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[१०६]
चैत्यवंदन संग्रह
कारण अहिज मुगतिर्नु, श्री जिनवरनी सेव, ज्ञानविमल प्रभुता घणी, आय मले स्वयमेव...३
दुःख दोहग दुःख दोहग, जाय सवि दूर...१... दुर्मति दुर्गति सुपनमां, तेह जननी पासे नावे, जे श्री नमि जिनन सदा,नाम ध्यान अकाग्र ध्यावे...२... करुणा रसनो कूमलो, त्रिभुवननो आधार, ज्ञानविमल प्रभु सेवतां, लहीये लील अपार...३...
सकल समीहित सुख करण, सुरतरु उपमान, तरुण तरुणो परे तेजवंत, जग तिलक समान...१... भक्ति धरि सुरसंदरी, करे जस गुण गान, ध्याये सुर नर असुरनाथ, जस शुभ अभिधान...२... शुदि मृगशिर अकादशी), पाम्या ज्ञान अनंत, दान सुहंकर वंदिले, ते नमि जिन जयवंत...३...
(८) मल प्रकृतिमां अक बंध, चउ सत्ता उदये, अंक बंध उत्तर प्रकृति, तिम बैंतालीश उदये...१ सत्ता पंचाशी विचार, जेहवी वली छार, मन वच काया योग जास, अविचल अविकार...२ तेरश गुणठाणा तणीओ, धरे दशा ओम जेह, ते नमि जिन अकवीसमो, दान दया गुण गेह...३...
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