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तीर्थ - जिन विशेष
सोगंद आपुं माहरा, वळो पाछा एकवार, निर्दय थइ शं वालमा, कीधो मारो परिहार... ५... झीणी झबुके वीजळी, झरमर वरसे मेह, राजुल चाल्या साथमां, वैरागी भींजाणी देह... ६... संयम लइ केवल वर्याअ, मुक्तिपुरीमां जाय, नेम राजुलनी जोडने, ज्ञान नमे सुखदाय... ७... (२) समुद्रविजय कुलचंद नंद, शिवादेवी जाया, जादव वंश नभोमणि, शौरिपुरी ठाया... १... बाल थकी ब्रह्मचर्यधर, गत मार प्रचार, भोक्ता निज आत्मिक गुण, त्यागी संसार ...२... निष्कारण जगजीवनो ओ, आशानो विश्राम,
दीनदयाल शिरोमणी, पूरण सुरतरु काम...३... पशुडा पोकार सुणी करी, छांडी गृहवास, तत्क्षण संजम आदरी, करी कर्मनो नाश... ४... केवलश्री पामी करीओ पहोच्या मुक्ति मोझार, जन्म-मरण भय टाळवा, ज्ञान नमे सुखकार... ५...
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(३)
जयवंत महंत निरंजन छो,
भावना दुःख दोहग भंजन छो, भवि नेत्र विकासन अंजन छो,
[ ६३ ]
जगनाथ अनाथ सनाथ करो, मम पाप अमाप समूल हरो,
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प्रभु काम विकार विगंजन छो... १...
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