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चैत्यवंदन संग्रह
[७] सकल भविजन चमत्कारी, भारी महिमा जेहनो, निखील आतम रमा राजीत, नाम जपीओ तेहनो, दुष्ट कर्माष्टक भंजरी जे, भविक जन मन सुख करो, नित्य जाप जपो पाप खपीओ स्वामि नाम शंखेश्वरो.१ बहु पुन्यराशी देश काशी तथ्थ नयरी वाणारसी, अश्वसेन राजा राणी वामा रूपे रति तनु सारिखी, तस कुखे सुपना चौद सुचीत स्वर्गथी प्रभु अवतर्यो, नित्य जाप जपी पाप खपीओ स्वामि नाम शंखेश्वरो.२ पोष मासे कृष्ण पक्षे, दशमी दिन प्रभु जनमिया, सुरकुमारी सुरपति भक्ति भावे, मेरू शृंगे स्थापिया, प्रभाते पृथिवीश प्रमोदे, जन्म महोच्छव अति कियो, नित्य जाप जपी पाप खपी स्वामि नाम शंखेश्वरो.३ त्रण लोक तरुणी मन प्रमोदी, तरुण वय जब आवीया, तव मात ताते प्रसन्न चित्ते, भामिनी परणावीया, कमठ शठ कृत अग्नि कुंडे, नाग बलतो उद्धर्यो, नित्य जाप जपीओ पाप खपीओ स्वामि नाम शंखेश्वरो.४ पोष वदि अकादशी दिने, प्रवज्या जिन आदरे, सुर असुर राज भक्ति साज, सेवना झाझी करे, काउसग करतां देखी कमठे, कीध परिसह आकरो, नित्य जाप जपीओ पाप खपीओ स्वामि नाम शंखेश्वरो.५ तपध्यान धारारूढ जिनपति, मेघधारे नवि चल्यो, तिहांचलित आसनधरण आयो,कमठ परिषह अटकल्यो,
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