________________
[६४]
चैत्यवंदन संग्रह
अरजी उर नेमि जिणंद धरो,
तुम सेवक छु प्रभुना विसरो...२... सुर अचित वांछित दायक छो, सहु संघ तणां प्रभु नायक छो, गिरनार तणा गुण गायक छो,
कलहंस तणी गति लायक छो...३...
बालपणे श्री नेमनाथ, वंदु ब्रह्मचारी, आठ भवोनी प्रीतडी, तारी राजुल नारी...१... समुद्रविजय सुत जाणीओ, शिवादेवीनो जायो, जादव कुल सोहामणो, शंख लंछन गुण गायो.. बत्तीश सहस बंधव तणी, जाणो पटराणी, पिचकारी सोवन तणी, तिहां जलभरो आणी...३... दडो उछाळे फुलनो, दियरने बोलावे, सहुको भोजाइओ मलो, विवाह नेम मनावे...४... नारी विना- घर नहीं, वांढो नर कहेवाय, भोजाइओ मेणा मारशे, परणो नेम कुमार.. परणो राजुल नार तमे, उग्रसेन नी बेटी, सत्यभामानी बेनडी, समकित गुणनो पेटी...६. अक नारी विना इश्यो, घर शुन्यज कहेवाय, उनां अन्न कोण आपशे, सुणो बांधव वात...७... मंडप चोराशी स्तंभनो, रचायो मन रंगे, चौ दिशी गोरी गावती, सांजे ने सवारे...८...
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org