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चैत्यवंदन संग्रह
विहरमान जिन ना चैत्यवंदनो
[१] प्रातः समय नित्य प्रणमीये, श्री सीमंधर स्वाम, मन विकसे तनु उलसे, लीजेंते जसु नाम...१... युगमंधर नमुं भावशू, जगतारण जगनाथ, बाहु जिनेश्वर ध्यावतां, आपे शिवपुर साथ...२... चोथा सुबाहु जिनेश्वरु, जयवंता जिन चार, जंबुद्विप विदेहमां, वंदु वारंवार...३... दस लाख केवलधरा, साधु सो सो कोड, विहरमाननी संपदा, वंदु बे कर जोड...४... भरतक्षेत्रमा हुं वस्यो, दीजे दरिशण देव, कीत्तिचंद्र कहे साहिबा, भव भव तारी सेव...५...
[२] पहेला जिनवर विहरमान, श्री सीमंधर स्वामी, युगमंधर बीजा नमु, मुज अंतरजामी...१.. त्रीजा बाहु जिनेसरु, प्रणमुं भगवंत, चोथा जिन श्री सुबाहु, वंदु वळी गुणवंत...२... श्री सुजात पंचम जिन अ, छट्ठा स्वयंप्रभस्वामी, ऋषभानन जिन सातमा, हुं प्रणम शिरनामी... अनंतवीर्य जिन आठमा, सुरप्रभ छे नवमा, श्री विशाल दशमा जिणंद, जस मोटो महिमा...४... श्री वज्रधर अगोयारमा, बारमा चंद्रानन, चंद्रबाहु जिन तेरमा, जस वर्णा कंचन...५...
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