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चैत्यवंदन संग्रह
अरिहंत देवा चरणनी सेवा, पंदर भेदे सिद्ध प्रणमेवा,
आयरिम उवझाय ओ सर्व साधुना नाम, __ अ पंच जोगे करू प्रणाम...१... अतींत अनागत ने वर्तमान, संप्रति कालेवीश विहरमान, __ उत्त्कृष्टा अकसोसीत्तर जिन नाम... पंच...२ बार देवलोके नव अवेयके पांच अनुत्तर पाताल जोगे,
तिर्छा लोके जे जिन नाम... पंच...३ शाश्वता जे जिनना कह्या, अशाश्वता पडिमा शुं लह्या,
शाश्वता अशाश्वता अभिराम...ओ पंच...४ देख्या न देख्या श्रवणे न सुणोया, भेट्या न भेट्या भावे ज भणिया ज्ञानविमल कहे प्रभु समरथ देवा,
भवोभव देजो तुम पद सेवा...५
सीमंधर प्रमुख नम, विहरमान जिन वीश, ऋषभादिक वली वंदिये, संप्रति जिन चोवीश...१ सिद्धाचल गिरनार आबु, अष्टापद वली सार, समेतशिखर ओ पंचतीर्थ, पंचमी गति दातार...२ उर्ध्व लोके जिनवर नमु, ते चोराशी लाख, सहस सताणुं उपरे, तेवीश जिनवर भाख...३ ओक सो बावन कोड वली, लाख चोराणुं सार, सहस चुम्मालीस सातसें साठ, जिन पडिमा उदार...४
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