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चैत्यवंदन संग्रह
अद्य प्रक्षालितं गात्रं, नेत्रे च विमली कृते, मुक्तोहं सर्वपापेभ्यो, जिनेंद्र तव दर्शनात्...४... दर्शनात् दूरित ध्वंसि, वंदनात् वांछित प्रदः, पूजनात् पूरक श्रीणां, जिनः साक्षात् सुरद्रुमः...५...
जिन गुण गीत फल नु चैत्यवंदन मादल ताल कंसाल सार, भंगलने भेरी, ढोल ददामा दडवडी, शरणाइ नफेरी...१... श्री मंडल विणा रबाव, सारंगी सार, तंबुरा कडताल शंख, झल्लरी झणकार...२... वाजिंत्र नव-नव छंदशं ओ, गाओ जिनगुण गीत, ज्ञानविमल प्रभुता लहो, जिम होय जग जसरीत...३...
जिननी फूल पूजा नु चैत्यवंदन जाइ जुइ मालती, डमरो ने मरुवो, चंपक केतकी कुंद जाती, जस परिमल गिरुवो...१... बोलसिरि जासुद वेली, वालो मंदार, सुरभि नाग पुन्नाग अशोक, वली विविध प्रकार... ग्रथिम वेढिम चउविधे अ, चारु रची वरमाल, नय कहे श्री जिन पूजतां, चैत्री दिन मंगलमाल...३...
- वीर प्रभु वंश वृक्ष नुचैत्यवंदन शासन नायक जगगुरु, कल्पवृक्ष थड जाणो, अकादश गणधर प्रभु, शाखा मुख्य वखाणो...१... वृक्ष मध्य पटधर गुरु, तस परिकर लघु शाखा, सूरि प्रभावक जे थया, शुभ वचनामृत भाख्या...२... युग प्रधान दोय सहस चार, वृक्ष फूल गुणवंत, नरपद सुरपद मोक्षपद, इच्छित फल उलसंत...३..
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