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________________ चैत्यवंदन संग्रह लोच करि व्रत आदरेओ, चार जाम जस धर्म, ते अरजिनवर मुज दीयो, दान सदा शिव शर्म...३... सकल नयर शिणगार हार, गजपुर वर नयर, राय सुदर्शन तास नार, देवी जस अपछर...१... तस कुखे अवतार लीध, त्रिहुं भवन वंदिता, कुमरपणे अकवीश सहस, सुखे वरस व्यतीता...२... तेतां वरस मंडलिकपणुं ओ, पाले अखंडित आण, ते अर जिनवर नामथी, दान लहे कल्याण...३... [७] चउराशि लख रथ तुरंग, गजराज उदार, पायक छन्नु कोडि भूप, बत्रीश हजार... चोसठ सहस अंतेउरी, पुर गाम अपार, चोद रतन नवनिधि सहित, बहु ऋद्धि विस्तार...२ अम चक्रीपणुं भोगवी, वरस सहस अकवीश, सुमति दान दायक सदा, ते अरजिन जगदीश...३... [८] राय सुदर्शन कुल नभे, नूतन दिनमणी रूप, देवी माता जनमीयो, नमे सुरासुर भूप...१... कुमर राज्य चक्रीपणे, भोगवी भोग उदार, वेसठ सहस वरसां पछी, लीये प्रभु संयमभार...२... सहस पुरुष साथे लीये, संयम श्री जिनराय, तस पद पद्म नम्या थकी, शुद्ध रूप निज थाय...३... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003633
Book TitleChaityavandan Sangraha Tirth Jin vishesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAbhinav Shrut Prakashan
Publication Year
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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