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चैत्यवंदन संग्रह
वृषभ लंछने शोभतां, सोवन वरण सुजाण, केशरविजे ध्यावे सदा, अविचल सुखनुं ठाण...३... ( १७ ) उठो प्रभाते आतमा, ध्यावो आदिनाथ, विघन विदारण सुखकरण, आपे शिवपुर साथ...१... नंदन नाभि नरिदनो, देवनो देव दयाल, उदयाचल पर उगीयो, कर्म पडल द्यो टाल...२... राणकपुरे अति रंगशुं, भेट्या प्रथम जिणंद, अविचल पद आणंद...३...
कीत्तिचंद्र कहे दीजिये,
(१८)
ऋषभ जिनेश्वर साहिबो जग में कोई बीजो नहीं, नाभी नंदन जग जयो, अलख अनोपम ताहरी, मुद्रा सुंदर प्यार...२... लंछन घोरी विराजतो, पुर गोले सुखकार, केशरविजे कहे साहिबा, बांह्य गृही मुज तार...३... (१६) अलख अगोचर अकलरूप, अविनाशी अनादि, एक अनेक अनंत सांत, अविकल अविषादि... १... सिद्ध बुद्ध अविरुद्ध शुद्ध, अजर अमर अभय, अव्याबाध अमूरतिक, निरुपाधिक निरमाय...२... परम पुरुष परमेसरु, प्रथमनाथ परधान, भव भव भावठ भंजणो, भजीये श्री भगवान...३...
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उपकारी अवतार, तुज सम तारणहार...१... मरूदेवा उर हार,
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