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चैत्यवंदन संग्रह
छट्टाने अंते होशे ओ, अक हस्त जस मान, अह अवस्थित छे सदा, ते प्रणमे मुनि दान...३...
(२४) भरत नरेसर भरत क्षेत्र, चक्रि इण ठामे, आव्यो संघ सजी सनूर, मन आणंद पामे...१ कंचनमय प्रासाद कीध, उत्तंग उदार, मंडप तोरण विविध जाल, मालित चउ बार... २ छणु पणसय मित्त मणी तणी, थापी ॠषभनी मूर्ति, दान दयाकर तीर्थथी, पसरी जग जस कीर्ति...३ (२५) अ तीरथनो उपरे, अनंत तीर्थंकर आव्या, वली अनंता आवशे, समतारस भाव्या... १... आ चोवीशी मांहि ओक, नेमीश्वर पाखे, जिन श्रेवीश समोसर्या, ओम आगम भांखे...२... गणधर मुनिवर केवली, समोसर्या गुणवंत, प्रेमे ते गीरि प्रणमतां, हरखे दान हसंत...३... (२६) ओ तीरथनी उपरे, थया उद्धार असंख्य, तिम प्रतिमा जिनरायनी, थइ तास नवि संख्य... १... अजित शांति जिनराज इत्थ, रह्या चौमासी, अ तीरथे मुनि अनंत, हुआ शिवपुर वासी...२... चैत्री पूनमने दिने से, महिमा जास महान, अ तीरथ सेवन थकी, दान वधे बहुवान...३...
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