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यथार्थ षड् द्रव्य विकासकं च,
चैत्यवंदन संग्रह
नमाम्यहं श्री जिन वर्धमानम् ... ५...
वीर प्रभुना जन्म कल्याणकनु चैत्यवंदन (१४) केवल कमला दिनकरु, शासनपति प्रभु वीर, ओकवीस सहस वरस लगे, शासन अविचल धीर... १... चैत्र शुदि तेरस निशि, जन्म्या जग सुखकार, तीन लोक उद्योत करे, सकल जीव हितकार...२... तीन नरक लगे वेदना, देवे परमाधामी, कर्या कर्म सहु अनुभवे, कोई नहीं विशरामी...३... सर्वे नरकना नारकी, मांहो मांह लडे धाय, भेदन छेदन दुःख घणां दुष्ट करम सुखदाय... ४... वीज झबुकानी परे, साते नरक मोझार, ते समये उद्योतथी, सहुने होय विचार... ५... नारक जीव सुखीया थयाओ, अंतर मुहुरत ओक, दीपविजय कवि ईम कहे, वीर जन्म सुविवेक... ६... वीर प्रभुना दीक्षा कल्याणकनु चैत्यवंदन [१५] भोग करम क्षीण जाणीने, दीक्षा समय पिछाणी, लोकांतिक आवी कहे, जय जय जय जय वाणी... १ स्वर्ग पंचम शुभ ठाणमां, त्रस नाडीने अंत, बसे तिहां ते कारणे, लोकांतिक कहंत... २ ओ भवथी बीजे भवे, पावे पद निरवाण, तेहथी लोकांतिक कहे, गुण निष्पन्न प्रमाण... ३ लोकांतिक वयणा सुणी, वीर जगत गुरु धीर, वरसे करसी दानने, सवा पहर दिन तीर... ४
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