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तीथ-जिन विशेष
__ [४१] ध्यातोऽपि यत् पूजितवद्ददासि,
त्वमीप्सितं सर्वमिति प्रमोदे...३... अनाद्यविविद्यौदरपाशबद्धं,
मां मोचय त्रातरिहापि सन्तम्, पयोजगभं प्रतिपन्नरोधं,
भृग यथा दूरतरोऽपि भानुः...४... विधूय रागादि भवान् विकारान्,
दधासि रूपं निरूपाधिकं यत्, त्रिलोक पूज्य! भवतः प्रसादात्,
__ ममापि तत्रानुभवोऽस्तु सम्यक्...५...
युगमंधर जिन नु चैत्यवंदन विप्र विजय विजयापूरी, सुदृढ नप तात, युगमंधर जिनवर नमुं, जस तारा मात...१.. प्रिया मंगलानो नाहलो, गज लंछन सोहे, सोवन वन धनु पांचसे, भविजन मन मोहे...२... लक्ष चोराशी पूरवनुं ओ, आयुमान लह्यो अह, सुद्धा संयम संग्रही, केवल पाम्या जेह...३... त्रिगडे बेठा भविकने, आपे उपदेश, प्रातिहार्य आठे भला, अतिशय चोत्रीश. पांत्रोश वाणी गुण कह्या, सो कोडि मुनि संघात, दश लख केवलधर मुनि, वंदु निश दिन प्रभात...५... महाविदेहे विचरताओ, वंदे सुर नर कोडि, पंडित धीरविमल तणो, नय वंदे कर जोडि...६...
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