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तीर्थ-जिन विशेष
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[२१] पाव शंखेश्वरा धन्य काशोनरा, नयरी वाणारसी सौख्यकारी, देवना देव छो रूपे स्वयंमेव छो,
मत्ति रळियामणो लागे प्यारी...१... हस्त दश- देह परिमाण छ, उमर सो वरसनी रंग नीला, भ्रमणता भांगी ने मोह-मद त्यागीने,
सिद्धपदे जई वस्या छबीला...२... कमठ तापस तणी, काष्ठ केरी धुणी, मध्ये बळता अरिने बचाव्यो, सर्पना राजने स्वर्गमां मोकली,
कमठ सुर मेघमाळी बनाव्यो...३... बड तणे स्थिर रही ध्यान धायुं तमे, वासवे घोर तम वृष्टि कीधी, देव धरणेन्द्र त्यां आवी प्रभु पासमां,
नागफणेथी छांय कीधी...४... मृत्यु पाताल सह स्वर्गना लोकमां, प्रेमपूर्वक प्रभुजी पूजाया, धन्य छे धन्य प्रभु तेहने जगतमां,
वृत्ति निष्फल करी तुमने ध्याया...५... सौख्य शांति करो विपदाने हरो,
जे रीते नागने तें बचाव्यो,
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