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________________ तीर्थ-जिन विशेष [४७] अतीत अनागत वर्तमान, जे जिनवर ध्यावे, आंतर शत्रु दूरे टळे, आतम निरमल थावे...२ श्री विजयप्रभसूरि भला, विजयरत्न सूरींद, विनयविजय उवझायनो, रूप सदा आनंद...३... ऋषभदेव ना चैत्यवंदनो धुर समरू श्री आदिदेव, विमलाचल सोहीओ, सुरति मूरति अति सफळ,भवियणना मन मोहीओ... सुंदर रूप सोहामणो, जोतां तृप्ति न होय, गुण अनंत जिनवरतणां, कही शके नव कोय...२... वीतराग दर्शन विना, भवसागर में रूलोओ, कुगुरु कुदेवे भोळव्यो, गाढो जल भरीओ...३... पूर्व पुण्य पसाउले, वीतराग में आज, दर्शन दीठो ताहरो, तारण तरण जहाज...४... सुरघट ने सुरवेलडी, आंगणे मुज आइ, कल्पवृक्ष फळीओ वली, नवनिधि में पाइ...५... तुज नामे संकट टळे, नासे विषम विकार, तुज नामे सुख संपदा, तुज नामे जयकार...६... आज सफल दिन मांहरो, सफळ थइ मुज जात्र, प्रथम तीर्थंकर भेटीया, निर्मल कोधां गात्र...७... सुर नर किन्नर किन्नरी, विद्याधर नी कोड, मुक्ति पहोंच्या केवली, वंदु बे कर जोड...८... शत्रुजय गीरि मंडणोओ, मरूदेवा मात मल्हार, सिद्धिविजय सेवक कहे, तुम तरीआ मुज तार...६... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003633
Book TitleChaityavandan Sangraha Tirth Jin vishesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAbhinav Shrut Prakashan
Publication Year
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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