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[१०२]
चत्यवंदन सग्रह संयम गुणधारी थया, भूप मित्र षट् बोधि आपे, कंचनमय करी पूतली, पूर्व प्रेम संकेत थापे...२... माया तप परभावथीओ, पाम्या स्त्रीनो वेद, ज्ञानविमल गुणथी थया, अचल अरूप अवेद...३
[१७] जय जय मल्लि जिणंद चंद, गुण कंद अमंद, नभे सुरासुर चंद, तिम भूपति वृन्द...१... कुसुम गेह शय्या कुसुम, कुसुमाभरण सोहाय, जननी कुखे जब जिनहुता, मल्लिनाम तिणे ठाय...२... कंभ नरेसर कुलतिणोओ, मल्लिनाथ जिनराज, तस पद पद्म नम्या थकी, सीझे सघलां काज...३.
[१८] नील वरण दुःख हरण, शरण शरणागत वत्सल, निरूपम रूप निधान सुजस, गंगाजल निरमल... सुगुण सुरासुर कोडि दोडि, नित्य सेवा सारे, भक्ति जुगति नित्यमेव, करी निज जन्म सुधारे...२ बालपणे जिनराजनेअ, सवि मली हुलरावे, जिन मुख पद्म नीहालीने, बहु आणंद पावे...३
जय जय मल्लि जिणंद देव, सेवा सुरपति सारे, मृगशिर शुदि अकादशी, संयम अवधारे...१... अभ्यंतर परिवार में, संयति त्रणशें जास, त्रणशें षट् नर संयमें, साथ व्रत लीओ खाश...२...
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