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तीर्थ-जिन विशेष
फल घणुं फूलोनी माल, प्रभु पार न आवे गीत नाद, केरा शिर पूजी पूजो करो, दोपे अक्षतसार ते अक्षय सुख, तनु करे वर रूप... निर्मल तन मने करी, थुणतां इंद्र जगीश, नाटक भावना भावतां, पामे पदवी इश. जिनवर भक्ति वली ओ, भली प्रेमे प्रकाशी, निसुणी श्रीगुरु वयणसार, पूर्व ऋषि भासी... १२... अष्ट कर्म ने टालवा, जिन मंदिर जइशुं,
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कंठे ठवंता,
फल थुणंता...... धुपणुं धूप,
मुक्तावली चारु गुण प्रपन्ना, जगत्त्रयस्याभिमतं
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भेटी चरण भगवंतनां, हवे निर्मल थइशुं ... १३... कीर्त्तिविजय उवझायनो, विनय कहे कर जोड, सफल होजो मुज विनती, जिन सेवाना कोड... जिन दर्शन महिमा नु चैत्यवंदन
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११...
अद्या भवत् सफलता नयन द्वयस्य, देव त्वदीय चरणांबुज विक्षणेन, अद्य त्रिलोक तिलकं प्रतिभासते मे, संसार वारिधिरियं चुलुकः प्रमाणम्...१...
कलेव चंद्रस्य कलंक मुक्ता,
१४...
ददाना,
जैनेश्वरी कल्पलतेव मूत्तिः...२...
धन्यो कृतपुण्योहं, निस्तीर्णोहं भवार्णवात्, अनादि भव कांतारे, दृष्टो येन जिनो मया...३...
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