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तोर्थ-जिन विशेष
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श्री सीमंधर स्वामि ना चैत्यवंदनो
श्री सीमंधर जिनवरा, विचरे जंबूद्विपे, पुकखलवइ विजये नगर, पुंडरिकगिणी दीपे...१... सुत श्रेयांस राजा तणो, सोवन कंचन काय, पूरव चोराशी लाखनु, आयु जास सोहाय...२... पांचशे धनुष शरीर छे, वृषभ लंछन पाय, रुकमिणी राणी नाहलो, सत्त्यकी जेहनी माय...३... दश लख केवली जेहने, सो कोडि मुनि स्वामी, साधवी सो कोडि कही, श्रावक संख्या न पामी...४... प्रातिहारज आठ छे, वाणी गुण पांत्रोश, पूरव विदेहे जाणीये, नमतां लहीये जगीश...५... इह भरते प्रभु कुंथुजी, सिद्धिपुर पोहते, अरजिन जन्म हुवो नहीं, अ अंतर सोहते...६... सीमंधर जिन उपना, सुरपति महोत्सव कीधो, सुव्रत नमी जिन अंतरे, दीक्षा कल्याणक सीधो...७... उदय पेढाल भावि प्रभ, तस अंतर कहेवाय, सीमंधर जिन पामशे, अविनाशी पुर ठाय...८... आ भरते पण कोई जीव, सुलभबोधि जेह, जाप जपे तुज नामना, लाख संख्याओ तेह...६... भवस्थिति निर्णय तस हुआ, अथवा ध्यान पसाये, उपजी विदेह केवल लहे, नवमे वरसे उच्छाहे...१०... शासनसूरि पंचांगुली, सवि सानिध्य सारे, सीमंधर जिन सेवना, दुःख दोहग वारे...११...
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