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तीर्थ - जिन विशेष
अखिल वस्तु निरन्तर दर्शकं, सकल सृष्टि शुभंकर नायकम्, विशद मोद जगज्जन सेवितम्,
गुणनिधि प्रभु पार्श्वजिनोत्तमम्...३... [२३]
प्रेमे प्रणमं प्रह समे, पार्श्व जिनेश्वर देव, मूरति शांति दायिनी, अहनिश करू तस सेव...१... शांत सुधारस झीलती, मुद्रा मोहनगारीः आण वहुं प्रभु ताहरी, कर भव जल पारी...२... तुज मूरति मन रति करे, शाश्वता सुखनी अह, अश्वसेन वामाकुले, नभमणि गुणमणि गेह...३... जग चिन्तामणी जगगुरु, जग बंधव जगभाण, सेवक उद्धरी आपनो, करजो आप समान... ४... सायर देखी चन्द्रने, भरति करी मलकाय, सहज कलानिधि आपने, निरखी चित्त हरखाय... ५... [२४] श्री चिंतामणी पासजी, वामानंदन देव, अश्वसेन कुल चंद्रमा, कीजे अहोनिश सेव... १... पंचम आरे जीवने, अ प्रभुनो आधार, अंतर शत्रु टालता, वारता विषय विकार...२... साचो शरणो नाथनो, पामे जे पुन्यवंत, लाख चोराशी भ्रमणनो, ते पामे झट अंत... नमीये नित्य प्रभात, लहीये अनुपम शांत... ४...
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मात पिता बंधव तुमे, तुंही - तुंही रटना करी,
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