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चैत्यवंदन संग्रह
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धनुष पांचसे देहडी ओ, सोहीओ सोवनवान, कोत्तिविजय उवझायनो, विनय धरे तुम ध्यान...३... [&] बंदु जिनवर विहरमान, सीमंधर स्वामी, केवल कमला कांत दांत, करुणा रस धामी... १.. कंचनगीरि सम देह कांत, वृषभ लंछन पाय, चोराशी लख पूर्व आय, सेवित सुरराय...२... छट्ट भत्त संयम लीयो ओ, पुंडरिगिणी भाण
वंदावो...१...
द्यो दरिसण प्रभु संपदा, कारण परम कल्याण...३... (१०) श्री सीमंधर जगधणी, आ भरते आवो, करुणावंत करुणा करी, अमने सकल भक्त तुमे धणी, जो होवे अम नाथ, भवोभव हुं छं ताहरों, नहि मेलुं हवे साथ...२... सयल संग छंडी करी, चारित्र लइशुं, पाय तुमारा सेवीने, शिव रमणी वरीशुं...३... ओ अळजो मुजने घणोओ, पूरो सीमंधर देव, इहां थकी हुं विनवुं, अवधारो अवधारो मुज सेव... कर जोडीने विनवुं, सामुं रही इशान, भाव जिनेसर भाणने, देजो समकित दान...! (११) जय जय त्रिभुवन आदिनाथ, पंचमी गति गामी, जय जय करुणावंत प्रभु, भविजन हित कामी... १...
सेव...४...
.५...
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