________________
[३४]
चैत्यवंदन संग्रह प्रह उठीने नित्य नमुं, आणी मन आणंद, लक्ष्मीसूरि प्रभु नामथी, प्रगटे परमाणंद...१२..
सीमंधर परमातमा, शिवसुखना दाता, पुक्खलवइ विजये जयो, सर्व जीवना त्राता. पूर्व विदेहे पुंडरिगिणी, नयरी) सोहे, श्री श्रेयांस राजा तिहां, भवियणना मन मोहे... चौद सुपन निर्मल लही, सत्त्यकी राणी मात, कुंथु अरजिन अंतरे, श्री सीमंधर जात. अनुक्रमे प्रभुजी जनमिया, वळी यौवन पावे, माता पिता हरखे करी, रुक्मिणि परणावे. भोगवी सुख संसारना, संयम मन लावे, मुनिसुव्रत नमी अंतरे, दीक्षा प्रभु पावे...५... घाति कर्मनो क्षय करो, पाम्या केवलनाण, वृषभ लंछने शोभतां, सर्व भावना जाण...६... चोराशी जस गणधरा, मुनिवर अकसो कोडि, त्रण भुवनमां जोवतां, नहि कोइ अहनी जोडि...७... दश लाख कह्यां केवली, प्रभुजीनो परिवार, ओक समय त्रण कालनां, जाणे सर्व विचार...८... उदय पेढाल जिन अंतरे, थाशे जिनवर सिद्ध, जसविजय गुरु प्रणमतां, मन वंछित फल लीध...६...
जंबुद्विप पूरव दिशे, पुक्खलवइ विजये, नयरी पुंडरिगिणि निरमली, धर्म सदा जिहां सजीये...१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org