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[८]
चैत्यवंदन संग्रह
थावर जंगम भेदथो, दुविध तीर्थ जणाय, जीन गणहरादि मुनिवरा, जंगम तीर्थ कहाय...४.. सिद्धाचल अष्टापदगीरि, आबु समेत सार, रैवतगीरि आदे सवि, स्थावर तीर्थ अवधार...५... चित्त चोखे शुद्ध साधशुं, तन्मय स्वरूपाधार, अकज वार ओम सेवतां, आपे भवनो पार. सेवना जोग असंख्य छे, पण भक्ति अंग बलवान, ते माटे रूप ओळखी, शामळ करे गुणगान...७...
(१४) सोना रुपाने फुलडे, सिद्धाचल वधावो, ध्यान धरी दादा तणुं, आनंद मनमां लावो...१... पूजा करी पावन थयो, अम निर्मल देह, रचना रचुं शुभ भावथी, करूं कर्मनो छेह...२... अभविने दादा वेगळा, भविने हैडा हजूर, तन मन ध्यान अेक लग्नथी, कीधा कर्म चकचूर...३... दादा दादा हुं करू, दादा वसीया दूर, द्रव्यथी दादा वेगला, भावथी हैडा हजूर...४... कांकरे कांकरे सिद्ध थया, सिद्ध अनंतनुं ठाम, शाश्वत गीरिवर पूजतां, जीव पामे विश्राम...५... दुषमकाले पूजतां, इन्द्र धरी बहु प्यार, ते प्रतिमाने वंदना, श्वासमांहे सो वार...६... सुवर्ण गुफा मां पूजतां, रत्न प्रतिमा इन्द्र, ज्योतिमां ज्योति मीले, पूजे भवि सुखकंद...७...
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