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चैत्यवंदन संग्रह
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जिन देहनो दाढा तणी, पूजा करी पधरावता, वली आत्मशुद्धि काजे देवो, जिन गुणोने गावता...३
कलश इम जिन कल्याणक, भावथी जेह गावे, अक्षयपद पावे, चउगति दूर थावे, तपगच्छ वर नायक, धर्मसूरि प्रभावे, कल्याणक थुणता, रत्नविजय सुहावे...१
१८ दोष रहित तीर्थंकर नु चैत्यवंदन क्रोध मान मद लोभ माया, अज्ञान अरति रति, हिंसादिक निद्रा अने, मत्सर ने अप्रीति...१... शोक भय अने प्रीति, रतिक्रीडा प्रसंग, दोष अढार प्रगट निकट, नहीं जेने अंग...२... देव सर्व शिर शेहरो अ, ते कहिले निरधार, ज्ञानविमल प्रभु भुवनतो, पूण्य तणो भंडार..
दान लाभ भोगोपभोग, बल पण अंतराय, हास्य अरति रति भय दुगंछा, शोक षट् कहेवाय...१... काम मिथ्यात्व अज्ञान निद्रा, अविरति अपांच, राग द्वेष दोय दोष अ, अट्ठारस साच...२... जे जेणे दूरे कर्यां, तेने कहिये देव, ज्ञानविमल प्रभु चरणनी, कीजे अहोनिश सेव...३...
___ चोवीश जिननां वर्ण नु चैत्यवंदन पद्मप्रभु ने वासुपूज्य, दोय राता कहिये, चंद्रप्रभ ने सुविधिनाथ, दो उज्ज्व ल लहिये...१...
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