SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 142
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - [१३८ चैत्यवंदन संग्रह चौदमें अकसो आठ छे, अकसो तीन मुणिंद, अकसो सात छ सोळमे, अकसो चार गणिद...७... अकसो पंदर अढारमें, अकसो तेंत्रीश सूरी, वीशमें उदये सो भला, आचारज वड नरि. अकवीशमे उदये वळी, पंचाणं सूरि राजा, नवाणुं बावोशमे, चालीश चडत दिवाजा... सहु मली दोय हजार चार, युगप्रधान जयवंत, छल्ला दुप्पसह सूरि, दशवैकालिक वंत...१०... पंचावन लख कोड वलि, पंचावन सहस कोडि, पांचसे क्रोड पचास क्रोड, शुद्ध आचारज जोडि...११... ओ सवि आचारज कह्या, दीपविजय कविराज, शुद्ध समकित गुण निर्मला, सोहम कुलनी लाज...१२... दुष्कृत गर्दा रूप नु चैत्यवंदन प्रभु पाय लागी करू सेव तारी, तुमे सांभलो श्री जिनराज मारी, मने मोह वैरी पराभव करे छे, चिह गति तणां दुःख नवि वीसरे छे...१.. हं तो लक्ष चोराशी जोवायोनि मांहि, भम्यो जन्म मरणादिक अह मांहि, घणां में कीधां कर्म जे धर्म छंडी, कहं सांभळो ते सवि स्वामी मंडी...२.., में तो लोभे लंपट थइ कर्म कीधा, घणां भोलवी पर तणां द्रव्य लीधा, में तो पिंड पोष्यो करी जीव हिंसा, करी पारकी कुथली स्व प्रशंसा...३... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003633
Book TitleChaityavandan Sangraha Tirth Jin vishesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAbhinav Shrut Prakashan
Publication Year
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy