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चैत्यवंदन संग्रह सुधास्वंदी ते दर्शनं नित्य देखे, गणुं तेहनो हुं विभो जन्म लेखे, त्वदाज्ञा वशे जे रह्या विश्व मांहे,
करे कर्मनी हाण क्षण अक मांहे...५... जिनेशाय नित्यं प्रभाते नमस्ते, भवि ध्यान होजो हृदये समस्ते, स्तवी देवना देवने हर्ष पुरे,
मुखांभोज भाळी भजे हेज उरे...६... कहे देशना स्वामी वैराग्य केरो, सुणे पर्षदा बार बेठी भलेरी, सुधां भोज धारा समी ताप टाले,
बेहु बांधवा सांभले अक ढाळे...७...
परमेसर परमातमा, पावन परमिठ, जय जग गुरु देवाधिदेव, नयणे में दीठ...१. अचल अकल अविकार सार, करुणा रससिंधु, जगति जन आधार अंक, निष्कारण बंधु...२... गुण अनंत प्रभु ताहरा ओ, कीमहि कह्या न जाय, राम प्रभु जिन ध्यानथी, चिदानंद सुख थाय...३...
[४] परमानंद प्रकाश भास, भासित भव कीला, लोकालोक पेखवे, नित अहवी लीला...१... भाव विभाव पणे करी, जेणे राख्यो अलगो, तक्रपरे पय मेलवी, तेह थकी नवि वलगो...२...
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