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तीर्थ-जिन विशेष
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[१३] अद्भुत रूप सरूप हे, गुण गेह विराजे, लाजे जस मुख देखी चंद, मृगनयणे लाजे...१... नीलक वान सोभागवान, उपमान न अवर, बालपणाथी अधिक तेज, जाणे नव दिनकर... २... पिता प्रमुख बहु लोकने ओ, अंतर घन विश्राम,
ते मल्लि जिन देखतां दान सरे सवि काम... ३.. [१४] रयण राशी परे जे गंभीर, मंदर गिरी धीर, विद्युमंडल परे निर्मला, जिम शारद नीर...१... राग द्व ेष दूषित नहीं, नहीं भय-भय जेहने, गुण अनंत भगवंत ते, प्रणमुं हुं तेहने ...२... ज्ञानविमल गुण जेहनाओ, कहेतां नावे पार, मल्लि जिनेसर प्रणमतां, लहीये भवजल पार...३... [१५] अभ्यंतर जस पर्षदा, कन्या त्रण शतनी, बाह्य पर्षदा जाणिये, नृपसुत त्रण शतनी...१... मृगशिर शुदि अकादशी, दिन संयम लेवे, सकल सुरासुर तिहां मली, जिनना पद सेवे...२... दीक्षा समयथी उपजे ओ, तिम मणपज्जव नाण, मल्लिनाथ केवल लहे, ज्ञानविमल सुह झाण...३... [१६] मल्लि जिनवर मल्लि जिनवर, सयल सुख हेते...१...
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