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________________ चैत्यवंदन संग्रह Re श्रीशंखेश्वर मंडन पार्श्वजिन प्रणत कल्पतरुकल्प, चूरय दुष्ट ब्रांतं, पूरय मे वांछित नाथ.. [६] जय चिंतामणी पार्श्वनाथ, जय त्रिभुवन स्वामी, अष्टकर्म रिपु जीतिने, पंचमी गति पामी...१... प्रभु नामे आनंद कंद, सुख संपति लही, प्रभु नामे भवभय तणा, पातिक सवि दहीओ...२... ॐ ह्रीं वर्ण जोडी करी, जपीओ पारस नाम, विष अमृत थइ परिणमे, पामे अविचल ठाम...३... [१०] प्रणमामि सदा प्रभु पार्श्वजिनं, जिननायक दायक सुखधनं, धन चारु महोत्तमं देह धरं, धरणपति नित्य सुसेवकरं...१... करुणा रस रंचित भव्यफणी, फणि सप्त सुशोभित मौलिमणि, ___ मणि कंचन रूप त्रिकोटि घटं, घटितासुर किन्नर पार्श्वतरं...२... तटनीपति घोष गंभीर स्वरं, स्वरनाकर अश्व सुनेन नरं, नर-नारी नमस्कृत नित्य मुदा, पद्मावती गावती गीत सदा...३... सहनेन्द्रिय गोप थया कमळं, कमठासुर वारण मुक्त हठं, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003633
Book TitleChaityavandan Sangraha Tirth Jin vishesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAbhinav Shrut Prakashan
Publication Year
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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