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तीर्थ-जिन विशेष
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मुक्तिनिलय शतकूट नाम, पुष्पदंत भणीजे, महापद्मने सहस्रपत्र, गीरिराज कहीजे...२... इत्यादिक बहु भांतिसुं ओ, नाम जपो निरधार, धीरविमल कविराजनो, शिष्य कहे सुखकार...३...
(२१) चैत्रीपुनमने दिने, जे इण गीरि आवे, . आठ सत्तर बहु भेदशं, जे भक्ति रचावे...१... आदीश्वर अरिहंतनी, तस सघलां कर्म, दूर टले संपद मले, भांजे भव भर्म...२... इह भव परभव भवे भवे, ऋद्धि वृद्धि कल्याण, ज्ञानविमल गुणमणि तणो, त्रिभुवन तिलक समान....३
(२२) शत्रुजय शिखरे चढी स्वामि, कंइये हुं अचिशं, रायण तरुवर तले पाय, आणंद चरचिशुं... नहवण विलेपन पूजना, करी आरती उतारीश, मंगल दीपक ज्योति थुति, करी दूरित निवारीश...२... धन धन ते दिन माहरो अ,गणीश सफल अवतार, नय कहे आदीश्वर नमो, जिम पामो जयकार...३
(२३) जोयण शत परिणाम अक, जे पहिले आरे, बोजे आरे जोयण जेह, अॅशी विस्तारे...१... तिम त्रीजे जोयण साठ, चोथे पचाश, पांचमें आरे बार सार, विस्तार छे जास...२...
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