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चैत्यवंदन संग्रह
गल्लिनाथ शिवसाथ, आठ वर अक्षरदायी, छाजे त्रिभुवनमांहि, अधिक प्रभुनी ठकुराइ...१.. अनुत्तर सुरथी अनंत गुण, तनु शोभा छाजे, आहार निहार अदृश जास, वर अतिशय राजे...२... मृगशिर शुदि अकादशी, लीये दीक्षा जिनराज, तस पद पद्म नम्या थकी, सीझे सघलां काज...३...
श्री नमिनाथ भगवंतना चैत्यवंदनो
सकल मंगल केलि कमला, मंदिरं गुणसुंदरं, वर कनक वर्ण सुपर्वपति जस चरण सेवे मनहरं, अमरावती सम नयरी मिथिला, राज्यभार धुराधरं, प्रणमामि श्री नमिनाथ जिनवर चरणपंकज सुखकरं...१ गज वाजि स्यंदन देश पुरधन त्याग करी त्रिभुवन धणी, त्रणशें अठयासी कोडि उपर दीओ लख अशी गणी, दीनार जननी जनक अंकित, दीये इच्छीत जिनवरं.प्रण.२ सहस्राम वनमां सहस नरयुत सौम्य भाव समाचरे, नर क्षेत्र संज्ञी भाव वेदी ज्ञान मनःपर्यंव बरे, अप्रमत्त भावे घाति चउ खय, लहे केवल दिनकरं प्रण.३ तव सकल सुरपति भक्ति नति करी तोर्थपति गुण उच्चरे, जय जगत जंतु जात करुणावंत तुं त्रिभुवन शिरे, जय अकल अचल अनंत अनुपम,भव्य जनमन भयहरं.प्रण.४ सप्तदश जस गणधरा मुनि सहस विशति गुणनोला, सहस अकतालीश साहुणी, सोलसें केवली भला, जिनराज उत्तम पद्मनी परे, रूपविजय सुहंकरं प्रण.५
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