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________________ चैत्यवंदन संग्रह भवनपति चैत्य संख्या प्रमाणुं, अशी सो जिनबिंब ओक चैत्य ठामे, नमो सायस जिनवरा मोक्ष कामे... १ कोडि तेरशे ने नेव्यासी वखाणो, साठ लाख उपर सवि बिंब जाणो, असंख्यात व्यंतर तणां नग्र नामे ... नमो...२ असंख्यात तिहां चैत्य तिम ज्योतिषीये, बिंब ओक शत अंशी भाख्या ऋषिये, न ते महासिद्धि नवनिधि पामे... नमो... ३ वली बार देवलोकमां चैत्य सार, ग्रैवेयक नवमांही देहरां उदार, तिम अनुत्तरे देखीने म पडो भामे... नमो...४ चोराशी लख तिम सत्ताणुं सहस्सा, उपर त्रेवोश चैव्य शोभाये सरसा, हवे बिंब संख्या कहुं तेह धामे... नमो... ५ सो कोडि ने बावन कोडि जाणो, चोराणुं लख सहस चौल आणो, सय सात ने साठ उपर प्रकामे... नमो...६ मेरू राजधानी गजदंत सार, जमक चित्र विचित्र कांचन वखार, [२२] इखुकार ने वर्षधर नाम ठामे... नमो...७ वली दोर्घ वैताढयने जंबु आदि वृक्षे दिशा गज छे तेह, कुंड महानदी द्रह प्रमुख चैत्य ग्रामे ... नमो...८ वृत्त जेह, For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003633
Book TitleChaityavandan Sangraha Tirth Jin vishesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAbhinav Shrut Prakashan
Publication Year
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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