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[११२]
चत्यवंदन सग्रह
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काल मोघे जे दान दिये, तेहनी जगमां वाह, ते माटे हवे आजथी, रखे विसारो नाह...८... अकवार सेवक करो, बोलावी महाराज, मुक्ति प्रभु हुं न मांगतो, अटले सिध्यां काज...६...
मेरू तणे परे धीर वीर, निरधि गंभीर, चंद्र तणी परे सौम्य तेज, झलके जिम हीर...१... राग रोष मन नहीं लगार, नहीं विषय विकार, शांति कांति रति मति प्रमुख, गुण जलधि अपार...२... दिन दिन वान वधु बहु अ, जिम कंचन परभाग, ते भगवंतनी भक्तिथी, दान थयो महाभाग...३...
[७] सकल सुरासुर इंद वृन्दा, भावे कर जोडी, सेवे पद पंकज सदा, जघन्य थकी अक कोडी...१... जास ध्यान अक तान करे, जे सुर नर भावे, संकट कष्ट दूरे टले, शुचि संपद पावे...२... सर्व समीहित पूरवा ओ, सुरतरु सम सोहाय, तस पद पद्म पूज्या थकी, निश्चय शिवसुख थाय...३...
[८] जिम चैत्री पूनम तणो, अधिको विधु दीपे, ग्रह गण तारादिक तणां, परम तेजने जीपे...१... तिम लौकिकना देव ते, तुम आगे होणा, लोकोत्तर अतिशय गुणे, रहे सुर नर लीणा...२...
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