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[१८]
चैत्यवंदन संग्रह
जिम शशि उदित सकल लोक, अंधकार पलाय, घन वर्षते भूमि जन, नवपल्लव थाय...१... प्रगट्यो जिन जनमंत तिय, सघले प्रकाश, प्रसर्यो जग जन चित्तमांही, तिम हर्ष उल्लास...२... मृगशिर शुदिअकादशो, जन्म्या मल्ली जिणंद, ते जिन पाय पसायथी, दान लहे आणंद...३...
मल्लि जिनवर मल्लि जिनवर, भविक सुखदाय...१ मिथिला नयरी उपन्या, कुंभराय कुल कमल हंस, कुंभ लंछन ओगणीशमा, प्रभावतो कुखसर राजहंस...२ त्रण कल्याणक जेहनांओ, जनम चरणने नाण, मृगशिर शुदि अकादशी, ज्ञानविमल गुणखाण...३
नमो मल्लि नमो मल्लि, नाथ शिव साथ...१... हाथ दिये भवि बुडतांबे, अपार भवजलधि मांहे, पाप ताप व्यापे नहीं, अह जिन सुरवृक्ष छांहे...२... सकल समीहित पूरणो, ओगणीशमो जिनराज, ज्ञानविमल प्रभु नामथी, सिध्यां सघलां काज...३...
नील वाने नील वाने, जेह जिनराज...१ पणवीश धनुष तनु दोपतो, इंद्रनील रत्न जिम सोहे, त्रिगडे बेठा जिनवरु कहे, धर्म भवि चित्त मोहे...२
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