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चैत्यवंदन संग्रह
श्री पार्श्वनाथना दश भवनुं चेत्यवंदन [३] अमर भूति ने कमठ विप्र, पहेले भवे कहोओ, बीजे गज कुरकट सही, त्रीजे भवे लहोओ...१... अठम कल्प पांचमी नरक, किरणवेग कख जाणं, मोरग सर्प चोथे भवे, अच्युत सुर मन आणुं ...२. पांचमी नरक पांचमे भवे, छठे राय वज्रनाभ, चंडाल कुले कमठ जनित, मध्यम ग्रैवेयके लाभ...३... ललितांग देव सातमे भवे, सातमी नरके लाग, कनकप्रभ चक्री थया, कमठ सिंह नो माग...४... प्राणत कल्प चोथी नरक, पार्श्वनाथ भव दशमे, कमठ थयो तापस वली, अन्यतोथि बहु प्रणमे ... ५... दीक्षा लेइ मुगते गया, पार्श्वनाथजी देव, पद्मविजय सुपसाउले, जित प्रणमे नित्यमेव... ६... [४] स्तुवे पार्श्व जिनाधोशं, पार्श्वयक्ष सुसेवितं, प्रणतानल्प संकल्प, दानकल्पद्रुमोपमं ...१... पूजीत्वजन: पूज्य स्थानं सर्व जगतामपि, हिलीतत्त्वांतु नैवेति, दुःखोच्छेद कदाचन...२... नाथीकृत्य त्वया देव, भवारि जीयते क्षण, हर्षाद्विक्षति तुम्यं च, स्पृहयेन मुक्ति कामिनी...३... न तत् पुरुषा दोषा, रोषादायंति दूरतः, सम्यक्ध्यात तव स्वामिन्, सिध्यति च मनोरथः... ४... स्तुतत्त्वं नरे नाथ, विलसंत्यखिला कलाः, उपमानोपमेयत्वं, चिरं जियाज् जिनेश्वर... ५...
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