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________________ तीर्थ-जिन विशेष सुरप्रभं वज्रधरं च चंद्राननं, नमामि प्रभु भद्रबाहुम्, स्तवीमि च महाभद्रं, भुजंग नेमिप्रभतीर्थनाथाथेश्वर श्री जिनवीर सेनम्... २... श्री देवयशसं तथा, अर्हन्तमजितवीर्यं, [ ४५ ] Jain Education International वन्दे विंशतिमर्हताम् ...३... चार शाश्वता जिन ना चैत्यवंदनो ऋषभ जिनतु चैत्यवंदन ( १ ) ... त्रिभुवनमांही शाश्वता, जिनवर चैत्य उदार, मुज मनमांहे कोड घणा, चउमुख बिंब जुहार... १. पूरव दिशि प्रकाशता, ऋषभ प्रभु महाराज, त्रिकरण शुद्धे पूजता, सारे सघला काज...२... वैमानिक ग्रैवेयक ने, अनुत्तरमाही लीजे, असो अशी बिंब तो, सवि मंदिर गणीजे...३... सो जोजन लंबाई ने, पचासनो विस्तार, उंचा बहोंतेर प्रणमता, धर्मरत्न पद धार... ४... चंद्रानन जिन चैत्यवंदन (२) सोहे निश दिश, दक्षिण दिशि चंद्रानन, शाश्वत चैत्ये जे वली, लाख, सात कोड बोंतेर शाश्वत चैत्ये जे नमे, For Private & Personal Use Only नमन करे सुर इश...१... भवनपतिमां जाणुं, तेनो जन्म प्रमाणुं ...२... www.jainelibrary.org
SR No.003633
Book TitleChaityavandan Sangraha Tirth Jin vishesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAbhinav Shrut Prakashan
Publication Year
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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