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तोर्थ-जिन विशेष
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अधो लोके जिनभवन नमु, सात कोड बहोंतेर लाख, तेरसे कोड नेव्यासी कोड, साठ लाख चित्त राख...५ व्यंतर ज्योतिषीमां वली, जिन भवन अपार, ते भवि नित्य वंदन करो, जेम पामो भवपार...६ तिर्छा लोके शाश्वता, श्री जिनभवन विशाळ, बत्तीशसें ने ओगणसाठ, वंदु थइ उजमाळ...७ लाख त्रण अकाणुं सहस, त्रणसे वीश मनोहार, जिन पडिमा अ शाश्वती, नित नित करू जुहार...८ त्रण भुवनमाहे वली, नामादिक जिन चार, सिद्ध अनंता वंदीये, महोदय पद दातार...६
सिद्धाचल गिरनार गीरि, अर्बुद अति उत्तंग, समेतशिखर जिन वीशनां, मोक्ष कल्याणक चंग...१... कोटिशीला अष्टापदे, मेरू रूचक समीप, शाश्वत जिनवर गृह घणां, श्री नंदीसर द्वीप...२... देवलोक ग्रैवेयक छे, भवनपति वर भवन, जिनवर बिंब अनेक छ, पूजो ते सर्व सुमन...३... विहरमान जिनवर भला, अतीत अनागत अद्धा, नाम स्थापना द्रव्य भाव, चार निक्षेपा लद्धा...४... सहजानंदी सुखक रु अ, परम दयाळ प्रधान, पुन्य महोदये पूजतां, लहीले परम कल्याण...५.
विहरमान जिणंद वंदु, उदीत केवल भास्कर, असंख्य लोक निवास प्रभुना, शाश्वता अघ नास्करं...१
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