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[१०]
चैत्यवंदन संग्रह
श्री शत्रुजय सिद्धक्षेत्र, दीठे दुर्गति वारे, भाव धरीने जे चढे, तेने भवपार उतारे...१... अनंत सिद्धनो अह ठाम, सकल तीर्थनो राय, पूर्व नवाणुं ऋषभदेव, ज्यां ठविया प्रभु पाय...२. सूरजकुंड सोहामणो, कवड जक्ष अभिराम, नाभिराया कुलमंडणो, जिनवर करू प्रणाम...३...
सकल सुहंकर सिद्धक्षेत्र, सिद्धाचल सुणीओ, सुर नरपति असुर खेचर, निकरे जे थुणीओ...१... सकल तीरथ अवतार सार, बहु गुण भंडार, पुंडरीक गणधर जब, पाम्या भवपार...२... चैत्री पुनमने दिने अ, कर्म मर्म करी दूर, ते तीरथ आराधिये, दान सुयश भरपूर...३...
(१६) श्री शत्रुजय सिद्धक्षेत्र, सिद्धाचल साचो, आदीश्वर जिनरायनो, जिहां महिमा जाचो...१.. इहां अनंत गुणवंत साधु, पाम्या शिववास, ओ गीरि सेवाथी अधिक, होय लील विलास...२... दुष्कृत सवि दूरे हरे अ, बहु भव संचित जेह, सकल तीर्थ शिर सेहरो, दान नमे धरी नेह...३...
(२०) श्री शत्रुजय सिद्धक्षेत्र, पुंडरिक गीरि साचो, । विमलाचल ने तीर्थराज, जस महिमा जाचो...१...
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