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तीर्थ-जिन विशेष
[७१] युष्मद् पदानि पद गौरव सुप्रयोगैः, स्तुत्वेति पार्श्वजिन सद्गुज भाजनत्वात्,
अकं प्रभुं त्रिभुवनेऽपि भवे भवेऽहं, __ याचे शिवं प्रतिभवं ननु बोधिलाभं...६.
[५] प्रभु पासजी ताहरु नाम मीठं, ती लोकमां अटलुं सार दीर्छ, सदा समरतां सेवतां पाप नीठं,
मन माहरे ताहरू ध्यान बेलु...१... मन तुम पास वसे रात दीसे, मुख पंकज निरखवा हंस होसे, धन्य ते घडी जे घडी नयण दीसे,
भली भक्ति भावे करी विनवीजे...२... अहो अह संसार छे दुःख दोरी, इंद्र जालमां चित्त लाग्यं ठगोरी, प्रभु मानिये विनती अक मोरी,
मुज तार तुं तार बलिहारी तोरी...३... सही स्वप्न जंजालनो संग मोह्यो, घडियालमां काल रमतो न जोयो, मुधा अम संसारमा जन्म खोयो,
अहो घत तणे कारणे जल विलोयो...४... अतो भमरलो केसुआ भ्रांति धायो,
जइ शुकतणी चंचुमांहे भरायो,
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