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चैत्यवंदन संग्रह मृगशिर शुदि अकादशी, ग्रहे दीक्षा भावे, देव दुष्य तव इंद्र अॅक, जिन खंधे ठावे...२... उग्र विहार तप प्रभु करे ओ, समता रस भरपूर, गल्लिनाथने मन धरत, दान गयां दुःख दूर...३...
[१०] चउनाणी थइ शुक्ल ध्यान, मुनिराज अभ्यासे, अधिक-अधिक तिम आप तेज, क्षण-क्षण प्रकासे...१... पाणि पडिग्गह लब्धिवंत, दुक्कर व्रत धार, दुर्द्धर सिंहपरे अनेक, परिषह सहनार...२.. इणविध दीक्षाने दिने, प्रगटयु केवलज्ञान, ते अरिहंत प्रणामथी, लहीये समकित दान...३...
[११] गोत्र काश्यप गोत्र काश्यप, वंश इक्खाग स्वाम...१... त्याग निर्दभ जे कुंभ भूप, कुले जे कुमारी, मयण महाभड भंजियो, वय तरुणपणे निर्विकारी...२... सारी संयम सीरि वरो, ओगणीशमा जिन ओह, मल्लिनाथ नामे थया, ज्ञानविमल गुण गेह...३...
[१२] भव्य जीव वर कमल खंड, प्रतिबोध वधारे, नाण किरण विस्तार सार, तम पडल निवारे...१... सुर नर मुनिपति सेवामान, बह लोक सूखंकर, दिन-दिन अभिनव उदयवंत, मल्लिजिन दिनकर...२... नाण लघु अकादशी), उज्ज्वल मृगशिर मास, ते जिनराज प्रसादथी, दान लहे उल्लास...३...
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