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चैत्यवंदन संग्रह प्रभु सामे पद्मासने, पुंडरिक गणधार, जोतां नयन उलसतां, वर्षे अमृतधार...२... रायण तरुवर सोहता, तिम घेटीओ जाण, प्रभु पगला वळी वंदतां, पामे हर्ष सुजाण...३... राम पांडव नारद वळो, सांब प्रध्युम्न जेह, नमि विनमि द्राविड ने, वारिखिल्लजी तेह...४... इण तीर्थे इम मुनिवरा, आणे कर्मनो अंत, धर्मरत्न पद आपजो, भागे सादि अनंत...५...
पंचतीर्थ अंतर्गत गिरनारजी नु चैत्यवंदन [७] दीक्षा केवल ने वळी, बीजं निरवाण, त्रण कल्याणक उपना, गिरनारे ते जाण...१... अनंत चोवीशीजे अनंत, कल्याणक वखाण, वर्तमानमां नेमिनाथना, गिरनारे ते जाण...२... अनागत जिनवर सवि, पामशे शिवपुर ठाण, सादि अनंत भागे सुखी, गिरनारे ते जाण...३... संप्रति ने संग्रामनी, कुमारपालनी जाण, मंदिर श्रेण सोहामणो, गढ गिरनारे वखाण.. मोहराय मल्ल भागतो, मांगे कदि नवि दाण, धर्मरत्न पसायथी, गिरनारे चित्त आण...५...
पंचतीर्थ अंतर्गत आबुजी नुचैत्यवंदन [८] आबु अचलमां शोभता, जिनवर बिंब विशाल, दर्शनथी दर्शन मिले, जाये कर्म जंजाल...१... आदिसर नेमिसरू, तेहना बिब मनोहार, बावन देवरी सोहतो, पाप मीटावणहार...२...
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