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________________ तीर्थ-जिन विशेष [६५] भात भातना धान तिहां, जुवारा ववरावे, भोजाइ पासे सिंचावतां, गंगा नीर मंगावे...६... पीठी चोळे पीतराणी मली, उने जल नवरावे, नवल घउंला भेळवी, मग पीठी बनावे...१०... आभूषण अंगे धरी, शोभा विरचावे, वरघोडे श्री नेमिनाथ, परणे राजुल नार...११... पंचजाति वाजिंत्र वागे, भेरी वजडावे, थैइ थैइ नाभ पताका, तोरण नेमकुमार...१२... पशु करे पोकार तिहां, शालापतिने बोलावे, सारथवाहने पुछतां, जीव बंधने केम बांध्या...१३... जादवकुल ने अणी परे, प्रभाते गौरव दइशं, विषयारसने कारणे, जीव संहार करीशुं...१४.. जमणं अंग फरके तिहां, नवला नेमकुमार, राजुल कहे सुणो साहेली, रथ वाळयो तत्काल...१५... वरसीदान देइ तिहां, अक क्रोड साठ लाख, सहसावन जइ संयम लीधो, सहस पुरुष संगाथ...१६... राजुल धरणी ढले तिहां, उज्जयंत गढ चाल्या, गुफामां श्री रहनेमि, राजुल प्रतिबोधे...१७... स्वामी हाथे संजम लीधो, संलेखणा अक मास, केवलज्ञाने झलहले, पाम्या शिवपुर वास...१८... पियु पहेलां मुगते गया, धन-धन नेमकुमार, परण्या शिवनारी तिहां, सहस पुरुष संगाथ...१६... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003633
Book TitleChaityavandan Sangraha Tirth Jin vishesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAbhinav Shrut Prakashan
Publication Year
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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