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________________ तीर्थ-जिन विशेष [१०३] देवदुष्य खंधे धरी, विचरे जिनवर देव, तस पद मद्मनी सेवना, रूप कहे नित्यमेव...३... (२०) वैदर्भदेश मिथिलापुरी, कुंभ नृपति कुल भाण, पुण्यवल्लि मल्लि नमो, भवियण सुह झाण...१... पणवीश धनुषनी देहड़ी, नील वरण मनोहार, कुंभ लंछन कुंभनी परे, उतारे भवपार...२... मृगशिर शुदि अकादशी, पाम्या पंचम नाण, तस पद पद्म वंदन करी, पामो शाश्वत ठाण... (२१) पहेलं चोथं पांचम, चारित्र चित्त लावे, क्षपक श्रेणी जिनजी चढी, घातिकर्म खपावे...१... दीक्षा दिन शुभ भावथी, उपन्यु केवल नाण, समवसरण सुरवर रचे, चउविह संघ मंडाण...२... वरस पंचावन सहस- अ, जिनवर उत्तम आय, तस पद पद्म नम्या थकी, चिद्रुप चित्त ठाय...३... (२२) जयो जिनवर जयो जिनवर, जिम जीय लोय जस...१ पसर्यो दह दिसि घणो, दुध सिंधु वरकेण पंडूर, लोकिक देव तणो जिणे, खय कीध पाखंड डंबर...२ अंबरमणि जिम झलहलेले, दिन-दिन अधिक प्रताप, ज्ञान विमल प्रभु मल्लि जिन, ध्याने नासे पाप...३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003633
Book TitleChaityavandan Sangraha Tirth Jin vishesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAbhinav Shrut Prakashan
Publication Year
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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