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तीर्थ-जिन विशेष
सुर नर सुह कुसुमावलीओ, शिवफल दायक जाण, आराहउ भवि अंग मण, पावउ पद कल्याण...३...
[१८] जय जय जय जगतात भ्रात, भवि भवताप निवारे, शरणागत जन वच्छलु, सवि जग जीवने तारे...१ कमलापति काजे प्रभु, प्रगट पातालथी थाय, जरा निवारी दुःख हयु, जादव बहु सुख थाय...२ अमित गुण पातक हरण, हरित वरण सुखकार, रंग वंदे पारस प्रभु, शंखेश्वर शिरदार...३
[१६] अकल रूप अवतार सार, शिवसंपत्ति कारक, रोग शोग संताप दूरीय, दु:ख दोहग वारक.१ चिहं दिशि आण अखंड चंड, तप तेज दिणंद, अमर अपछर कोड गावे, जस नाम नरिंद.२ मुनि मेघ कहे जिनवर जयो, पार्श्वनाथ त्रिभुवन तिलो, श्री शंखेश्वर सुरमणि, अधिक पामो मंगललीलो.३
[२०] अपूपूजत्वां विनमिर्नमिश्च, वैताढयशैले वृषभेश काले, सौधर्मकल्पे सुरनायकेन,
त्वं पूजितो भूरितरं च कालं...१... आराधितस्वं समयं कियन्तं,
चान्द्रे विमाने किल भानवेऽपि,
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