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________________ प्रस्तावना स्तवन- सज्झाय-थोयना जोडाओ ना संग्रहो बहार पडेला मळे छे तेरीते चैत्यवन्दन नो संग्रह जोवामां आवेल नथी । चैत्य वन्दन मां प्रसंगने अनुरूप तेमज विविध विषयनो अक संग्रह होय ते जरूरी लाग्यौं । "अभिनव हेम लघु प्रक्रिया" ना अभूतपूर्व, दळदार अने ओक मात्र सप्तांगी विवरण युक्त ग्रन्थनु सम्पूर्ण स्वतंत्र सर्जन कर्या बाद विचार्य के शास्त्र वांचन माटेनो पायो तो मजबूत थई गयो, ज्ञानयोग मां प्रदान कर्तुं तेम भक्ति योग माटे पण कंइक अभिनव प्रदान करवु । दर्शन शुद्धिना अक सचोट-सुन्दर अंग रूपे आ " चैत्यवन्दन संग्रह " श्रीसंघ समक्ष प्रस्तुत करवानो अल्प प्रयास करेल छे । 'अभिनव श्रुत प्रकाशन' नाम सार्थक करता आ संग्रह ना कुल ऋण भाग मली ७०० थी वधारे चैत्यवन्दनो थशे । त्रिकाल देववंदन करतां श्रमण भगवंतो ने अन्तःकरण पूर्वक नमी, पर्व दिवसोना विशिष्ट आराधकोनी अनुमोदना करता, तपस्वीओने तप अनुष्ठानमां उपयोगी बनवाना हेतु थी प्रेराइने चैत्यवन्दन संग्रह [ तीर्थ- जिन विशेष ] सर्व चैत्यवन्दन प्रेमीओ समक्ष मुकु छू । चैत्यवन्दन थकी चैत्योनी वन्दना करी हृदय मांथी भक्ति झरणा ने वहेवडावो तेम इच्छु । पू. साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका रुप चतुविध संघ मारा आ प्रयास ने ज्ञान क्रिया ना समन्वय द्वारा क्षायिक सम्यग् दर्शन पामवानो अभिलाषा पूर्वक आदरनारा बने ते हार्दिक प्रार्थना सह जैन आराधना भवन, नीमच भादवा वदी अष्टमी- २०४५ दिनांक २४-८-८६ Jain Education International मुनि दीपरत्नसागर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003633
Book TitleChaityavandan Sangraha Tirth Jin vishesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAbhinav Shrut Prakashan
Publication Year
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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