि धृति कीति विधायिने, ॐ ह्रीं द्विड् व्याल वैताल सर्वाधि व्याधि नाशिने...२... जया जिताख्या विजयाख्या पराजितयान्वित, दिशां पालैर्ग्रहैर्यक्षैः ॐ असिआउसाय नमस्तत्र त्रैलोक्यनाथता, विद्यादेवीभिरन्वित...३... चतुःषष्टि सुरेन्द्रास्ते, भाषन्ते छत्र चामरैः...४... Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्यवंदन संग्रह Re श्रीशंखेश्वर मंडन पार्श्वजिन प्रणत कल्पतरुकल्प, चूरय दुष्ट ब्रांतं, पूरय मे वांछित नाथ.. [६] जय चिंतामणी पार्श्वनाथ, जय त्रिभुवन स्वामी, अष्टकर्म रिपु जीतिने, पंचमी गति पामी...१... प्रभु नामे आनंद कंद, सुख संपति लही, प्रभु नामे भवभय तणा, पातिक सवि दहीओ...२... ॐ ह्रीं वर्ण जोडी करी, जपीओ पारस नाम, विष अमृत थइ परिणमे, पामे अविचल ठाम...३... [१०] प्रणमामि सदा प्रभु पार्श्वजिनं, जिननायक दायक सुखधनं, धन चारु महोत्तमं देह धरं, धरणपति नित्य सुसेवकरं...१... करुणा रस रंचित भव्यफणी, फणि सप्त सुशोभित मौलिमणि, ___ मणि कंचन रूप त्रिकोटि घटं, घटितासुर किन्नर पार्श्वतरं...२... तटनीपति घोष गंभीर स्वरं, स्वरनाकर अश्व सुनेन नरं, नर-नारी नमस्कृत नित्य मुदा, पद्मावती गावती गीत सदा...३... सहनेन्द्रिय गोप थया कमळं, कमठासुर वारण मुक्त हठं, Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्ण-जिन विशेष [७७] ower - हठ हेलित कर्म कृतांत बलं, बलधाम धुरंधर पंक जलं...४... जलजध्वय पत्र प्रभानयनं, नयनंदित भव्य नरेश मनं, मन मन्मथ महीरूह वह्निसमं, समतामय रत्नकरं परमं...५... परमार्थ विचार सदा कुशलं, कुशलं कुरु मे जिननाथ अले, ___ अलिनी नलिनी नलिनील तनु, तनुता प्रभु पार्वजिनं सुधनं...६... धन धान्य करं करुणा परमं, परमामत सिद्धि महासुखदं, सुखदायक नायक संत भवं, भवभत् प्रभु पार्श्वजिनं शिवदं...७... [११] श्री पार्श्वनाथ नमस्तुभ्यं, विघ्न विध्वंस कारिणे, निर्मलं सप्रभानन्दे, परमानन्द दायिने.१ अश्वसेना- वनि पालो, कुल चुडामणि प्रभो, वामा सुनो नमस्तुभ्यं, श्रीमत् पार्श्व जिनेश्वर.२ क्षिति मंडल मुकुटं धार्मिक निकटं, विश्व प्रकटं चारु भटं, भवरेणु समीरं जलनिधि तीरं, सुरगिरिधीरं गंभीरं, जगत्त्रय शरणं दुरगति हरणं, दुर्धर चरणं सुखकरणं, पार्श्व जिनेन्द्र नत नागेन्द्रम्, नमत सुरेन्द्र कितभद्रं.३ Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ७८ ] चैत्यवंदन संग्रह [१२] गौडी ग्रामे स्थंभने चारू तीर्थे, जीरावल्यां पत्तने लौद्रवाख्ये, वाणारस्यां चापि विख्यात कीर्ति, श्री पार्श्वशं नौमि शंखेश्वरस्थम्...१... इष्टार्थानां स्पर्शने पारिजातं वामा देव्या नंदनं देव वंद्यम्, २ स्वर्गे भूमौ नागलोके प्रसिद्धम् ... श्री पार्श्वशं. भित्वाभेद्यं कर्मजालं विशालं, प्राप्यानंतं ज्ञानरत्नं चिरंतम्, लब्धा मन्दानंद निर्वाण सौख्यम्... श्री पार्श्वशं ...३ विश्वाधिशं विश्वलोके प्रसिद्धम्, पापागम्यं मोक्षलक्ष्मी कलत्रम्, अंभोजाक्षं सर्वदा सुप्रसन्नम्... श्री पार्श्वशं ...४ वर्षे रम्ये स्वर्गदो नागचंद्रं, संख्ये मासे माघवे कृष्ण पक्षे, प्राप्तं पुन्यै दर्शनं यस्य तं च... श्री पार्श्वशं ...५ श्री जालोर मंडन पार्श्वजिन चैत्यवंदन [१३] प्रणमुं पास जिनेसरु, वामानंदन देव, कमल भमर पर अमर सह, सुरपति सारे सेव...१... तीन भुवन में तुम समो, अवर न को आधार, दीपे दिनकर सम प्रभु, वांछित पूरणहार...२... आधि व्याधि उपशमे, शत्रु थाय संहार, मित्र मले मन मेलथी, रिद्धि सिद्धि जसू सार...३... Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [७६] जुक्ति सहित जालोरमें, भेट्यो गोडी पास, अनुभव इंद्र उग्यो, सोल कलाओ खास...४... सुखकर गोडी पासजी, सुणिये अरजी अह, कीत्तिचंद्र कहे दीजिये, संपत्ति सुखनुं गेह...५... श्री भिन्नमाल मंडन पास जिन चैत्यवंदन [१४] पुर भिनमाले पासजी, भेट्या सुख भरपूर, दुःख दोहग दूरे हरे, दिन दिन चढते नूर...१... काशीदेश वाणारसी, अश्वसेन कूलचंद, तरण तारण त्रेवीसमो, वामा राणी नंद...२... अकसो वषंनो आउखो, नीलवर्ण सुखकार, सोलह सहस मुनिवर कह्या, चरण करण भंडार...३... सहस अडतीश साहुणी, अक लाख अधिका जोय, सहस चोसठ श्रावक भला, बारे व्रतधारी होय...४... तीन लाख कही श्राविका, सत्तावीश हजार, दश गणधर अति दोपता, प्रभुजीनो परिवार...५... भाख्यो सुविहित मुनिवरे, सूत्र तणे अनुसार, धर्मविजय समरे सदा, भवोदधि पार उतार...६... श्री वरकाणा पार्श्व जिन चैत्यवंदन [१५] त्रिभुवनपति वेवीसमो, श्री वरकाणो पास, बंधन त्रोडे भव तणा, पूरे वांछित आस...१.. चैत्र वदि चोथी दिने, अवतर्या आधी रात, दशमा प्राणत कल्पथी, वामा जेहनी मात...२... पोष वदि दशमी दिने, जन्म्या पार्श्व कुमार, अश्वसेन कुल दिनकरु, उपकारी अवतार...३... Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [८०] चैत्यवंदन संग्रह ema mmon कमठ तणो मद गाळिने, तार्यो नाग तिवार, नवकारमंत्र सुणावीने, आप्यो समकित सार...४.. अकण भवने अंतरे, पामशे मुक्ति सुठाम, पासप्रभु मोये दीजिये, कीर्तिचंद्र शुभ धाम...५.. [१६] सेवो पार्श्व चिंतामणी, शंखेश्वर श्रीकार, वरकाणे वंदु सदा, आपे रिद्धि अपार...१ थंभणपुर वंदु वलीः जीरावलो जगनाथ, अमीझरो पंचासरो, आपे शिवपुर साथ...२... डुआ पार्श्व जिन पेखतां, फलवरधी करे आप, अंतरिक्ष त्रिभुवन घणी, टाले पाप संताप...३... मक्षीमंडण पासजी, मालवदेश मझार, शमीनो सुशोभे सदा, मेवाडे श्रीकार...४... करेडा पारस पेखतां, नाकोडे वली जाण, अजायरो प्रभु भेटतां, आपे पद निरवाण...५... पार्श्व प्रभु जिनराजनां, नाम तणो नहिं पार, गुण गाया गोडी तणा, आहोर नयर मोझार...६... इगताली आशोजमें, पूनम दिन प्रसिद्ध, कीर्तिचंद्र ध्यावे सदा, आपो अविचल रिद्ध...७... श्री स्थंभन पार्श्व जिन का चैत्यवंदन (१७) श्री सेढी तट मेरू धाम, थंभणपुर ठाम, सुरतरु सम सिरि पास सामे, राजे अभिराम...१... बिबुधेसर सिरि अभयदेव, संठ वियाणं दिय, थइ जल सिंचिय नीलवरण, फण पल्लव मडिय...२... Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष सुर नर सुह कुसुमावलीओ, शिवफल दायक जाण, आराहउ भवि अंग मण, पावउ पद कल्याण...३... [१८] जय जय जय जगतात भ्रात, भवि भवताप निवारे, शरणागत जन वच्छलु, सवि जग जीवने तारे...१ कमलापति काजे प्रभु, प्रगट पातालथी थाय, जरा निवारी दुःख हयु, जादव बहु सुख थाय...२ अमित गुण पातक हरण, हरित वरण सुखकार, रंग वंदे पारस प्रभु, शंखेश्वर शिरदार...३ [१६] अकल रूप अवतार सार, शिवसंपत्ति कारक, रोग शोग संताप दूरीय, दु:ख दोहग वारक.१ चिहं दिशि आण अखंड चंड, तप तेज दिणंद, अमर अपछर कोड गावे, जस नाम नरिंद.२ मुनि मेघ कहे जिनवर जयो, पार्श्वनाथ त्रिभुवन तिलो, श्री शंखेश्वर सुरमणि, अधिक पामो मंगललीलो.३ [२०] अपूपूजत्वां विनमिर्नमिश्च, वैताढयशैले वृषभेश काले, सौधर्मकल्पे सुरनायकेन, त्वं पूजितो भूरितरं च कालं...१... आराधितस्वं समयं कियन्तं, चान्द्रे विमाने किल भानवेऽपि, Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [८२] चैत्यवंदन संग्रह पद्मावती देवतया च नागा धिपेन देवासरेऽचित स्वत्म्...२... यदा जरासंध प्रयुक्त विद्या बलेन जातं स्वबलं जरार्तम, ___तदा मुदा नेमिगिरा मुरारिः, पातालतस्त्वां तपसा निनाये...३... तव प्रभो स्नात्रजलेन सिक्तं, रोगैविमुक्तं कटकं बभूव, ___ संस्थापितं तीर्थमिदं तदानीं, शंखेश्वराख्यं यदुपंगबेन...४... तदा कथं चित्तव चैत्य मत्र, श्रीकृष्णराजो रचयांचकार, __ सद्वारिकास्थोऽपि यथा भवन्तं, ननाम नित्यं किल सप्रभावम्...५... श्री विक्रमान्मन्मथ बाण मेरु, महेश तुल्ये समये व्यतीते, त्वं श्रेष्ठिना सज्जन नामकेन, निवेशितः सर्व समृद्धि दोऽभूः...६... झंझुपुरे सूर्यपुरोऽनवाप्त, त्वत्तोऽधिगम्यांग मनंगरूपम्, अचीक रदुर्जन शल्य भूपो, विमान तुल्यं तव देव चैत्यम्...७... Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [८३] [२१] पाव शंखेश्वरा धन्य काशोनरा, नयरी वाणारसी सौख्यकारी, देवना देव छो रूपे स्वयंमेव छो, मत्ति रळियामणो लागे प्यारी...१... हस्त दश- देह परिमाण छ, उमर सो वरसनी रंग नीला, भ्रमणता भांगी ने मोह-मद त्यागीने, सिद्धपदे जई वस्या छबीला...२... कमठ तापस तणी, काष्ठ केरी धुणी, मध्ये बळता अरिने बचाव्यो, सर्पना राजने स्वर्गमां मोकली, कमठ सुर मेघमाळी बनाव्यो...३... बड तणे स्थिर रही ध्यान धायुं तमे, वासवे घोर तम वृष्टि कीधी, देव धरणेन्द्र त्यां आवी प्रभु पासमां, नागफणेथी छांय कीधी...४... मृत्यु पाताल सह स्वर्गना लोकमां, प्रेमपूर्वक प्रभुजी पूजाया, धन्य छे धन्य प्रभु तेहने जगतमां, वृत्ति निष्फल करी तुमने ध्याया...५... सौख्य शांति करो विपदाने हरो, जे रीते नागने तें बचाव्यो, Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [८४] , चैत्यवंदन संग्रह आवी जगदीश्वरा सामु जुओ जरा, आपने चरण दास आव्यो...६... विनति सांभळो मकी मन मिळो, शरण आव्यानी सहाय करजो, आपी विश्वासने कापी कंकासने, विश्वना नाथजी आश पूरजो...७... मूत्ति मन भावती गई चोवीशीमां, भावे भरावी श्रावक अषाढी, __ मूर्छना पामीया यादवो युद्धमां, कृष्णदेवे बहार तदा काढी...८... पुन्य पूजा करी शांति पाछी वळी, सर्व विपदा टली हे कृपालु, अजित सूरि उच्चरे वहार करजो हवे, सेवना सेव्य छो हे दयालु...... [२२] विमल केवल ज्ञान समुज्ज्वलं, सकल दुर्जय कर्म विनाशकम्, निखिल सद्गुण भूषण भूषितं, निशदिन प्रणमामि जगत्प्रभुम्...१... जगतिनाथ जिनेश्वर शंकरं, भविकपद्म सुबोध दिवाकरम्, __ सुर नरेन्द्र समग्र सुपूजितं, सकल सिद्धि समृद्धि प्रदायकम्...२... Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ - जिन विशेष अखिल वस्तु निरन्तर दर्शकं, सकल सृष्टि शुभंकर नायकम्, विशद मोद जगज्जन सेवितम्, गुणनिधि प्रभु पार्श्वजिनोत्तमम्...३... [२३] प्रेमे प्रणमं प्रह समे, पार्श्व जिनेश्वर देव, मूरति शांति दायिनी, अहनिश करू तस सेव...१... शांत सुधारस झीलती, मुद्रा मोहनगारीः आण वहुं प्रभु ताहरी, कर भव जल पारी...२... तुज मूरति मन रति करे, शाश्वता सुखनी अह, अश्वसेन वामाकुले, नभमणि गुणमणि गेह...३... जग चिन्तामणी जगगुरु, जग बंधव जगभाण, सेवक उद्धरी आपनो, करजो आप समान... ४... सायर देखी चन्द्रने, भरति करी मलकाय, सहज कलानिधि आपने, निरखी चित्त हरखाय... ५... [२४] श्री चिंतामणी पासजी, वामानंदन देव, अश्वसेन कुल चंद्रमा, कीजे अहोनिश सेव... १... पंचम आरे जीवने, अ प्रभुनो आधार, अंतर शत्रु टालता, वारता विषय विकार...२... साचो शरणो नाथनो, पामे जे पुन्यवंत, लाख चोराशी भ्रमणनो, ते पामे झट अंत... नमीये नित्य प्रभात, लहीये अनुपम शांत... ४... .३... मात पिता बंधव तुमे, तुंही - तुंही रटना करी, [ ६५ ] Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५६ ] चैत्यवंदन संग्रह श्री महावीर स्वामिना चैत्यवंदनो (१) शासन नायक जग जयो, वर्धमान वड वीर, उपकारी ऋण लोकनो, तारण भवजल तीर... १... त्रिशलानंदन वंदता कर्म होवे चकचूर, तुज मुख दीठा लहे, समकित तेज सनूर...२... मृगपति लंछन शोभतो, सिद्धारथ कुल भाण, कीर्तिचंद्र सुपसायथी, केशरविजे लहे नाण...३... (२) जगबांधव जगनाथ, वर्धमान जगदीसरु, जगदानंदन जिनवरु, जगतशरण शिवसाथ... १... अकल अमल जिन केवली, वक्त्र विमल जिनराज, भव्य विबोधन दिनमणी, मिथ्यात्व रविराज...२... अह चरम जिन ध्यानथी, सुख संश्रेय उदार, इह लोके शुभ सुख लहे, वीर जिणंद जुहार...३... (३) त्रीस वरस गृहवास जास, त्रणे ज्ञाने स्वामी, चउनाणी चारित्रिया, निज आतम रामी ... १... बार वरस उपर वळी, साडा खट मास, घोर अभिग्रह आदर्यो, कीम कीजे तास...२... माघव शुदि दशमी दिने, पाम्या केवलनाण, पद्म कहे महोत्सव करो, चउवीह सुर मंडाण ...३... Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [८७] नव चोमासी तप कर्या, त्रण मासी दोय,. दोय-दोय अढीमासी तिम,-दोढ मासी होय...१... बहोंतेर पासखमण कर्यां, मासखमण कर्यों बार, षड् द्विमासी तप वळी, बार अट्ठम तप सार...२... षड्मासी अक तप कर्यो, पंच दिन उणषड् मास, बसोओगणत्रीस छठ भला, दीक्षा दिन अक खास...३... भद्र प्रतिमा दोय भली, महाभद्रे दिन चार, दश दिन सर्वतोभद्रवा, लागठ निरधार...४... विण पाणी तप आदर्यो, पारणादिक जास, द्रव्याहारे पारणा कर्या, त्रणसो ओगणपचास...५... छद्मस्थ अणीपेरे रह्या, सह्या परिषह घोर, शुक्लध्यान अनले करी, बाळयां कर्म कठोर...६... शुक्लध्यान अंते रह्या, पाम्या केवलज्ञान, पद्मविजय कहे प्रणमतां, लहीले नित कल्याण...७... जय जय श्री जिन वर्धमान, सोवन सम काय, सिंह लंछन सिद्धार्थराव, सुत त्रिशला माय...१... वरस बहोंत्तर आउ देह, कर सत्त प्रमाण, ऋषभादिक सम जास वंश, इक्ष्वाकु सम जाण...२... छट्ठ भत्त संजम लीयो, कुंडलग्राम शुभ ठाम, गणधरे अग्यारे सहित, आव्यो शिवपुर स्वाम...३... चौदह सहस मुनि शिष्य, छत्रीस सहस, श्रमणी श्रावक अक लाख, गुणसट्ठ सहस्स...४... Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [55] चैत्यवंदन संग्रह ३... तीन लाख श्राविका वली, अधिक सहस अढार, सुर मातंग सिद्धायिका, नित सानिध्य कार... ५... ओकाकी पावापुरीओ, छट्ठ भक्त सुजाण, प्रभु पहोता अमृतपदे, करो संघ कल्याण... ६... श्री महावीर स्वामीना पंच कल्याणकनुं चैत्यवंदन ( ६ ) सिद्धारथ सुत वंदीओ, त्रिशला देवी माय, क्षत्रियकुंडमां अवतर्या, प्रभुजी परम दयाल... १... उज्वली छठ अषाढनी, उत्तरा फाल्गुनी सार, पुष्पोत्तर विमानथी, चवीआ श्री जिनभाण...२... लक्षण अडहिय सहसओ, कंचनवर्णी काय, मृगपति लंछन पाउले, वीर जिनेश्वर राय ... चैत्र शुदि तेरश दिने, जनमिया श्री जिनराय, सुर नर मळी सेवा करे, प्रभुनुं जन्म कल्याण... ४... मागशर वदि दशमी दिने, लीओ प्रभु संजम भार, चउनाणी जिनजी थयां, करवा जग उपकार... ५... साडाबार वरस लगे, सह्यां परिषह घोर, घनघाती च कर्म जे, वज्र कर्यां चकचूर... ६... वैशाख शुदि दशमी दिने, ध्यान शुक्ल मन ध्याय, शमीवृक्ष तळे प्रभु, पाम्या पंचम नाण... ७... संघ चतुर्विध स्थापवा, देशना दीये महावीर, गौतम आदि गणधरु, कर्या वजीर हजूर... ८... कार्तिक अमावस्या दिने, श्री वीर लह्या निर्वाण, प्रभाते इंद्रभूतिने, आप्यु केवलनाण... ६... Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [८६] ज्ञानगुणे दिवा कर्या अ, कार्तिक कमला सार, पुण्ये मुगति वधू वर्या, वरती मंगल माल...१०... राय सिद्धारथ कुलतीलो, त्रिशलादे मात, हरि लंछन कंचन वरण, सात हाथ सोहेत...१... आयु बहोतेर वरस मान, सकलारथ साधी, शिवपद पाम्या धरीय ध्यान, संजम आराधी...२... आठे मद छंडो करीओ, प्रणमो वीर जिणंद, ज्ञानविमल प्रभु सेवतां, नित्य-नित्य आणंद...३... जगनाथ जगदानंद जगगुरु, विमल केवल भास्करम्, संसार सुखकर जगत हितकर, नमो वीर जिनेश्वरम्.१ भव ताप हर्ता, शान्तिकर्ता, मोक्षमार्ग स्फूटकरम्, निज दिव्य अनुभव आत्म सुखकर, नमो वीर जिनेश्वरं.२ हेय ज्ञेय पदार्थ जग सब, उपादेय दिवाकरम्, विज्ञान विशद विवेक दिनकर, नमो वीर जिनेश्वरं.३ प्रकाशता प्रभु ध्यान ध्याता, ध्येय गुणकर शोभितं, सर्व वांछितपूर जिनवर, नमो वीर जिनेश्वरं.४ ॐ अर्ह श्री महावीर, वर्धमान जिनेश्वर, शांति तुष्टिं महापुष्टिं, कुरु स्वेष्टं द्रुतं प्रभो...१.. सर्व देवाधिदेवाय, नमो वीराय तायिने, ग्रह भूतं महामारी, द्रुतं नाशय नाशय...२... Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्यवंदन संग्रह [20] सर्वोपद्रव नाशतः, , सर्वत्र कुरु में रक्षां जयं च विजय सिद्धि, कुरु शीघ्र कृपानिधे ...३... त्वन्नामस्मरणाद् देव, फलतु मे वांछित सदा, दूरीभवन्तु पापानि, मोहं नाशय वेगतः... ४... ॐ ह्रीं अहं महावीर, मंत्र जापेन सर्वदा, बुद्धिसागर शक्तिनां, प्रादुर्भावो भवेद् ध्रुवम्... ५... (१०) वर्धमान जिनवर धणो, प्रणमुं नित्यमेव, सिद्धारथ कुल चंदलो, सुर निर्मित सेव...१... त्रिशला उदर हंस सम, प्रगट्यो सुखकंद, केशरी लंछन विमल तनु, कंचनमय वृंद...२... महावीर जगमां वडो ओ, पावापुरी निर्वाण, सुर नर भूप नमे सदा, पामे अविचल ठाण...३... (११) श्री सिद्धारथ नृप कुलतीलो, त्रिशला मात मल्हार, हरि लंछन तनु सात हाथ, महिमा विख्यात... १ त्रीस वरस गृहवास छंडी, लीओ संयम भार, बार वरस छद्मस्थ मान, लही केवल सार... २ त्रीस वरस ओम सवि मलीओ, बहोंतेर आयु प्रमाण, दिवाली दिन शिव गया, कहे नय ते गुणखाण... ३ (१२) वंदु जगदाधार सार, शिवसंपत्ति कारण, जन्म जरा मरणादि रूप, भव ताप निवारण... १... Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तोर्थ-जिन विशेष [११] श्री सिद्धारथ तात मात- त्रिशला तनु जात, सोवन वरण शरीर वीर, त्रिभुवन विख्यात...२... अमृत रूपे राजतो अ, चोवीशमो जिनराय, क्षमा प्रमुख कल्याण गुण, आपो करी सुपसाय...३... सिद्धार्थ पुत्रं त्रिशलोद्भवं च, मुक्तं जरा मृत्यु विभाग संगैः, सुसंयम ध्यान सुरक्त चित्तं, _ नमाम्यहं श्री जिन वर्धमानं...१... भावारि मातंग दल द्विपारि, सुदर्शन ज्ञान निदान पूजम्, लोकत्रयोद्भासनभासरं च, नमाम्यहं श्री जिन वर्धमानम्...२... संसारवारांनिधि यानपात्रं, निजात्मभावा लयलीनचित्तम्, सुदर्शन क्षायकभाव युक्तं, ___नमाम्यहं श्री जिन वर्धमानम्...३... प्ररुपितो द्वन्दविधः सुधर्म, स्त्रैलोक्य कल्याण विधायकश्च, सर्व प्रदेश विमलात्मरूपं, नमाम्यहं श्री जिन वर्धमानम्...४... त्वदीय भाषामृत पान योगै, मयाजितं दर्शनमत्र शुद्धम्, Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२] यथार्थ षड् द्रव्य विकासकं च, चैत्यवंदन संग्रह नमाम्यहं श्री जिन वर्धमानम् ... ५... वीर प्रभुना जन्म कल्याणकनु चैत्यवंदन (१४) केवल कमला दिनकरु, शासनपति प्रभु वीर, ओकवीस सहस वरस लगे, शासन अविचल धीर... १... चैत्र शुदि तेरस निशि, जन्म्या जग सुखकार, तीन लोक उद्योत करे, सकल जीव हितकार...२... तीन नरक लगे वेदना, देवे परमाधामी, कर्या कर्म सहु अनुभवे, कोई नहीं विशरामी...३... सर्वे नरकना नारकी, मांहो मांह लडे धाय, भेदन छेदन दुःख घणां दुष्ट करम सुखदाय... ४... वीज झबुकानी परे, साते नरक मोझार, ते समये उद्योतथी, सहुने होय विचार... ५... नारक जीव सुखीया थयाओ, अंतर मुहुरत ओक, दीपविजय कवि ईम कहे, वीर जन्म सुविवेक... ६... वीर प्रभुना दीक्षा कल्याणकनु चैत्यवंदन [१५] भोग करम क्षीण जाणीने, दीक्षा समय पिछाणी, लोकांतिक आवी कहे, जय जय जय जय वाणी... १ स्वर्ग पंचम शुभ ठाणमां, त्रस नाडीने अंत, बसे तिहां ते कारणे, लोकांतिक कहंत... २ ओ भवथी बीजे भवे, पावे पद निरवाण, तेहथी लोकांतिक कहे, गुण निष्पन्न प्रमाण... ३ लोकांतिक वयणा सुणी, वीर जगत गुरु धीर, वरसे करसी दानने, सवा पहर दिन तीर... ४ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ - जिन विशेष [ ६३ ] सोनैया अंशी रति, मात-पिता निज नाम, सीक्को त्रणे नामनो, जाचो कंचन दाम... ५ ओक कोड ने आठ लाख, देवे दान प्रभात, वरह वरह वाणी सदा, गुप्त शब्द संभळात... ६ तोस सोनैये ओक शेर, बारसें मण जाणो, नव हजार मण ओक दिन, सोनुं दान प्रमाणो... ७ चालीश मणना मापनुं, गाडुं ओक भरावे, अहवा बसे पचीश मान, दिन प्रति देवाये...८ वरस दिवसना सोनया, त्रणशे क्रोड अठयासी, अंशी लाख उपर वळी, संख्या अह प्रकाशी...६ गणना ओक दिवस परे, वरस दिवस नी लीजे, गणधर वचन प्रमाणथी, ओ उपकार करीजे... १० षट् अतिशय जे दानना, तेहथी देवे दान, दोय हाथे दोय मुट्ठी, याचक भाग्य प्रमाण... ११ दीपविजय कविरायनो ओ, वीर प्रभु दीये दान, भव्य जीवने योग्यता, कारण परम निधान...१२ श्री वीरप्रभुना केवलज्ञान कल्याणकनु चैत्यवंदन ( १६ ) वीर चरम परमातमा, दर्शन ज्ञान अनंत, वीतराग भावे थया, समवसरण विलसंत... १... इंद्रभूति आदि सहु, अकादश गुणवंत, ओकेको संदेह ते, टाळे श्री भगवंत... २... दीक्षा शिक्षा देइने, थाप्या गणधर नाणी, अंतर मुहरतमां रची, द्वादशांगी गुणखाणी...३... Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [६४] चैत्यवंदन संग्रह कोडाकोडी वीश वली, उपर छयासी क्रोड, अडसठ लाख हजार पांच, षट् शत उपर जोड...४... ओ पद द्वादशांगो तणा, गणधर लब्धि जोगे, अंतर मुहुरतमां रच्या, क्षय उपशम संजोगे...५... चार हजारने चारशें, सहु गणधर परिवार, दीपविजय कविराज ते, वंदे वार हजार...६... श्री अरनाथ भगवंतना चैत्यवंदनो नगर गजपुर पुरंदर पुर, शोभया अति जित्वरं, गज वाजि रथ वर कोटि कलितं, इंदिराभृत मंदिरं, नरनाथ बत्रीस सहस सेवीत चरणपंकज सुखकरं, सुर असुर व्यंतरनाथ पूजोत, नमो श्री अर जिनवरं...१ अप्सरा सम रूप अद्भुत, कला यौवन गुणभरी, अक लाख बाणुं सहस उपर, सोहीजे अंतेउरी, चोराशी लख गज वाजी स्यंदन, कोटि छन्नु भट वरं.सुर.२ सग पणिदी सग अगिदी, चौद रत्नशं शोभितं, नवनिधानाधिपति नाकी, भक्तिभावभूतैनतं, कोटि छन्नु ग्रामनायक, सकल शत्रु विजित्वरं.सुर.३ सहस अष्टोत्तर सुलंछन, लक्षित कनकच्छवि, चिन्ह नंदावर्त्त शोभित, स्वप्रभानिजित रवि, चक्री सप्तम भुक्तभोगी, अष्टादशमो जिनवरं.सुर.४ लोकांतिकामर बोधितो जिन, त्यक्त राज्यरमाभरं, मृगशिर अकादशी शुक्ल पक्षे, गृहित संयम सुखकरं, अरनाथ प्रभु पद पद्म सेवा, शुद्धरूप सुखाकरं सुर.५ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [ ६५ ] [२] सयल संपत्ति सयल संपत्ति, तणो दातार. श्री अरनाथ जिनेसरु, शुद्ध दरिसण जे आपे, भूप सुदर्शन नंदनो, कठिन कर्मवेलि कापे...२... अहिज चक्री सातमो, अढारसमो जिन अह, ज्ञानविमल सुख सुजसनो, वर गुणमणिनो गेह...३... [३] ... १... कल्पतरुवर कल्पतरुवर, आज मुज बार. १ फल दल संयुत प्रगटियो, कामकुंभ शुभ सुरवेलि पाइ, चितामणी करतले चढियो, कामधेनु घर आज आइ... २ दोष अढार रहित प्रभु, दीठो सवि सुखकार, ज्ञानविमल अरजिन तणा, गुण अनंत अपार... ३ [४] अह तारक अह तारक, अछे जगमांहि... १ अरजिन सरिखो को नहि, भविक लोकने ग्रहे बांहि, जे छ चत्री सातमो, लही दोय पदवी उच्छाहि... २ अढारसमोसे जिनवरुओ, ज्ञानविमल घणुं नूर, आरो भवनो ओ दिओ, नामे सुख भरपूर... ३ [ ५ ] आप ज्ञानथी अनुभवी, निज दीक्षा काल, नगरादिक सवि परिहरी, परिग्रह जंजाल ... १... अक सहस वर पुरुष साथे, करि अति बहुमान, मृगशिर शुदि अकादशी, अश्विनी अभिराम...२... Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्यवंदन संग्रह लोच करि व्रत आदरेओ, चार जाम जस धर्म, ते अरजिनवर मुज दीयो, दान सदा शिव शर्म...३... सकल नयर शिणगार हार, गजपुर वर नयर, राय सुदर्शन तास नार, देवी जस अपछर...१... तस कुखे अवतार लीध, त्रिहुं भवन वंदिता, कुमरपणे अकवीश सहस, सुखे वरस व्यतीता...२... तेतां वरस मंडलिकपणुं ओ, पाले अखंडित आण, ते अर जिनवर नामथी, दान लहे कल्याण...३... [७] चउराशि लख रथ तुरंग, गजराज उदार, पायक छन्नु कोडि भूप, बत्रीश हजार... चोसठ सहस अंतेउरी, पुर गाम अपार, चोद रतन नवनिधि सहित, बहु ऋद्धि विस्तार...२ अम चक्रीपणुं भोगवी, वरस सहस अकवीश, सुमति दान दायक सदा, ते अरजिन जगदीश...३... [८] राय सुदर्शन कुल नभे, नूतन दिनमणी रूप, देवी माता जनमीयो, नमे सुरासुर भूप...१... कुमर राज्य चक्रीपणे, भोगवी भोग उदार, वेसठ सहस वरसां पछी, लीये प्रभु संयमभार...२... सहस पुरुष साथे लीये, संयम श्री जिनराय, तस पद पद्म नम्या थकी, शुद्ध रूप निज थाय...३... Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [ ६७ ] (ह) अवधिज्ञाने आभोगिने, निज दीक्षा काल, दान संवच्छरी जिन दीये, मनोवांछित तत्काल ... १... धन कण कंचन कामिनी, राज ऋद्धि भंडार, छंडी संयम आदरे, सहस पुरुष परिवार...२... मृगशिर शुदि ओकादशीओ, संयम लीये महाराज, तस पद पद्म सेवन थकी, सीझे सघलां काज...३... श्री मल्लिनाथ भगवंतना चैत्यवंदनो (१) सुखकारण जिन जननी कुखे, ज्यारे अवतरियो, त्यारे शुभ सूचक उदार, चित्त दोहलो धरियो... १... पंच वरण वर सुरभि गंध, अम्लान अमूल, शय्या विरचुं सुघट घाट, लेइ मालती फूल...२... ते माटे जन्म्या पछी ओ, दीयुं मल्लि अभिधान, ते जिन समरणथी सदा, लहे परमसुख दान...३... (२) रहे अहोनिश सुख मगन, नही रोग वियोग, वेदोदय विण भोगवे, प्रभु भोग अशोग...१... आया निर्जरे पूर्व कर्म, नव बंध न आणे, गृहवासे रहे शत वर्ष, चोथे गुणठाणे...२... क्षय कषाय द्वादश करीओ, लहे छट्ठ गुणठाण, मल्लिनाथ जिन तेहना, दान करे गुणगान ...३... Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१८] चैत्यवंदन संग्रह जिम शशि उदित सकल लोक, अंधकार पलाय, घन वर्षते भूमि जन, नवपल्लव थाय...१... प्रगट्यो जिन जनमंत तिय, सघले प्रकाश, प्रसर्यो जग जन चित्तमांही, तिम हर्ष उल्लास...२... मृगशिर शुदिअकादशो, जन्म्या मल्ली जिणंद, ते जिन पाय पसायथी, दान लहे आणंद...३... मल्लि जिनवर मल्लि जिनवर, भविक सुखदाय...१ मिथिला नयरी उपन्या, कुंभराय कुल कमल हंस, कुंभ लंछन ओगणीशमा, प्रभावतो कुखसर राजहंस...२ त्रण कल्याणक जेहनांओ, जनम चरणने नाण, मृगशिर शुदि अकादशी, ज्ञानविमल गुणखाण...३ नमो मल्लि नमो मल्लि, नाथ शिव साथ...१... हाथ दिये भवि बुडतांबे, अपार भवजलधि मांहे, पाप ताप व्यापे नहीं, अह जिन सुरवृक्ष छांहे...२... सकल समीहित पूरणो, ओगणीशमो जिनराज, ज्ञानविमल प्रभु नामथी, सिध्यां सघलां काज...३... नील वाने नील वाने, जेह जिनराज...१ पणवीश धनुष तनु दोपतो, इंद्रनील रत्न जिम सोहे, त्रिगडे बेठा जिनवरु कहे, धर्म भवि चित्त मोहे...२ Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [९६] - ज्ञानविमल गुणथी थयो, लोकालोक प्रकाश, मल्लि जिनवर प्रणमतां, पहोंचे मननी आश...३ पुरुषोत्तम परमातमा, परम ज्योति परधान, परमानंद स्वरूप रूप, जगमां नहीं उपमान... मरकत रत्न समान वान, तनु कांति बिराजे, मुख सोहा श्रीकार देखी, विद्युमंडल लाजे. इंदि वर दल नयन सयल, जन आणंदकारी, कुंभ राय कुल भाण भाल, दोधित मनोहारी...३... सुरवधु नरवधु मली मली, जिनगुण गण गाती, भक्ति करे गुणवंतनो, मिथ्या अघ घाती. मल्लि जिणंद पद्मनोओ, नित्य सेवा करे जेह, रूपविजय पद संपदा, निश्चय पामे तेह...५... जय निजित मदमल्ल, शल्य त्रय वजित स्वामी, जय निजित कंदर्प दर्प, निज आतमरामी.. दुर्जय घातिकर्म मर्म, भंजन भडवीर, निर्मल गुण संभार सार, सागर वर गंभीर...२... अनंत ज्ञान दर्शन धरुओ, मल्लि जिणंद मुणींद, वदन पद्म तस देखतां, लहे चिद्रुप अमंद...३... अभ्यंतर परिषद अनूप, त्रणशें नृप कन्या, तिम त्रणशें नृप पुत्र बाह्य, परिषदमां धन्या...१... Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१००] चैत्यवंदन संग्रह मृगशिर शुदि अकादशी, ग्रहे दीक्षा भावे, देव दुष्य तव इंद्र अॅक, जिन खंधे ठावे...२... उग्र विहार तप प्रभु करे ओ, समता रस भरपूर, गल्लिनाथने मन धरत, दान गयां दुःख दूर...३... [१०] चउनाणी थइ शुक्ल ध्यान, मुनिराज अभ्यासे, अधिक-अधिक तिम आप तेज, क्षण-क्षण प्रकासे...१... पाणि पडिग्गह लब्धिवंत, दुक्कर व्रत धार, दुर्द्धर सिंहपरे अनेक, परिषह सहनार...२.. इणविध दीक्षाने दिने, प्रगटयु केवलज्ञान, ते अरिहंत प्रणामथी, लहीये समकित दान...३... [११] गोत्र काश्यप गोत्र काश्यप, वंश इक्खाग स्वाम...१... त्याग निर्दभ जे कुंभ भूप, कुले जे कुमारी, मयण महाभड भंजियो, वय तरुणपणे निर्विकारी...२... सारी संयम सीरि वरो, ओगणीशमा जिन ओह, मल्लिनाथ नामे थया, ज्ञानविमल गुण गेह...३... [१२] भव्य जीव वर कमल खंड, प्रतिबोध वधारे, नाण किरण विस्तार सार, तम पडल निवारे...१... सुर नर मुनिपति सेवामान, बह लोक सूखंकर, दिन-दिन अभिनव उदयवंत, मल्लिजिन दिनकर...२... नाण लघु अकादशी), उज्ज्वल मृगशिर मास, ते जिनराज प्रसादथी, दान लहे उल्लास...३... Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [ १०१] [१३] अद्भुत रूप सरूप हे, गुण गेह विराजे, लाजे जस मुख देखी चंद, मृगनयणे लाजे...१... नीलक वान सोभागवान, उपमान न अवर, बालपणाथी अधिक तेज, जाणे नव दिनकर... २... पिता प्रमुख बहु लोकने ओ, अंतर घन विश्राम, ते मल्लि जिन देखतां दान सरे सवि काम... ३.. [१४] रयण राशी परे जे गंभीर, मंदर गिरी धीर, विद्युमंडल परे निर्मला, जिम शारद नीर...१... राग द्व ेष दूषित नहीं, नहीं भय-भय जेहने, गुण अनंत भगवंत ते, प्रणमुं हुं तेहने ...२... ज्ञानविमल गुण जेहनाओ, कहेतां नावे पार, मल्लि जिनेसर प्रणमतां, लहीये भवजल पार...३... [१५] अभ्यंतर जस पर्षदा, कन्या त्रण शतनी, बाह्य पर्षदा जाणिये, नृपसुत त्रण शतनी...१... मृगशिर शुदि अकादशी, दिन संयम लेवे, सकल सुरासुर तिहां मली, जिनना पद सेवे...२... दीक्षा समयथी उपजे ओ, तिम मणपज्जव नाण, मल्लिनाथ केवल लहे, ज्ञानविमल सुह झाण...३... [१६] मल्लि जिनवर मल्लि जिनवर, सयल सुख हेते...१... ' Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - [१०२] चत्यवंदन सग्रह संयम गुणधारी थया, भूप मित्र षट् बोधि आपे, कंचनमय करी पूतली, पूर्व प्रेम संकेत थापे...२... माया तप परभावथीओ, पाम्या स्त्रीनो वेद, ज्ञानविमल गुणथी थया, अचल अरूप अवेद...३ [१७] जय जय मल्लि जिणंद चंद, गुण कंद अमंद, नभे सुरासुर चंद, तिम भूपति वृन्द...१... कुसुम गेह शय्या कुसुम, कुसुमाभरण सोहाय, जननी कुखे जब जिनहुता, मल्लिनाम तिणे ठाय...२... कंभ नरेसर कुलतिणोओ, मल्लिनाथ जिनराज, तस पद पद्म नम्या थकी, सीझे सघलां काज...३. [१८] नील वरण दुःख हरण, शरण शरणागत वत्सल, निरूपम रूप निधान सुजस, गंगाजल निरमल... सुगुण सुरासुर कोडि दोडि, नित्य सेवा सारे, भक्ति जुगति नित्यमेव, करी निज जन्म सुधारे...२ बालपणे जिनराजनेअ, सवि मली हुलरावे, जिन मुख पद्म नीहालीने, बहु आणंद पावे...३ जय जय मल्लि जिणंद देव, सेवा सुरपति सारे, मृगशिर शुदि अकादशी, संयम अवधारे...१... अभ्यंतर परिवार में, संयति त्रणशें जास, त्रणशें षट् नर संयमें, साथ व्रत लीओ खाश...२... Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [१०३] देवदुष्य खंधे धरी, विचरे जिनवर देव, तस पद मद्मनी सेवना, रूप कहे नित्यमेव...३... (२०) वैदर्भदेश मिथिलापुरी, कुंभ नृपति कुल भाण, पुण्यवल्लि मल्लि नमो, भवियण सुह झाण...१... पणवीश धनुषनी देहड़ी, नील वरण मनोहार, कुंभ लंछन कुंभनी परे, उतारे भवपार...२... मृगशिर शुदि अकादशी, पाम्या पंचम नाण, तस पद पद्म वंदन करी, पामो शाश्वत ठाण... (२१) पहेलं चोथं पांचम, चारित्र चित्त लावे, क्षपक श्रेणी जिनजी चढी, घातिकर्म खपावे...१... दीक्षा दिन शुभ भावथी, उपन्यु केवल नाण, समवसरण सुरवर रचे, चउविह संघ मंडाण...२... वरस पंचावन सहस- अ, जिनवर उत्तम आय, तस पद पद्म नम्या थकी, चिद्रुप चित्त ठाय...३... (२२) जयो जिनवर जयो जिनवर, जिम जीय लोय जस...१ पसर्यो दह दिसि घणो, दुध सिंधु वरकेण पंडूर, लोकिक देव तणो जिणे, खय कीध पाखंड डंबर...२ अंबरमणि जिम झलहलेले, दिन-दिन अधिक प्रताप, ज्ञान विमल प्रभु मल्लि जिन, ध्याने नासे पाप...३ Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१०४] चैत्यवंदन संग्रह गल्लिनाथ शिवसाथ, आठ वर अक्षरदायी, छाजे त्रिभुवनमांहि, अधिक प्रभुनी ठकुराइ...१.. अनुत्तर सुरथी अनंत गुण, तनु शोभा छाजे, आहार निहार अदृश जास, वर अतिशय राजे...२... मृगशिर शुदि अकादशी, लीये दीक्षा जिनराज, तस पद पद्म नम्या थकी, सीझे सघलां काज...३... श्री नमिनाथ भगवंतना चैत्यवंदनो सकल मंगल केलि कमला, मंदिरं गुणसुंदरं, वर कनक वर्ण सुपर्वपति जस चरण सेवे मनहरं, अमरावती सम नयरी मिथिला, राज्यभार धुराधरं, प्रणमामि श्री नमिनाथ जिनवर चरणपंकज सुखकरं...१ गज वाजि स्यंदन देश पुरधन त्याग करी त्रिभुवन धणी, त्रणशें अठयासी कोडि उपर दीओ लख अशी गणी, दीनार जननी जनक अंकित, दीये इच्छीत जिनवरं.प्रण.२ सहस्राम वनमां सहस नरयुत सौम्य भाव समाचरे, नर क्षेत्र संज्ञी भाव वेदी ज्ञान मनःपर्यंव बरे, अप्रमत्त भावे घाति चउ खय, लहे केवल दिनकरं प्रण.३ तव सकल सुरपति भक्ति नति करी तोर्थपति गुण उच्चरे, जय जगत जंतु जात करुणावंत तुं त्रिभुवन शिरे, जय अकल अचल अनंत अनुपम,भव्य जनमन भयहरं.प्रण.४ सप्तदश जस गणधरा मुनि सहस विशति गुणनोला, सहस अकतालीश साहुणी, सोलसें केवली भला, जिनराज उत्तम पद्मनी परे, रूपविजय सुहंकरं प्रण.५ Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [ १०५ ] (२) पुरुषोत्तम परमेष्टि रूप, परमातम योगी, परमानंद प्रकाशवान, अक्षय उपयोगी...१... निज अनंत पर्याय युत, काल त्रितय वेदी जिणंद, केवलज्ञानने दरिसन अ, ते श्री नमि जिनराजने, दान नमे धरी हेज... ३.. ... सवि जाणे द्रव्य, लहे भव्याभव्य ...२... जलहले अंतर तेज, " (३) नमो नमो श्री नमि जिनवरु, जगनाथ नगीनो, पद युग प्रेमे जेहना पूजे पति शचीनो... १ सिंहासन आसन करी, जग भासन जिनराज, मधुर ध्वनि दिये देशना, भविजनने हित काज... २ गुण पांत्री अलंकरीओ, प्रभु मुख पद्मनी वाणी, ते नमिजिननी सांभली, शुद्ध रूप लहे प्राणी... ३ (४) नमो नमि जिन नमो नमि जिन, मुगति दाता रे... १ सोवन वाने सोहतो, सकल लोक जस सेवा सारे, सुमति सुगतिने आपतो, सकल कर्मना दोष वारे... २ अकवीशमो जिन पूजीओ, जिम लहोये भव पार, ज्ञानविमल सूरि इम भणे, अ प्रभु जगदाधार.... (५) ३ गोत्र काश्यप गोत्र काश्यप, वंश इक्खाग... १ श्री नाम जिननो जागिये, सयल लोय आणंद कारण, अवनितलमां उपन्या मानुं, तेह सवि भविक तारण... २ Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१०६] चैत्यवंदन संग्रह कारण अहिज मुगतिर्नु, श्री जिनवरनी सेव, ज्ञानविमल प्रभुता घणी, आय मले स्वयमेव...३ दुःख दोहग दुःख दोहग, जाय सवि दूर...१... दुर्मति दुर्गति सुपनमां, तेह जननी पासे नावे, जे श्री नमि जिनन सदा,नाम ध्यान अकाग्र ध्यावे...२... करुणा रसनो कूमलो, त्रिभुवननो आधार, ज्ञानविमल प्रभु सेवतां, लहीये लील अपार...३... सकल समीहित सुख करण, सुरतरु उपमान, तरुण तरुणो परे तेजवंत, जग तिलक समान...१... भक्ति धरि सुरसंदरी, करे जस गुण गान, ध्याये सुर नर असुरनाथ, जस शुभ अभिधान...२... शुदि मृगशिर अकादशी), पाम्या ज्ञान अनंत, दान सुहंकर वंदिले, ते नमि जिन जयवंत...३... (८) मल प्रकृतिमां अक बंध, चउ सत्ता उदये, अंक बंध उत्तर प्रकृति, तिम बैंतालीश उदये...१ सत्ता पंचाशी विचार, जेहवी वली छार, मन वच काया योग जास, अविचल अविकार...२ तेरश गुणठाणा तणीओ, धरे दशा ओम जेह, ते नमि जिन अकवीसमो, दान दया गुण गेह...३... Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष |१०७] - - - श्री वासुपूज्य जिन चैत्यवंदन वासुपूज्य चित्तमां वस्या, मनहर मोटा देव, अणहुत कोडि अक सूर, निश दिन करतां सेव...१... दीजिये दरिसण ज्ञान मुज, महेर करी महाराज, चारित्र तप तुंबे करो, भवोदधि पार उतार.. चंपापुरी सिध्यां तुमे, बारमां जिन सुखकार, धर्मविजय मोहे दीजिये, मुक्ति वधु भरतार...३... श्री चन्द्रप्रभ का चैत्यवंदन ॐ चंद्रप्रभ प्रभाधीश, चंद्रशेखर चंद्रभूः, चंद्र लक्ष्यांक चंद्रांक, चंद्रविजय नमो स्तुते...१. ॐ ह्रीं श्रीं चंद्रप्रभु, ह्रीं श्री कुरु स्वाहा प्रभु, इष्ट सिद्धि महासिद्धि, तुष्टि पुष्टि कुरुभवा.. द्वादश सहस जप्ते, वांछितार्थं फल प्रदं, महिते श्री संघ जप्ते, सर्वाधि व्याधि नाशीने.. सुरा सुरेन्द्र महितश्री, पांडव नृप सुत श्री, चंद्रप्रभ तीर्थेशं श्रीयां, चंद्रा ज्वाला कुरु...४... श्री चन्द्रप्रभ विधेयं, स्मृत सिद्ध फलामत, भवाधि व्याधि विध्वंस, दायिनि मे वर सदा...५... आनंद उपनो अति घणो, दुधडे वुठा मेह, चन्द्रप्रभ स्वामि तणो, पाम्यो दर्शन जेह...१... लखमणा उर सर हंसलो, पिता महसेन राय, चंद्रपुरीमां जनमीया, लंछन चंद्र सोहाय...२... Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चत्यवंदन संग्रह [१०८ ] आयु दशलाख पूर्वनुं, दोढसे धनुषनी काय, सम्मेतशिखर मुक्ति गया, नित नित प्रणमुं पाय...३... पाप पडल दूरे गया, पवित्र थयो दिन आज, करुणानिधि विश्वेश्वरा, दीठा श्री जिनराज ... ४... दुस्तर भवसागर हरोओ, विनती मुज अवधार, सहज राजेश्वर जगधणी, वंदु वार हजार... ५... श्री भावि जिन पद्मनाभ स्वामिनु चैत्यवंदन प्रथम जिनेश्वर पद्मनाभ, समरू सुखकारी, भावि जिनवर भरहखित्त, मंडन मणिधारी...१... लांछन वरण सुदेह मान, थिति आयु प्रमाण, परमेश्वर श्री वर्धमान, जिनराज समान... २... उत्तम अमृत धर्मनो ओ, विरह निवारक जाण, भावि जिनवर भेटीये, कारण सदा कल्याण... श्री सामान्य जिन चैत्यवंदनो [१] ..३... जय जय श्री जिनराज आज, मलीयो मुज स्वामी, अविनाशी अकलंक रूप, जग अंतरजामी...१... रूपारूपी धर्मदेव, आतम आरामी, चिदानंद चेतन अचित्य, शिव लीला पामी...२... सिद्ध बुद्ध तुं वदतां सकल सिद्धि वर बुद्धि, राम प्रभु ध्याने करी, प्रगटे आतम ऋद्धि...३... काल बहु स्थावर गृही, भमीयो भवमांहि, विकलेंद्रियमांहि वस्यो, स्थिरता नहीं क्यांहि... ४... , Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [१०६] - - - तिर्यंच पंचेद्रियमांहि देव, करमे हुं आव्यो, करी कुकर्म नरके गयो, तुम दरिशन नहीं पायो...५... ओम अनंतकाले करी, पाम्यो नर अवतार, हवे जगतारक तुं मल्यो, भवजल पार उतार...६... N. B. आमां कर्तानु नाम त्रीजी गाथामा छे तेथी पाछली त्रण गाथा कोइकनी उमेरेली जणाय छे । [२] जगन्नाथने हुं नम हाथ जोडी, करू विनती भक्तिशुं मान मोडी कृपानाथ संसारकुं पार तारो, लह्यो पुण्यथी आज देदार सारो...१... सोहिळा मळे राज्य देवादि भोगो, परम दोहिलो अक तुज भक्ति जोगो, घणा कालथी तुं लह्यो स्वामी मीठो, प्रभु पारगामी सह दुःख नीटो...२... चिदानंद रूपी परब्रह्म लीला, विलासी विभो त्यक्त कामाग्नि कीला, गुणाधार जोगीश नेता अमायी, जय त्वं विभो भूतले सुखदायी...३... न दीठी जेणे ताहरी योग मुद्रा, पड्या रात दिवसे महा मोह निद्रा, कीसी तास होशे गति ज्ञान सिंधो, भमंता भवे हे जगज्जीवबंधो...४... Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [११०] चैत्यवंदन संग्रह सुधास्वंदी ते दर्शनं नित्य देखे, गणुं तेहनो हुं विभो जन्म लेखे, त्वदाज्ञा वशे जे रह्या विश्व मांहे, करे कर्मनी हाण क्षण अक मांहे...५... जिनेशाय नित्यं प्रभाते नमस्ते, भवि ध्यान होजो हृदये समस्ते, स्तवी देवना देवने हर्ष पुरे, मुखांभोज भाळी भजे हेज उरे...६... कहे देशना स्वामी वैराग्य केरो, सुणे पर्षदा बार बेठी भलेरी, सुधां भोज धारा समी ताप टाले, बेहु बांधवा सांभले अक ढाळे...७... परमेसर परमातमा, पावन परमिठ, जय जग गुरु देवाधिदेव, नयणे में दीठ...१. अचल अकल अविकार सार, करुणा रससिंधु, जगति जन आधार अंक, निष्कारण बंधु...२... गुण अनंत प्रभु ताहरा ओ, कीमहि कह्या न जाय, राम प्रभु जिन ध्यानथी, चिदानंद सुख थाय...३... [४] परमानंद प्रकाश भास, भासित भव कीला, लोकालोक पेखवे, नित अहवी लीला...१... भाव विभाव पणे करी, जेणे राख्यो अलगो, तक्रपरे पय मेलवी, तेह थकी नवि वलगो...२... Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ - जिन विशेष [ १११] • तेणी परे आतम भावने ओ, विमल कर्यो जेणे पुर, ते परमातम देवनुं दिन-दिन वधतुं नूर...३... नामे तो जगमा रह्या, स्थापना पण तिमही, द्रव्ये भवमांहे वसे, पण न कळे किमही ... ४... भाव थकी सवि अकरूप, त्रिभुवन में त्रिकाले, ते परमातम वंदिओ, तिहुं योगे स्वभाले ... ५... पाले पावन गुण थकीओ, योग क्षेमकर जेह, ज्ञानविमल दर्शन करी, पूरण गुण मणि गेह... ६... [ ५ ] मुख निरखी जिनराजजी, भावुं भाव उदार, धन्य दिवस वेला घडी, दीठो तुम देदार...१... अंतरजामी तुं माहरो, समरू वारंवार, तारक बिरुद सुणी करी, मन-मंदिर अकवार...२... सुता बेठा जागतां, अक्रज तमारू ध्यान, योगीश्वर पेरे जपुं, निरखुं परम निधान...३... सुरहि समरे वच्छने, कोयलडी मधु मास, तिम समरू हुं तुजने, चंद्र चकोर उल्लास... ४... जिम घन गर्जित मोरने, उलट अंग थाय, निरखीने हरखे घणुं, मुज मन आवे दाय... ५... अण संभार्या सांभरे, समय-समय सो वार, नयन अमारा लालचं, देखत तुम देदार...६... तुं मन मान्यो माहरे, तुंहिज जीवन प्राण, सेवक करीने दाखवो, तुं मोटो महिराण... ७... Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [११२] चत्यवंदन सग्रह - काल मोघे जे दान दिये, तेहनी जगमां वाह, ते माटे हवे आजथी, रखे विसारो नाह...८... अकवार सेवक करो, बोलावी महाराज, मुक्ति प्रभु हुं न मांगतो, अटले सिध्यां काज...६... मेरू तणे परे धीर वीर, निरधि गंभीर, चंद्र तणी परे सौम्य तेज, झलके जिम हीर...१... राग रोष मन नहीं लगार, नहीं विषय विकार, शांति कांति रति मति प्रमुख, गुण जलधि अपार...२... दिन दिन वान वधु बहु अ, जिम कंचन परभाग, ते भगवंतनी भक्तिथी, दान थयो महाभाग...३... [७] सकल सुरासुर इंद वृन्दा, भावे कर जोडी, सेवे पद पंकज सदा, जघन्य थकी अक कोडी...१... जास ध्यान अक तान करे, जे सुर नर भावे, संकट कष्ट दूरे टले, शुचि संपद पावे...२... सर्व समीहित पूरवा ओ, सुरतरु सम सोहाय, तस पद पद्म पूज्या थकी, निश्चय शिवसुख थाय...३... [८] जिम चैत्री पूनम तणो, अधिको विधु दीपे, ग्रह गण तारादिक तणां, परम तेजने जीपे...१... तिम लौकिकना देव ते, तुम आगे होणा, लोकोत्तर अतिशय गुणे, रहे सुर नर लीणा...२... Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [११३] निर्वृत्ति नगरे जायवा, अहिज अविचल साथ, ज्ञानविमल सूरि अम कहे, भव-भव ओ मुज नाथ...३... तुज मूरतिने नोरखवा, मुज नयणां तरसे, तुम गुणगणने वोलवा, रसना मुज हरसे...१... काया अति आणंद मुज, तुम पदयुग फरसे, तो सेवक तार्या विना, कहो किम हवे सरशे...२... अम जाणीने साहिबाओ, नेक नजर मोहे जोय, ज्ञानविमल प्रभु सुनजरथी, तेहशुं जेह नवि होय...३... (१०) अलख अगोचर अकल रूप, अविनाशी अनादि, अक अनेक अनंत अंत, अविकल अविवादि...१... सिद्ध बुद्ध अविरुद्ध शुद्ध, अजर अमर अभय, अव्याबाध अमरतिक, निरुपाधिक निरामय...२... परम पुरुष परमेसरू, प्रथम नाथ परधान, भव-भव भावठ भंजणो, तारक तुं भगवान.. रसना तुज गुण संस्तवे, दृष्टि तुज दरशन, नव अंगे पूजा समे, काया तुज फरशन...४... तुज गुण श्रवणे दोश्रवण, मस्तक प्रणिपाते, शुद्ध निमित्ती सवि हुआ, शुभ परिणती थाते...५... विविध निमित्त विलासथी, विलसे प्रभु ओकांत, अवतरियो अभ्यंतरे, निश्चय ध्येय महंत...६... भावदृष्टिमां भावतां, व्यापक सवि भासे, उदासीनता अवरशं, लीनो तुज गुण वासे...७... Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [११४] चत्यवंदन संग्रह दोठा विण जे देखिये, सूता पण जगवे, अवर विषयथी छोडवे, इन्द्रिय बुद्धि त्यजवे... ८... पराधीनता मिट गई, भेद बुद्धि गइ दूरे, अध्यात्म प्रभु परिणम्यो, चिदानंद भरपूरे... ६... ज्योतिशुं ज्योति मिल गई, प्रगट्यो वचनातीत, अंतरंग सुख अनुभव्यो, निज आतम परतीत...१०... निर्विकल्प उपयोग रूप, पूजा परमारथ, कारक ग्रह अक अ, प्रभु चेतन समरथ... ११... वीतराग ओम पूजताओ, लहिये अविहड सुख, मानविजय उवझायनां, नाठां सघलां दुःख... १२... (११) , जगन्नाथ जगत्रात, कृपाकर कृपापद, शरण्य भक्त साधार, शृणु विज्ञप्तिकां मम...१... नाथोऽसि त्वमनाथानां, जंतूनां भव तारकः, ममोद्धर्ता किलेदानी - मेकस्त्वमसि वा परः...२... यदहं किंचिद् ज्ञाना - द्विपरीतं तवागमत्, ब्रवीमि मध्ये लोकानां तत्र त्वं मम साक्षिक:...३... त्वत्तः परं न देवं मनसा ध्यायामि सर्वथानाथ, वचसापि न स्तवीमि, प्रणमामि न मस्तकेनाहं ... ४... भाव विशुद्धि स्वामि, मम विज्ञाता त्वमेव सर्वज्ञ, किं बहुना गदितेन, प्रभुरेको मे त्वमेवासि... ५... सामान्य जिन तथा पूजाना फलतु चैत्यवंदन परमानंद विलास भास, शासन छे जेहनु, वरस सहस अकवीश, वहालुं छे तेहनुं ... १... 1 Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [११५] श्री महावीर महियल करू, पण समता धारी, जोश न कबहु लेखवे, सहुने हितकारी...२... बह अतिशय लीलावती, करतां जन प्रसन्न, ब्रह्मचारी चूडामणी, जस नहीं विषयनो संग.. गुरु पासे भणिया नहीं, पण सघल जाणे, निंद विना परमेश्वरा, सुख सघलां माणे...४... रजत मणि गढ हेम वसे, नहीं परिग्रह पास, चामर छत्र विंझावता, निप्परिग्रहता भास...५... सेवा करावे सह भणी, नाम धरावे साधु, साध धरामण को नहीं, सूक्ष्म निराबाधु...६... राग नहीं पण रीझवे, सवि भविनां चित्त, द्वेष नहीं पण टाळीया, मोहादिके अमित्त...७... काम नहीं पण भोगवे, सवि वस्तुना धर्म, कर्म नहीं पण सवि तणां, कहे कर्मना मर्म...८... नर्मादिक लोला नहीं, शर्म तणो नहीं पार, तस गुण दाखवी नवि शकुं, जो होय जीभ अपार...६... जिनवर बिंबने पूजतां, होय शतगणुं पुन्य, सहसगणुं फल चंदने, जे लेपे ते धन्य...१०... लाख गणुं फल कुसुमनी, माला पहेरावे, अनंतगणुं फल तेहथो, गीत गान करावे...११... तीर्थंकर पदवी वरे, जिनपूजाथी जीव, प्रीति भक्तिपणे करी, स्थिरतापणे अतीव...१२... जिनपडिमा जिनसारिखी, सिद्धांते भाखी, निक्षेपा सहु सारीखा, थापना तिम दाखी...१३... Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [११६] चैत्यवंदन संग्रह त्रण काल त्रिभुवन मांही, करे ते पूजन जेह, दरिशन केरू बीज छे, अहमां नहीं संदेह... १४... ज्ञानविमल प्रभु तेहने, होय सदा सुप्रसन्न, ही जीवीत फल जाणोजे, तेहिज भविजन धन्न... १५... अतीत चोविशी चैत्यवंदन (१) उत्सर्पिणी आरे थया, केवल नाणी जिणंदा, निरवाणी सागर प्रभु, महाजस विमल मुणिदा... १... सर्वानुभूति नमुं श्रीधर श्रीदत्त स्वाम, दामोदर नमुं सुतेज जिन, स्वामि मुनिसुव्रत नाम...२... सुमति शिवगति अस्तांगन मी, अनिल यशोधरदेव, कृतारथ ओगणीशमा करो जिनेश्वर सेव...३... शुर्धमति शीवंकरु, स्पंदन संप्रतिनाथ, अतीत चोवीशी वंदतां, श्री शुभवीर सनाथ...४... (२) , अतीत चोवीशी प्रथम देव, निर्वाणी सागर महा- जस सर्वानुभूति श्रीधर, सुदत दामोदर सुतेजा, स्वामी सुव्रत सुमति ने, शिवगति सुहेजा...२... अस्ताग नेमिश्वर अनिल, यशोधर कृतार्थजिनेश, शुद्धमति ने शिवंकरी, स्यंदन संप्रति कहेश...३... (३) अतीत चोवीशी वंदिले, आतम शुभ भावे, अरिहंत नामना जापथी, मंगळ माला पावे. १... जिन केवलज्ञानी, विमल अभिधानी... १... Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [११७] केवलज्ञानो पहेला नम, निर्वाणी सागर, महाजस विमल ते पांचमा, सर्वानुभूतीश्वर...२... श्रीधर दत्त दामोदर नमो, सुतेज श्री स्वामी, मुनिसुव्रत जिन बारमा, सुमति शिवगति नामी...३... अस्ताग नमीश्वर सोळमा, अनिल यशोधर देव, कृतार्थ जिनेश्वर शुद्धमति, शिवंकर करो सेव...४... स्यंदन संप्रति चोवीसमा, प्रह उठी गाउं, ऋद्धि कीति प्रभु ध्यानथी, अमृत पद पाउं...५... आवती चोवीशीन चैत्यवंदन पद्मनाभ पहेला जिणंद, श्रेणिक नृपति जीय, मुरदेव बीजा नमुं, सुपास श्रावक जीव...१... श्री सुपार्श्व त्रीजा वली, जिव कोणिक उदायी, स्वयंप्रभ चोथा जिणंद, पोटिल मन भावी...२... सर्वानुभूति जिन पांचमाओ, दढायु श्रावक जाण, देवसुत छट्ठा जिणंद, श्री कार्तिक शेठ वखाण...३... श्री उदय जिन सातमाओ, शंख श्रावक जीव, श्री पेढाल जिन आठमा, अनंत मुनि जीव...४... पोटिल नवमा वंदिले ओ, जीव जे सुनंद, शतकोत्ति दशमा जिणंद, शतक श्रावक आनंद...५... सुबत जिन अगियारमाओ, देवकी राणी जीव, श्री अमम जिन बारमा, कृष्णजी नो जीव...६... निष्कषाय जिन तेरमाओ, सत्त्यकी विद्याधर, निष्पुलाक जिन चौदमा, बलभद्र सुहंकर...७... Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [११८] चत्यवंदन सग्रह निर्मल जिन पंदरमाओ, जीव सुलसा भावि, चित्रगुप्त जिन सोलमा, रोहिणी मन भावि...८.. समाधि जिन सत्तरमा, रेवती श्राविका जाण, श्री संवर जिन अढारमा, जीव शतानिक वखाण...... श्री यशोधर ओगणीशमा, जीव किसन द्विपायण, विजय नाम जिन वीशमा, जीव करण सुजाण...१०... अकवीसमा श्री मल्लनाम, जीव नारदनो कहिये, अंबड श्रावक जीव देव, बावीशमा लहीये...११.. अनंतवीर्य त्रेवीसमा, जीव अमरनो अह, भद्रकृत जिन चोवीशमा, शतबुद्धि गेह...१२... ओ चोवीशे जिन होशे, आवंते काले, भावसहित जे वांदशे, ते थइ उजमाले...१३... लंछन वर्ण प्रमाण आयुष, चढतां सवि निरखो, सांप्रत जिन चोवीश अ, अंतर सवि परखो...१४... पंच कल्याणक तेहना अ, होशे एकज दिस, धीरविमल पंडित तणो, ज्ञानविमल सूरोश...१५... [२] पद्मनाभ सुरदेव ने, सुपास स्वयंप्रभ नाथ, सर्वानुभूति तथा, देवश्रुत शिवसाथ...१ उदय पेढाल ते आठमा, पोटिल ने शतकीत्ति, सुव्रत अममने निष्कषाय, निष्पुलाक निर्मम विरती...२... चित्रगुप्त समाधि जिन, संवर यशोधर ईश, विजय मल्लने देवप्रभ, अनंत वीर्यं जगदोश...३... Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - तीर्थ-जिन विशेष ... [११६] चोवीशमां श्री भद्रकृत, भावि चोवीशी अह, श्री शुभवीरने सांईशं, अविहड धर्म सनेह...४... चोवीश जिननां नामना चैत्यवंदन आदिनाथ अजित देव, संभव गुण भंडार, अभिनंदन सुमति नम, पद्मप्रभ सुखकार...१... स्वामी सुपास सोहामणा, चंद्रप्रभु जिनराज, सुविधि शीतल सेवीये, श्री श्रेयांस शिरताज...२... बासुपूज्य विमल प्रभु, अनंत धर्म अरिहंत, थो शांति प्रभु सोलमा, आपे भवनो अंत...३... कुंथु अर संभारतां, दुरित सकल मिट जाय, मुनिसुव्रत नमि नेमिनाथ, आनंद मंगल थाय...४... पार्श्वनाथ त्रेवीसमा, वर्धमान जिन भाण, चोवीसे चित्त धारतां, लहिये क्रोड कल्याण...५... (२) ऋषभ अजित संभब नमो, अभिनंदन जिनराज, सुमति पद्म सुपास जिन, चंद्रप्रभु महाराज...१ मुविधि शीतल श्रेयांस जिन, वासुपूज्य सुखवास, विमल अनंत श्री धर्म जिन, शांतिनाथ पूरे आस...२ कंथ अर ने मल्लि जिन, मुनिसुव्रत जगनाथ, नमि नेमि पारस वीर, साचो शिवपुर साथ...३ द्रव्य भावथी सेवीओ, आणी मन उल्लास, आतम निर्मल कीजिओ, पामीजे शिववास...४ Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १२० ] चैत्यवंदन संग्रह ओम चोवीश जिन समरतां, पहोंचे मननी आस, ज्ञानविमल सूरि इम भणे, पामे लील विलास...५ [३] श्री शंखेश्वर इश्वरं, प्रणमी त्रिकरण योग, देव नमन चउमासिये, करशुं विधि संयोग ... १... ऋषभाजित संभव तथा अभिनंदन जिनचंद, " सुमति पद्मप्रभ सातमा, स्वामी सुपास जिणंद...२... चंद्रप्रभ सुविधि जिन, श्री शीतल श्रेयांस, वासुपूज्य विमल तथा अनंत धर्म वर वंश...३... शांति कुंथु अर प्रभु, मल्ली सुव्रत स्वाम, नमि नेमिसर पास जिन, वर्धमान गुणधाम... ४... वर्त्तमान जिन बंदताओ, वंद्या देव त्रिकाल, प्रभु शुभ गुण मुक्ता तणी, वीर रचे वरमाल... ५... चोवीश जिननां गणधरोना चैत्यवंदन [१] प्रथम तीर्थंकरने नमुं, गणधर चोराशी देव, पंचाणु जिन अजितनां, वंदु हुं नित्यमेव... श्री संभव जिनवर तणां, गणधर ओकसो होय, अभिनंदन चोथा प्रभु, ओक्सो सोल तस होय...२... सुमतिनाथ प्रभुजी तणां, गणधर ओकसो जाणं, पद्मप्रभ स्वामी तणां, ओक सो सात वखाणं...३... श्री सुपास जिन सातमा, गणधर पंचाणु सार, त्राणुं चंद्रप्रभु तणां, उतारे भवपार... ४... १... Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [१२१] अठ्यासो गणधर नमुं, सुविधि पुष्पदंत, अकाशी शीतल तणां, गणधर गुणवंत...५... श्री श्रेयांसजिन तणां, गणधर बहोतेर नमिये, वासुपूज्य सगसठ नमी, भवना पाप निगमिये... विमल जिनवर तणां, गणधर सत्तावन जाणो, पचास अनंतस्वामीना, नित्य हैडे आणो.. तेंतालीश गणधर नम, धरमनाथ स्वामी, छत्रीस शांति जिणंदना, पंचमी गति पामी.. कुंथु जिनेसर सत्तरमां, गणधर जस पांत्रीस, श्री अरनाथ अढारमा, जस गणधर छे त्रीस...६... अठ्यावीस मल्लि तणां, गणधर अति चंग, मुनिसुव्रतना अष्टादश, प्रणमो मन रंग...१०... नमिनाथ अकवीसमा, सत्तर गणधर कहिये, नेमि निरंजन केरड़ा, अकादश लहिये...११... दश गणधर भावे नम, तेवीसमा प्रभु पास, अकादश जिन वीरना, पूरे जग जन आश...१२... अ चोवीशे जिन तणा, गणधर संख्या जाण, चौदर्श बावन नम, ज्ञानविमल गुण खाण...१३.. गणधर चोराशी कह्या, वलि पंचाणं छेक, दोय अधिक इगसय गणा, सोल अधिक शत अंक...१... शत सुमतिने गणधरा, इगसय अधिका सात, पंचाणुं त्राणु तथा, सुडशीइ इगशीह वात...२... Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ H one - - [१२२] चत्य वंदन संग्रह छोहतेर छासठ सगवन, पचास तालीश, छत्रीस पणतीश कंथुने, अर गणधर तेत्रीश...३... अडवीश अष्टादश सुव्रत, नमी सत्तर गणधार, अकादश दश शिव गया, वीर तणा अगियार...४... ऋषभादिक चोवीशना, अंक सहस सय च्यार, , अधि केरा बावन कह्या, सर्व मलो गणधार...५... अक्षय पद वरिया सवे, सादि अनंत निवास, करी समुचित वंदना, जब लग घटमां सास...६... मरसतो आपे सरस वचन, श्री जिन थुणतां हरखे मन, जिन चोवोशे गणधर जेह, पभणुं संख्या सुणो तेह.१ ऋषभ चोराशी गणधर देव, अजित पंचाणुं करो नित सेव, श्री संभव अकसो दोय, अभिनंदन ओकसो सोळ होय.२ अकसो सुमति शिवपुर वास, पद्मप्रभु अकसो सात खास, स्वामो सुपार्श्व पंचाणुं जाण, चंद्रप्रभु त्राणुं चित्त आण.३ अठ्यासी सुविधि पुष्पदंत, अकाशी शीतल गुणवंत, श्रेयांस जिननां छोतेर सुणो, वासुपूज्य ६६ भवि गणो. ४ विमलनाथ सत्तावन कह्या, अनंतनाथ पचासज लह्या, तेंतालीश गणधर धर्म निदान, शांतिनाथ ३६ प्रधान.५ कुंथु जिनवर कहुं पांत्रीश, अरजिन आराधो तेत्रोल, मल्ली ८८ आनंद अंग, मुनिसुव्रत अष्टादश चंग.६ नमिनाथ सत्तर संभाल, अकादश नमो नेमी दयाल, दश गणधर श्री पार्श्व कुमार, वर्धमान अकादश धार.७ Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [ १२३ ] सर्व मली अ संख्या सार, चौदशो बावन गणधार, पुंडरीक ने गौतम प्रमुख, जस नामे लहीओ बहु सुख. प्रह उठी जपतां जय जयकार, ऋद्धि वृद्धि वांछित दातार, रत्नविजय सत्यविजय बुधराय, तस सेवक वृद्धिविजय गुण गाय । श्री अरिहंत प्रभुना पंच कल्याणकना चैत्यवंदनो च्यवन कल्याणक ७ चैत्यवंदन देवतणं विमान छोडी, जिनजी जब ज्यवन लहे, अंधकारनं शासन तुटेने, तेज धारा बह वहे, बत्रीश लाख विमान मालिक, सौधर्मेन्द्र देखतां, सात पगलां सामे चाली, शक्रस्तवथी सेवतां... १ गजवर वृषभने सिंह वली, लक्ष्मो सपने जोवता, फूल केरी माला देखी, चंद्र सूरज आवता, वनराज मध्ये शोभतो ते, धजा देखे आठमे, पूर्ण कलशो आगले ने, पद्म सरोवर दशमे ... २ रत्नाकर विमान वली, राशि तिहां रत्नो तणी, धूम्ररविण अग्नि जातो, जिन मात केरा मुख भणी, च्यवन कल्याणक समे जिन मात सवि से देखती, धर्मसूरि पसायथी मुज, वाणी जिनगुण गावती... ३ जन्म कल्याणक नु चैत्यवंदन जिन जन्म थावे सुख पावे, सकल जीवो बहु परे, दिक्कुमरी छप्पन मिली आवे, सूती करम रंगे करे, Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१२४] चैत्यवंदन संग्रह जिनराजने हुलरावता मुख कमल जेहना विकसे, जिन जन्म कल्याणक प्रसंगे, मेरू महिमा वन वसे... १ तव अचल जे हंमेश रहेतुं, तेह आसन खळभळे, जिन जन्म अवधि नाणे जाणो, सकल इंद्र तिहां मळे, पांडूक वनमें शीलातल पर देवदेवी मन हसे, अभिषेक करतां सुणे देखे, मेरू महिमा मन वसे... २ विविध तीर्थोने द्रहो ना, जलभर्या कोडि घडा, साठ लाख उपर तेहमां, अभिषेक करे विबुध वडा, अनुमोदता जे भावथी, ते शिवनगरमा जइ वसे, धर्मरत्न पसाय पामी, मेरू महिमा मन बसे... ३ दीक्षा कल्याणक नुं चैत्यवंदन जिनराज दीक्षा काल थाता, अचल आसन खळभळे, लोकांतिक नव देव तिहां, प्रभुजी पास आवी मळे, जयकार करतां प्रभुजोनो, कर जोडी इम विनवे, जगत जीव हित कारणे, संयम गृहो इस्युं लवे... १ इन्द्र थकी आज्ञा लही, कुबेर जृभक ने कहे, जिन मात तातना नामना, सोनँया नव तिहां लहे, षट् अतिशयवंत दान देता, प्रभुजीनी सेवा करे, महादान जे अरिहंतनुं, पावे ते भवसागर तरे... २ निज हाथे सवि शणगार त्यागी, पंचमुष्टि लोच ने, छद्मस्थ केरा ज्ञाननी जे, पालता प्रभु टोच ने, मन पर्यव ज्ञान लही प्रभु विचरता शुभ मने, दीक्षा कल्याणक धर्म गातां, रत्न त्रण आवे कने... ३ Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [१२५] . केवलज्ञान कल्याणक नु चैत्यवंदन उपसर्ग ने परिषह थाता, देव ने मनुज तणां, तिर्यंच केरा जे वळी, दुस्सह भेळा मळे घणां, सवि ते सही शुभ भावथी, जिन घाति कर्म चोकरे, निज बाहु वीर्य पराक्रमे प्रभु ज्ञान केवलने वरे...१ त्रण गढ रचे तिहां देवताओ, रजत स्वर्ण मणीमया, बार पर्षदा बेसे तिहां, सवि जीव तो आनंद भया, प्रभू देशना सुणतां तिहां, सुर मनुज ने तिर्यंच जे, ओक वचन मांही अनेक जीवनी, शंसा प्रभु फेडंत जे...२ अष्ट प्रातिहार्य वली, अगियार अतिशय उपजे, वाणी गुण पांत्रीश तिम, तीर्थंकरोने नीपजे, ओणो परे नाण कल्याणक, अरिहंतनं भावे स्तवं, धर्मरत्न पसाय पामी, सिद्धिगति मारे जवं...३ निर्वाण (मोक्ष) कल्याणक नु चैत्यवंदन समवसरणमां बेसी जिनवर, देशना देता सदा, भविक जीव उपकार करतां, नाम गोत्र खपे तदा, शुक्ल ध्याननी रढ लागी, शैलेषी करता मुदा, अघाती चउनो क्षय करी, संसारथी थाता जुदा...१ निर्वाण कल्याणक प्रभुनं, विबुध वर जाणे यदा, जगमां बधे अंधकार व्यापे, लोक भय पामे तदा, शाश्वतो आचार जाणी, इन्द्र सहु भेला थता, चिता रचे जिन देह काजे, आनंद दूरे खोवता...२ अग्नि जागे वायु वाजे, घृत मधु तिहां सिंचता, आचारथी दाढादि लेइ, स्वर्गमांहि सिधावता. Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१२६] चैत्यवंदन संग्रह - जिन देहनो दाढा तणी, पूजा करी पधरावता, वली आत्मशुद्धि काजे देवो, जिन गुणोने गावता...३ कलश इम जिन कल्याणक, भावथी जेह गावे, अक्षयपद पावे, चउगति दूर थावे, तपगच्छ वर नायक, धर्मसूरि प्रभावे, कल्याणक थुणता, रत्नविजय सुहावे...१ १८ दोष रहित तीर्थंकर नु चैत्यवंदन क्रोध मान मद लोभ माया, अज्ञान अरति रति, हिंसादिक निद्रा अने, मत्सर ने अप्रीति...१... शोक भय अने प्रीति, रतिक्रीडा प्रसंग, दोष अढार प्रगट निकट, नहीं जेने अंग...२... देव सर्व शिर शेहरो अ, ते कहिले निरधार, ज्ञानविमल प्रभु भुवनतो, पूण्य तणो भंडार.. दान लाभ भोगोपभोग, बल पण अंतराय, हास्य अरति रति भय दुगंछा, शोक षट् कहेवाय...१... काम मिथ्यात्व अज्ञान निद्रा, अविरति अपांच, राग द्वेष दोय दोष अ, अट्ठारस साच...२... जे जेणे दूरे कर्यां, तेने कहिये देव, ज्ञानविमल प्रभु चरणनी, कीजे अहोनिश सेव...३... ___ चोवीश जिननां वर्ण नु चैत्यवंदन पद्मप्रभु ने वासुपूज्य, दोय राता कहिये, चंद्रप्रभ ने सुविधिनाथ, दो उज्ज्व ल लहिये...१... Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [१२७] मल्लिनाथ ने सुविधिनाथ, दो नीला निरख्या, मुनिसुव्रत ने नेमिनाथ, दो अंजन सरीखा...२... सोळे जिन कंचन समाओ, अवा जिन चोवीश, धीरविमल पंडित तणो, ज्ञानविमल कहे शिव...३... चोवीश जिननां लंछन नु चैत्यवंदन वृषभ लंछन ऋषभदेव, अजित लंछन हाथी, संभव लंछन घोडलो, शिवपुरनो साथी...१... अभिनंदन लंछन कपि, कोंच लंछन सुमति, पद्म लंछन पद्मप्रभु, सेव्यो दे सुगति... सूपावं लंछन साथीओ, चंद्रप्रभ लंछन चंद, मगर लंछन सुविधि प्रभु, श्रीवत्स शीतल जिणंद...३... लंछन खड्गी श्रेयांसने, वासुपूज्य ने महिष, सूवर लंछन विमलदेव, भविया ते नमो शीष...४... सिंचाणो जिन अनंतने, वज्र लंछन श्री धर्म, शांति लंछन मृगलो, राखे धर्म नो मर्म...५... कुंथुनाथ जिन बोकडो, अरजिन नंदावर्त्त, मल्लि कुंभ वखाणि), सुव्रत कच्छप धर्त... नमिजिनने नीलो कमल, पामीओ पदकज मांही, शंख लंछन प्रभु नेमजी, दीसे उंचे त्यांही...७... पार्श्वनाथ चरण सर्प, नील वरण शोभित, सिंह लंछन कंचन तनु, वर्धमान विख्यात...८... अणोपरे लंछन चितवीओ, ओळखीओ जिनराय, ज्ञानविमल प्रभु सेवता, लक्ष्मीरतन सूरिराय...६... Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१२८] चैत्यवंदन संग्रह (२) आदिदेव लंछन वषभ, अजित जिन हस्ति मोहे, संभवनाथ ने हय भलो, अभिनंदन हरि सोहे...१ सुमतिनाथने कोंच पक्षी, पद्मप्रभु रक्त कमल, सुपार्श्व जिनने साथीओ, चंद्रप्रभु शशि निर्मल...२ सुविधि जिनेसर मत्स्यनु, शीतल जिन श्रोवत्स, खड्गी जिनवर श्रेयांसने, प्रणमो मन धरी रंग...३ वासुपूज्य महिष नं, विमल जिन सूवर जोय, सींचाणो पक्षी अनंतने, श्री धर्मने वज्र होय...४ शांतिजिन मगलो भलो, श्री कुंथु वळी छाग, नंदावर्त श्री अरप्रभु, श्री मल्ली कुंभ चंग...५ मुनिसुव्रतने काचबोओ, नीलकमल नमिराय, दक्षिणावर्त शंखज जयो, श्री नेमिजिनने पाय...६ पुरुषादाणी पार्श्वप्रभु, लांछन नागनुं सार, वीर जिनेसरने भलं, सिंह कह्यो उदार...७ गर्भकाल ओ सही, सर्व जिनने तुंग, जमणे पगे जंघां तणो, अ आकार उत्तंग...८ लंछन अ सवि शाश्वताओ, आगममांहि जोजो, क्षमाविजय जस नामथी, शुभने जश सुख होजो...६ चोवीश तीर्थकरना आयुष्य नु चैत्यवंदन प्रथम तीर्थकर आउखं, पूर्व चोराशी लाख, बीजा बहोतेर लाख मुं, त्रीजा सायेठ भाख...१... पचाश चालीश त्रीशने, वीश दशने दोय, अक लाख पूर्वतj, दशमा शीतल जोय...२... Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [१२६] हवे चोराशी लाख वर्ष, बारमा बहोतेर लाख, छासठे त्रीश ने दशन, शांति अकज लाख...३... पंचाणुं हजारनु, अर चोरासो हजार, पंचावन त्रीशने दशर्नु, नेमि अंक हजार...४... पार्श्वनाथ सो वरसनु, बहोंतेर श्री महावीर, अहवा जिन चोवीशर्नु, आयु सुणो सुधीर...५... जिन देह वर्णन नु चैत्यवंदन अद्भुत रूप सुगंधी श्वास, नहीं रोग विकार, मेल नहीं जस देह रेह, प्रस्वेद लगार...१... सागर वर गंभीर धीर, सुरगिरि सम जेह, औषधिपति सम सौम्य कांति, वर गुण गण गेह...२... सहस अष्टोत्तर लक्षणे अ, लक्षित जिनवर देह, तस पद पद्म नम्या थकी, न रहे पापनी रेह...३... चोवीश जिनना देहमान नु चैत्यवंदन प्रथम तीर्थकर देहडी, धनुष पांचसे मान, पचास पचास घटाडता, सो सुधी भगवान...१... सोथी दश-दश घटतं, पचासथी पांच पांच, नेमिनाथ बावीसमा, दश धनुषनुं वांच...२... पारसनाथ नव हाथर्नु, सात हाथ महावीर, अहवा जिन चोवीशन, कवियण कहे सुधीर...३... चोवीश तीर्थकरनी राशि नु चैत्यवंदन शांति नमी मल्ली मेष छे, कुंथु अजित वृषभाति, संभव अभिनंदन मिथुन, धर्म करक सिंह सुमति...१ Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१३० ] चैत्यवंदन संग्रह कन्या पद्म प्रभु नेम वीर, पास सुपास तुलाओ, राशि वृश्चिक धन ऋषभदेव, सुविधि शीतल जिनराय... मकर सुव्रत श्रेयांसने अ, बारमा घट मीन लील, विमल अनंत अरनामथी, सुखिया श्री शुभवीर... ३ B. N. आमां राशि प्रास नो मेल नथी सुज्ञो अ तपासवु । श्री अरिहंत प्रभुना चोत्रीश अतिशय नु चैत्यवंदन अद्भुत अतिशय जेहने, होय जन्मथी चार, रोग स्वेद मल रहित देह, होये रूप उदार... १ सवि शुभ परिमलथी अधिक, जास सास उसास, रुधिर मांस उज्ज्वल अनिंद्य, गोक्षीर सम भास... २ चर्मं चक्षु गोचर नहीं थे, आहार ने निहार, ज्ञानविमल प्रभ जिन तणां, जन्म संघाते चार... ३ भगवदलंकृत क्षेत्रमां सुर नर रहे हरसी, वाणी योजन गामिनी, सवि भाषा सरिषी...४ भामंडल पाछल रहे, चउदिशि अहे उड़द, पणवीश योजन लगे नहि, रूजा वैर अनिट्ठ... ५ इति मारी दुर्भिक्ष नहीं, स्व-पर चक्र अतिवृष्टि, अनावृष्टि अकादशी, घातिकर्म क्षयनी सृष्टि ... ६ धर्मचक्र चामर धजा, सिंहासन छत्र, त्रिगडे चउमुख सोहिओ, सुवर्ण नव कमल पवित्र... ७ चैत्य तरू सवि तरू नमे, कंटक अधो वदने, रोम केश वाधे नहीं, अनुकूलता पवने...८ प्रदक्षिणा पंखो दीये अ, अतिही दुंदुभि नाद, सुरभि गंध जल वृष्टिशुं पंचवर्ण कुसुम पाद... , २ Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [१३१] चउविह देव निकाय कोडि, सेवे जस पास, षड् ऋतु अनुकूल हुवे, समकाल निवास...१० इंद्रिय अर्थ अनुकूलता, दु:शील न भास, सुरकृत अ ओगणीश हुवे, चउतीस मिली खास...११ ज्ञानविमल गुणथी लहे अ, अतिशय गुण नहीं पार, ध्यान धरू ते प्रभु तणुं, ते मुज प्राण आधार...१२ चोवीश जिननां पांच बोल नु चैत्यवंदन सुमतिनाथ अकासणुं, करी संजम लीधो, मल्लि पास जिनराय दोय, अट्ठमशुं परसिद्धो...१... छठ भक्त करी अवर सर्व, लिओ संजमभार, वासुपूज्य करे चोथभक्त, थया ते अणगार...२... वरसांते पारणं करे अ, इक्षरस रिषहेश, परमान्ने बीजे दिने, पारणं अवर जिनेश...३... विनीता नगरीमा लीओ, दीक्षा प्रथम जिणंद, द्वारामतीजे नेमिनाथ, सहेसावन वृन्द...४... शेष तीर्थंकर जन्मभूमि, लिओ संजमभार, अणपरण्या श्री मल्लिनाथ,तेम श्री नेमिकुमार...५... वासुपूज्य पास वीरजी, भूप थया नवि अह, . अवर राज भोगवी थया, ज्ञानविमल गुण गेह...६... श्री चोवीश जिन नी भवगणना नु चैत्यवंदन प्रथम तीर्थंकर तणा हुवा, भव तेर कहिजे, शांति तणा भव बार सार, नव नेम लहिजे...१... दश भव पास जिणंदना, सत्तावीस श्री वीर, शेष तीर्थकर त्रिहुं भवे, पाम्या भव जल तीर...२... Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१३२] चैत्यवंदन संग्रह जिहांथी समकित फरशियुं, तिहां थी गणिए तेह, धीरविमल पंडित तणो, ज्ञानविमल गुणगेह...३... ★ चंद्रप्रभु ना सात- मुनि सुव्रत ना नव केम गण्वा नथी ते विचारणीय छे । १७० जिन वर्ण चैत्यवंदन सोळे जिनवर शामळा, राता त्रीश वखाण, लीला मरकत मणी समा, अडत्रीश गुणखाण...१... पीला कंचन वर्ण समा, छत्रीश जिनचंद, शंख वर्ण सोहामणो, पचासे सुखकंद...२... सीत्तेर सो जिन वंदिओ, उत्कृष्टा सम काल, अजितनाथ वारे हुआ, वंदु थइ उजमाल... नाम जपता जिन तणं, दुर्गति दूरे जाय, ध्यान ध्याता परमात्मनु, परम महोदय थाय...४... जिनवर नामे जश भलो, सकल मनोरथ सार, शुद्ध प्रतीति जिन तणी, शिवसुख अनुभव अपार...५... जिन ना चारे निक्षेपाना महत्त्व नु चैत्यवंदन निजरूपे जिननायके, द्रव्ये पण तिमहि, नाम थापना भेद थो, प्रगटे जगमांहि...१... अध्यातमथी जोडिये, निक्षेपा चार, तो प्रभु रूप समान भाव, पामे निरधार...२... पावन आतमने करेले, जन्म जरादिक दूर, दर्शन पूजन ध्यानथी, राम लहे सुख पूर...३... जिन महिमा नु चैत्यवंदन चैत्रो पुनमनो अखंड, शशिधर जिम दीपे, अंगारक आदि अनेक, ग्रह गणने जीपे...१... Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - तीर्थ-जिन विशेष [१३३] तिम परतीथि देवथी, जेह अधिक विराजे, लोकोत्तर अतिशय अनंत, दीपंत दिवाजे...२... चैत्री पुनमने दिने अ, भजो अह भगवंत, श्री विजयराजसूरिंदनो, दान सफल सुख हुंत...३... .. जिन दर्शन-पूजन फल नु चैत्यवंदन सरसती देवी धरी मनरंग, उलट आणी घणुं अंग, चैत्यवंदणनो कहुं विचार, जो जो ग्रंथ तणे अनुसार...१ देहरे जावा मनमां धरे, चोथ लाभ ते पोते वरे, उभो थावे देहरा काज, छठ लाभ कह्यो जिनराज...२ जिनघर जावा उद्यम करे, अठमनो तप लाभे खरे, देहरा सामा पगला भरे, दसम लाभ तप पोते वरे...३ जिनघर पंथ प्रवत्र्ते जिसे, द्वादशनो फल लाभे तिसे, अर्ध पंथ जिसे अतिक्रमे, पासखमण फल तेणे समे...४ मासखमण फल पामे खरो, दृष्टे दीठे जिन देहरो, जेह फल पामे छे षट्मास,तेह फल पामे देहरा पास...५ वर्षी तपनो जे फल सार, ते फल पामे देहरा बार, वर्ष सहस उपवास तणो, जिन पूज्या तेहथी धणो...६ तीन प्रदक्षिणा ततक्षिण शुद्ध, दीवो दोठे बहुली बुद्ध, आरती करतां आरत जाय, मंगल दीवे मंगल थाय...७ प्रभात पूजा कही जिन आप,रयणीये कीधांटाले पाप, मध्याने जिन पूजा कही, जन्म पाप हरे ते सही...८ सात जन्म सब कोधां पाप, संध्या पूजा टाले संताप, जिनवर पूजा करवी सही, लाभ तणो तो लेखो नहीं...६ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१३४ ] चैत्यवंदन संग्रह करे प्रमार्जन देहरा तणो, तेहने लाभ अछे सो गुणो, सहस गुणो विलेपन तणो, लाख गुणो फूल माला भणो... १० वर वाजित्रने गीत रसाल, लाभ अनंत कह्योततकाल, इम जाणीने करवी भक्ति, जेहने जेहवी होवे शक्ति... ११ जे नर उठी प्रहरने समे, अरिहंत देवने भावे नमे, ते नर पामे संपत्ति कोड, मानविजय कहे कर जोड... १२ जिन दर्शन पूजन फल नु चैत्यवंदन प्रणमी श्री गुरुराज आज जिन मंदिर केरो, पुण्य भणो करशुं सफल, जिन वचन भलेरो...१... देहरे जावा मन करे, चोथतणुं फल पावे, जिनवर जुहारवा उठतां, छठ पोते आवे...२... जावा मांड्यु जेटले, अठमतणुं फल होय, डगलुं देतां जिन भणी, दशमतणुं फल जोय...३... जाइश्युं जिनवर भणी, मारग चालता, होवे द्वादशतणुं पुन्य, भक्ति मालता... ४... अर्ध पंथ जिनघर तणो, पंदर उपवास, दीठो स्वामि तणो भवन, लहिओ ओक मास... ५... जिनघर पासे आवता, छमासी फल सिद्ध, आव्या जिनघर बारणे, वर्षी तप फल लीध... ६... सो बरस उपवास पुण्य, प्रदक्षिणा देता, सहस वरस उपवास पुण्य, जिन नजरे जोता ... भावे जिनवर जुहारिओ, होवे फल अनंत, तेहथी लहिओ सो गणुं, जो पूजे भगवंत... ८... .७... Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष फल घणुं फूलोनी माल, प्रभु पार न आवे गीत नाद, केरा शिर पूजी पूजो करो, दोपे अक्षतसार ते अक्षय सुख, तनु करे वर रूप... निर्मल तन मने करी, थुणतां इंद्र जगीश, नाटक भावना भावतां, पामे पदवी इश. जिनवर भक्ति वली ओ, भली प्रेमे प्रकाशी, निसुणी श्रीगुरु वयणसार, पूर्व ऋषि भासी... १२... अष्ट कर्म ने टालवा, जिन मंदिर जइशुं, [ १३५] कंठे ठवंता, फल थुणंता...... धुपणुं धूप, मुक्तावली चारु गुण प्रपन्ना, जगत्त्रयस्याभिमतं .१०... भेटी चरण भगवंतनां, हवे निर्मल थइशुं ... १३... कीर्त्तिविजय उवझायनो, विनय कहे कर जोड, सफल होजो मुज विनती, जिन सेवाना कोड... जिन दर्शन महिमा नु चैत्यवंदन ११... अद्या भवत् सफलता नयन द्वयस्य, देव त्वदीय चरणांबुज विक्षणेन, अद्य त्रिलोक तिलकं प्रतिभासते मे, संसार वारिधिरियं चुलुकः प्रमाणम्...१... कलेव चंद्रस्य कलंक मुक्ता, १४... ददाना, जैनेश्वरी कल्पलतेव मूत्तिः...२... धन्यो कृतपुण्योहं, निस्तीर्णोहं भवार्णवात्, अनादि भव कांतारे, दृष्टो येन जिनो मया...३... Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१३६] चैत्यवंदन संग्रह अद्य प्रक्षालितं गात्रं, नेत्रे च विमली कृते, मुक्तोहं सर्वपापेभ्यो, जिनेंद्र तव दर्शनात्...४... दर्शनात् दूरित ध्वंसि, वंदनात् वांछित प्रदः, पूजनात् पूरक श्रीणां, जिनः साक्षात् सुरद्रुमः...५... जिन गुण गीत फल नु चैत्यवंदन मादल ताल कंसाल सार, भंगलने भेरी, ढोल ददामा दडवडी, शरणाइ नफेरी...१... श्री मंडल विणा रबाव, सारंगी सार, तंबुरा कडताल शंख, झल्लरी झणकार...२... वाजिंत्र नव-नव छंदशं ओ, गाओ जिनगुण गीत, ज्ञानविमल प्रभुता लहो, जिम होय जग जसरीत...३... जिननी फूल पूजा नु चैत्यवंदन जाइ जुइ मालती, डमरो ने मरुवो, चंपक केतकी कुंद जाती, जस परिमल गिरुवो...१... बोलसिरि जासुद वेली, वालो मंदार, सुरभि नाग पुन्नाग अशोक, वली विविध प्रकार... ग्रथिम वेढिम चउविधे अ, चारु रची वरमाल, नय कहे श्री जिन पूजतां, चैत्री दिन मंगलमाल...३... - वीर प्रभु वंश वृक्ष नुचैत्यवंदन शासन नायक जगगुरु, कल्पवृक्ष थड जाणो, अकादश गणधर प्रभु, शाखा मुख्य वखाणो...१... वृक्ष मध्य पटधर गुरु, तस परिकर लघु शाखा, सूरि प्रभावक जे थया, शुभ वचनामृत भाख्या...२... युग प्रधान दोय सहस चार, वृक्ष फूल गुणवंत, नरपद सुरपद मोक्षपद, इच्छित फल उलसंत...३.. Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्यवंदन संग्रह युगल क्षेत्रमां युगलनां, पूरे वांछित कल्प, दश जातिनां दश तरु, ओ छे शाश्वत कल्प... ४... उत्तम कुल निरोगता, राज ऋद्धि परिवार, आयु श्रद्धा देव गुरु, सुरपद शिवपद सार... ५... अ दश जाति इष्टफल, पावे समकितवंत, दुःख दोहग संकट टले, लहिये पद गुणवंत... ६... प्रत्यक्ष आरे पांचमो, मोटो ओ आधार, वंदना स्तवना नित्य करो, पूजो भाव उदार...७... इम सोहम कुल कल्पतरुओ, दीपविजय कविराज, वीर जगतगुरु राजनो, वरते अ साम्राज... ८... वीर प्रभुना शासनमां अकवीश उदयमां थनारा युगप्रधाननी संख्या . चैत्यवंदन [१३७] सिद्धारथ कुल दिनमणी, वर्धमान वड वीर, त्रिशला सुत सोहामणो, अनंत गुण गंभीर... १... भगवती सूत्रे गणधर पूछे गोतम स्वामी, ओ तुम शासन किहां लगे, वरतशे जग विसरामी...२... वीर कहे सुण गोयमा, अकवीश वरस हजार, गजपतिनी परे चालशे, पंचम काल मोझार...३... संख्या दोय हजार चार, होशे युगप्रधान, वीश उदय वरतशे, अकावतारी मान... ४... त्रेवीश उदयना वरणवं, वीश ঈवीश अठाणुं, अठयोतेर पंचोतेर, नेव्याशी शत जाणुं... ५... सत्याशी आठमे उदये, पंचाणं शत्याशी, छोतेर अठयोतेर वली, चोराशी गुणराशि... ६... Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - [१३८ चैत्यवंदन संग्रह चौदमें अकसो आठ छे, अकसो तीन मुणिंद, अकसो सात छ सोळमे, अकसो चार गणिद...७... अकसो पंदर अढारमें, अकसो तेंत्रीश सूरी, वीशमें उदये सो भला, आचारज वड नरि. अकवीशमे उदये वळी, पंचाणं सूरि राजा, नवाणुं बावोशमे, चालीश चडत दिवाजा... सहु मली दोय हजार चार, युगप्रधान जयवंत, छल्ला दुप्पसह सूरि, दशवैकालिक वंत...१०... पंचावन लख कोड वलि, पंचावन सहस कोडि, पांचसे क्रोड पचास क्रोड, शुद्ध आचारज जोडि...११... ओ सवि आचारज कह्या, दीपविजय कविराज, शुद्ध समकित गुण निर्मला, सोहम कुलनी लाज...१२... दुष्कृत गर्दा रूप नु चैत्यवंदन प्रभु पाय लागी करू सेव तारी, तुमे सांभलो श्री जिनराज मारी, मने मोह वैरी पराभव करे छे, चिह गति तणां दुःख नवि वीसरे छे...१.. हं तो लक्ष चोराशी जोवायोनि मांहि, भम्यो जन्म मरणादिक अह मांहि, घणां में कीधां कर्म जे धर्म छंडी, कहं सांभळो ते सवि स्वामी मंडी...२.., में तो लोभे लंपट थइ कर्म कीधा, घणां भोलवी पर तणां द्रव्य लीधा, में तो पिंड पोष्यो करी जीव हिंसा, करी पारकी कुथली स्व प्रशंसा...३... Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ-जिन विशेष [१३६] में तो बोलिया पर तणां मर्म मोटा, नहिं भाखिया आपणा पाप दोषा, सदा संग कीधो परनारी केरो, नहीं पालियो धर्म जिनराज तोरो...४... 'पड्यो घर तणे पाप आशा विलुद्धो, नहीं सांभल्यो जिनराज उपदेश शुद्धो, हुं तो पुत्र परिवार शुं रंग रातो, नहीं जाणियो जिनवर काल जातो...५... घणां आरंभनां काम करी पिंड भर्यो, में मूरखे नरभव फोक हार्यो, गयो काल संसार अळे भमंता, सह्यां तेहथी दुर्गति दुःख अनंता...६... घणां कष्टे हवे जिनराज देव पाम्यो, त्यारे सर्व संसार, दुःख वाम्यो, ज्यारे श्री जिनराजनुं मुख दीठं, मारे लोयण रूपडे अमिय वायुं....... आवी कामधेनु मुज घर मांहि, भरी रत्न चिंतामणी हेम थाली, मारे घर तणे आंगणे कल्प वृक्ष, फल्यो आपवा वांछित दान वृक्ष...८... गयो रोग संतापने सर्व माठो, जरा जन्म मरण तणो त्रास नाठो, तारे शरणे आव्या पछी लाज कीजे, कर्या अपराध ते सर्व खमीजे...६... Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१४०] तीर्थ-जिन विशेष घणु विनवं हुं शं देवाधिदेवा, मने आप जो भवो भव स्वामी सेवा, ग्रही विनंती भावथी जेह भणशे, सकल सुखनो स्वामी सदा सुख करशे...१ पंच परमेष्ठि नु चैत्यवंदन बारगुण अरिहंत देव, प्रणमिजे भावे, सिद्ध आठ गुण समरतां, दुःख दोहग जावे...१... आचारज गुण छत्रीश, पचवीश उवझाय, सत्तावीश गुण साधुना, जपतां शिवसुख थाय...२... अष्टोत्तर शत गुण मलिओ, ओम समरो नवकार, धीरविमल पंडित तणो, नय प्रणमे नित्य सार...३ उपदेशक चैत्यवंदन क्रोधे कांइ न नीपजे, समकित ते लुटाय, समता रसथी झीलिओ तो, वैरि कोई न थाय...१... वहाला शुं वढीओ नहीं, छटको न दीजे गाळ, थोडे-थोडे छंडिओ, जिम छंडे सरोवर पाळ...२... अरि गो सरिखो गोठडी, धर्म सरीखो स्नेह, रत्न सरीखा बेसणां, चंपक वर्णी देह...३... चंपले प्रभुजी न पूजियां, न दीधं मुनिने दान, तय करी काया न शोषवो, किम पामशो निरवाण...४... आठम पाखी न ओळखी, अम करे शं थाय, उन्मत्त सरखी मांकडी, भोय खणंती जाय...४... आंगणे मोती वेरिया), वेले वीटाली वेल, हीरविजय गुरु हीरलो, मारू हैडु रंगनी रेल...६.. Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूज्य मुनि श्री दीपरत्नसागरजी (M. Com., M. Ed.} द्वारा सम्पादित प्रकाशनो १. श्री नवकार महामंत्र नवलाख जाप नी नोंधपोथी (सर्व प्रथम वखत, प्रत्येक माला के लिए अलग नोंध की सुविधा)-१४ आवति २. श्री चारित्र पद १ कोड जाप नी नोंधपोथी (क्षयिक चारित्र प्राप्ति अर्थे )-३ आवृति ३. श्री बारव्रत पुस्तिका तथा अन्य नियमो सर्व प्रथम डबल कलर, विशिष्ट विभागीकरण तथा नियमो लेने की अत्यन्त सुविधायुक्त-३ आवृति ४. अभिनव जैन पंचांग-२०४२ सूर्योदय से पुरीमड्ढ-कामली का काल तथा शाम को दो घड़ी सहित का सर्व प्रथम प्रकाशन ५. अभिनव हेम लघ प्रक्रिया भाग १ सप्तांग विवरण ६. अभिनव हेम लघ प्रक्रिया भाग २ सप्तांग विवरण ७. अभिनव हेम लघ प्रक्रिया भाग: सप्तांग विवरण ८. अभिनव हेम लघ प्रक्रिया भाग ४ सप्तांग विवरण ६. कृदन्तमाला (१२५ धातु का २३ प्रकार से कृदन्त) १०. शत्र जय भक्ति-२ आवति ११. श्री ज्ञानपद पूजा १२. शत्रुजय भक्ति हिन्दी में-२ आवति १३. चैत्य वन्दन पर्वमाला १४. चैत्यवन्दन संग्रह (जिन तीर्थ विशेष) १५. चैत्यवन्दन चोवीसी ★ १५ प्रकाशित थई रही छ ॐ प्रकाशक : अभिनव श्रत प्रकाशन प्रवीणचंद्र जेसंगलाल महेता प्रधान डाक घर के पीले. जामनगर-361 001 (सौराष्ट्र) Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 卐卐 बाल ब्रह्मचारी श्री नेमिनाथाय नमः * जिन भक्तिमा खुटती एक कडीनुं अभूतपूर्व प्रकाशन परमात्मा समक्ष बोलवानी स्तुतिओनी चोपड़ी बहार पड़ी छे. स्तुति तरंगिणी मां थोयना जोडाओनो भंडार छे. स्तवन तथा सज्झाय संग्रहो प्रकाशित थया छे. पण चैत्यवंदन स ग्रह जोवामां आवतो नथी. दर्शन शुद्धिना एक अति आवश्यक एवा आ अंग ने अमे जिनभक्ति निमग्न आराधको समक्ष मुकवानो प्रयास कर्यो छ. आ विशिष्ट संग्रह वितराग भक्ति रत पूज्य मुनिराज श्री सुधर्मसागरजी म. सा. नी प्रेरणा थी * तेमना शिष्य पू. मुनि दीपरत्नसागरे संपादित कर्यो छे. (1) चैत्यवंदन पर्वमाला. (3) चैत्यवंदन चोविसी. (2) चैत्यवंदन संग्रह [तीर्थ-जिन विशेष]. हिन्दी लिपि मांत्रण भाग मां कुल 7 चैत्यवंदनो नो संग्रह तैयार थई चुक्यो छे. जे गुजराती मां एक पुस्तक मां प्रगट थनार छे. रुपिया 1001/- ना द्रव्य सहायक नो फोटो मुकवामां आवशे, रू. 51 अथवा वधु रकम आपनार नु -नम्म द्रव्य सहायक तरीके मुकवामां आवशे. आप ड्राफ्ट थी रकम मोकली आ. कार्य मां लाभ लेशो. ड्राफ्ट "अभिनव श्रुत प्रकाशन' मा नामे मोकलशो. अभिनव श्रृत प्रकाशन C/0 प्रवीणचंद्र जेसंगलाल महेता प्रधान डाकघर पाछण, जामनगर-3610016 मुद्रक : ज्ञानोदय मुद्रणालय, नीमच