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तीर्थ-जिन विशेष
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(ह)
अवधिज्ञाने आभोगिने, निज दीक्षा काल, दान संवच्छरी जिन दीये, मनोवांछित तत्काल ... १... धन कण कंचन कामिनी, राज ऋद्धि भंडार, छंडी संयम आदरे, सहस पुरुष परिवार...२... मृगशिर शुदि ओकादशीओ, संयम लीये महाराज, तस पद पद्म सेवन थकी, सीझे सघलां काज...३... श्री मल्लिनाथ भगवंतना चैत्यवंदनो
(१) सुखकारण जिन जननी कुखे, ज्यारे अवतरियो, त्यारे शुभ सूचक उदार, चित्त दोहलो धरियो... १... पंच वरण वर सुरभि गंध, अम्लान अमूल, शय्या विरचुं सुघट घाट, लेइ मालती फूल...२... ते माटे जन्म्या पछी ओ, दीयुं मल्लि अभिधान, ते जिन समरणथी सदा, लहे परमसुख दान...३... (२)
रहे अहोनिश सुख मगन, नही रोग वियोग, वेदोदय विण भोगवे, प्रभु भोग अशोग...१... आया निर्जरे पूर्व कर्म, नव बंध न आणे, गृहवासे रहे शत वर्ष, चोथे गुणठाणे...२... क्षय कषाय द्वादश करीओ, लहे छट्ठ गुणठाण, मल्लिनाथ जिन तेहना, दान करे गुणगान ...३...
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